नंगे रेगिस्तान में धूआं सीधे से आकाश में पहुंच सकता है। और लंबी लंबी नदी पर सुन्दर सूर्यास्त दिख रहा है। यह कविता चीन की थांग राजवंश के महान कवि वांग वेई द्वारा लिखी गयी है। इस कविता में रेगिस्तान, पीली नदी व सूर्यास्त एक साथ मौजूद होने का सुन्दर दृश्य लोगों के सामने दिख रहा। अभी तक न जाने देशी-विदेशी के कितने पर्यटक व विद्वान इस कविता में मग्न हो गये। पर यह दृश्य कहां स्थित है?वह है पश्चिम निंगशा के चोंगवेई काऊंटी का शा पो थो।
शा पो थो चीन के चौथे बड़े रेगिस्तान टेंग्गेर रेगिस्तान की दक्षिण पूर्वी सीमा पर स्थित है। इस के उत्तर नंगा बड़ा टेंग्गेर रेगिस्तान है, और इस के दक्षिण दिन-रात दौड़ती रही पीली नदी है। टेंग्गेर रेगिस्तान व पीली नदी की सीमा पर एक 2000 मीटर चौड़ा व 100 मीटर ऊँचा वाली रेत पहाड़ी दिखाई देती है। जिस का नाम है शा पो थो। यहां लोगों को उत्तर-पश्चिमी चीन के शानदार दृश्य और दक्षिण चीन के सुन्दर दृश्य एक साथ मिल सकते हैं। शा पो थो के दृश्य बहुत अनोखे हैं, प्राकृतिक दृश्य के साथ साथ सांस्कृतिक दृश्य भी पर्याप्त हैं। इसलिये पर्यटन जगत के विशेषज्ञों का मानना है कि वह विश्व में एकमात्र पर्यटन संसाधन है। और वह चीन में 5 ए. स्तर का दर्शनीय स्थल भी है।
शा पो थो इसलिये देश विदेश में बहुत प्रसिद्ध है, क्योंकि यहां मरुस्थलीकरण के नियंत्रण में बड़ी सफलता मिली। बाओ लैङ रेलवे चोंग वेई शहर में छह बार रेगिस्तान से गुजरती है। वह भी चीन में पहला रेलवे है, जो रेगिस्तान से गुजरती है। इस रेलवे की सुरक्षा के लिये और पटरी को रेत से दफनाने से बचने के लिये 20वीं शताब्दी के 5वें दशक से चोंग वेई की जनता व कार्यकर्ताओं ने इस रेलवे के दोनों ओर पेड़ पौधे उगाने की बड़ी कोशिश की। जिससे मरुस्थलीकरण को अच्छी तरह से नियंत्रित किया गया। और दसेक वर्षों में बाओ लैङ रेलवे का संचालन सुचारू रूप से चल रहा है। मरुस्थलीकरण के नियंत्रण में प्राप्त इस उपलब्धि पर विश्व की नज़र केंद्रित हुई। संयुक्त राष्ट्र ने इस उपलब्धि को मानव के मरुस्थलीकरण-नियंत्रण के इतिहास में एक करश्मा माना है। बहुत विदेशी विशेषज्ञ अध्ययन के लिये यहां आये हैं।
इस के अलावा यहां और एक विशेष पर्यटन कार्यक्रम है, जिस का नाम है चर्मी बेड़ा द्वारा नदी को पार करना। यह बेड़ा बकरी के चर्म से बना हुआ है। इस में हवा डाला गया। केवल एक व्यक्ति तो इस बेड़े को उठा सकता है।
अगर हम शा पो थो को एक करिश्मा कह सकते हैं, तो शा हू झील भी दूसरा करिश्मा कहा जा सकता है। इस दर्शनीय स्थल का कुल क्षेत्रफल 80 वर्ग किलोमिटर है। उन में शा हू झील का क्षेत्रफल लगभग 45 वर्ग किलोमीटर है। गीली भूमि का क्षेत्रफल 10 वर्ग किलोमीटर है। और रेगिस्तान का क्षेत्रफल 23 वर्ग किलोमिटर है। रेगिस्तान में एक झील होता है, वह मोती जैसा है। यहां का दृश्य बहुत सुन्दर है। शा हू झील का पानी पीली नदी से आया है। यहां मछलियों व पक्षियों का स्वर्ग भी है।
शा हू झील का संसाधन बहुत समृद्ध है। झील में दसेक प्रकार की मछलियां रहती हैं। खास तौर पर जंगली बड़े सिर वाली मछली सब से प्रसिद्ध है। यह मछली का सिर बहुत बड़ा है, और शरीर बहुत छोटा है। इसलिये लोग इसे बड़े सिर वाली मछली कहते हैं। इस मछली का वज़न 2.5 से 5 तक किलोग्राम है। क्योंकि यह मछली बिल्कुल प्राकृतिक वातावरण में रहती है। इसलिये इस का स्वाद भी बहुत अच्छा है। इससे बनाया गया मछली सूप बहुत स्वादिष्ट है। गौरतलब है कि इस मछली के सिर में समृद्ध पोषक तत्व शामिल हैं, जो लोगों के दिमाग के लिये बहुत लाभदायक है। इसलिये अगर पर्यटक शा हू झील का दौरा किया, तो वहां वे ज़रूर बड़े सिर वाली मछली खाते हैं। क्योंकि चीन के कई नेताओं ने भी यहां आकर इसे खाया, और उन्हें बहुत अच्छा लगा। इसलिये बाद में यह डिश राज्य भोजन में भी शामिल किया गया। अभी तक देश-विदेश से आए पर्यटकों की इसे खाने की तीव्र इच्छा होती है।
कार्यक्रम के अंत में हम आप लोगों से इस आलेख से जुड़े दो सवाल पूछेंगे। पहला है, नंगे रेगिस्तान में धूआं सीधे से आकाश में पहुंच सकता है। और लंबी लंबी नदी पर सुन्दर सूर्यास्त दिख रहा है। इस कविता में किस जगह के दृश्य का विवरण किया गया?और दूसरा है, अगर पर्यटक शा हू झील का दौरा किया, तो वहां वे ज़रूर क्या खाते हैं?