05 दर्शनीय स्थल--हुआंग शान पर्वत की कहानी

2017-10-24 20:43:01 CRI

05 दर्शनीय स्थल--हुआंग शान पर्वत की कहानी

दर्शनीय स्थल--हुआंग शान पर्वत की कहानी  黄山故事

मध्य दक्षिण चीन में स्थित हुआंगशान पर्वत चीन का एक लोकप्रिय दर्शनीय क्षेत्र है और विश्व प्राकृतिक धरोहरों की सूची में भी शामिल है। हुआंग शान पर्वत का नाम पहले यी शान(Yi shan) था, बाद में उसका नाम बदल कर हुआंग शान रखा गया, इसकी क्या वजह है।  

चीनी पौराणिक कथा के अनुसार हुआंग ती (Huang di) चीन का पूर्वज था। वह राजा के आसन पर सौ साल बैठा और उसे प्रजा का बड़ा सम्मान मिला। अधिक उम्र होने के चलते उसने राजा की गद्दी कम उम्र वाले शाव हाव (Shao hao) के हवाले कर दी। लेकिन हुआंग ती जीवन से गहरा प्यार करता था, वह यूं ही बेकार बैठे मरना नहीं चाहता था, अतः उसने अमर रहने के रहस्य की खोज करने का निश्चय किया। वह ताओ धर्म के आचार्य रोंग छङ च (Rong cheng Zi) और फ़ु छ्योव कोंग (Fuqiu Gong) को अपना गुरु बनाकर उनसे संजीवनी बूटी बनाने की कला सीखने लगा।

ताओ धर्म चीन का अपना धर्म है, इसके विकास के प्रारंभिक काल में परम्परा के अनुसार संजीवनी बूटी बनाने की लगातार कोशिश की जाती रही। संजीवनी  बनाने के लिए एक शांत और सुन्दर पहाड़ी क्षेत्र चुनना आवश्यक था, जीवन शक्ति से ओतप्रोत स्थल में बूटी तैयार की जा सकती थी। इसलिए हुंआग ती अपने दोनों गुरुओं के साथ ऐसी जगह की खोज करने लगा।

उन्होंने कई पहाड़ों और नदियों को पार कर देश का कोना-कोना छान मारा। अंत में मध्य दक्षिण चीन के यी शान पहाड़ आ पहुंचे। इस पहाड़ में बहुत सी ऊंची-ऊंची पर्वत चोटियां हैं, जो आकाश से बातें करती हुई जान पड़ती हैं, चोटियों के बीच सफेद बादल रेशमी कपड़े की भांति तैरते हुए प्रतीत होते हैं, घाटियां गहरी और सीधी हैं, पहाड़ी में कोहरा फैला रहता है। इस प्रकार के प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर हुंआग ती एकदम मोहित हो गया और वे तीनों इस जगह को संजीवनी बूटी बनाने की जगह मानने लगे।

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दर्शनीय स्थल--हुआंग शान पर्वत 

वे यी शान में बसकर रोज लकड़ी काटने, जड़ी-बूटी तोड़ने तथा खनिज खोजने में जुटे रहे और संजीवनी बूटी बनाने की कोशिश करते रहे। कहा जाता था कि संजीवनी   बनाने के लिए उसे नौ बार तेज़ आंच में गर्म करना होता था।  यह एक अत्यन्त कठोर और लम्बा काम था। लेकिन इस चुनौती के सामने भी हुंआगती का संकल्प नहीं डिगा। लगातार चार सौ अस्सी साल के अथक प्रयास के बाद चमकदार स्वर्णिम बूटी आखिरकार तैयार हो गई। एक बूटी के सेवन से हुंआग ती को अनुभव हुआ कि उसका शरीर बिल्कुल हल्का हो चुका है और वह पक्षी की तरह हवा में उड़ने में सक्षम हो गया। हुंआग ती के सफेद बाल पुनः काले हो गए। लेकिन बुढ़ापे के कारण उसकी त्वचा में जो झुर्रियां पड़ी थी, वह खत्म नहीं हुईं।  

उसी दौरान एक पहाड़ी की दरार से अचानक लाल रंग गर्म फव्वारा फूट पड़ा, पानी गर्म-गर्म और सुगंधित था, जिसमें से महक वाली भाप उठ रही थी। हुंआग ती के गुरू फ़ु छ्योव कोंग ने हुंआग ती को लाल रंग के पानी में नहाने को कहा। और हुआंग ती सात दिन इसी पानी में रहा। उसका पुरानी त्वचा पानी के बहाव के साथ चली गयी, उसकी जगह नयी त्वचा आ गयी। वह देखने में बहुत जवान और तरोताजा हो गया। उसमें नव जीवन का संचार हो गया और वह मौत से मुक्त होने वाला देवता बन गया। चूंकि यी शान हुंआग ती की संजीवनी खाकर देवता बनने की जगह था, इसलिए उसका नाम भी बदलकर हुआंग शान हो गया।

हुआंगशान पर्वत में एक अत्यन्त मशहूर दर्शनीय स्थल है, जहां गहरी घाटी में एक गगनचुंबी पर्वत चोटी सीधी खड़ी नज़र आती है, पर्वत चोटी का सीधा खड़ा भाग गोलाकार और पतला सीधा होता है, देखने में वह कलम जैसा लगता है। चोटी का सबसे ऊपरी हिस्सा सुपारी सा लगता है, पूरी पर्वत चोटी परम्परागत चीनी ब्रश वाले कलम सरीखी मालूम होती है। इस चोटी पर एक प्राचीन देवदार का पेड़ है, दूर से देखने में लगता है, मानो एक विराट कलम पर एक फूल खिला हो। इसलिए इस पर्वत चोटी का नाम पड़ा कलम का पुष्प।

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दर्शनीय स्थल--हुआंग शान पर्वत 

कलम का पुष्प पर्वत के बारे में एक रुचिकर कथा प्रचलित है। कहते हैं कि चीन के थांग राजवंश (618-907) के महान कवि ली पाई ने एक रात सपने में देखा कि वह हवा के एक झोंके के साथ समुद्र में खड़े एक देव पहाड़ पर आ पहुंचा है, समुद्री पहाड़ बादलों के धुंध में झांक रहा है, पहाड़ पर फूल पौधों की बहार है। कुदरती सुमन से मोहित होकर ली पाई ऐसा डूबा कि इसी क्षण में एक विराट ब्रश का कलम समुद्री जल राशि में से निकल कर  लम्बा सीधा खड़ा हो गया, जैसा एक पत्थर का डंडा सीधा खड़ा हुआ हो। ली पाई ने सोचा कि काश, मैं इसी प्रकार के एक विराट कलम का स्वामी बनूं, तो मैं विशाल धरती को स्याही पात्र बनाऊं, समुद्री जल राशि की स्याही ले लूं और नीले आकाश को कागज के रूप में इस्तेमाल करूं और कुदरत के सभी सौंदर्यों को काव्य में बदल लूं।

ली पाई अपनी कल्पना में घूम रहा था कि अनायास अनूठे संगीत की सुरीली धुन सुनाई देने लगी, उस विराट कलम के मुंह से पंचरंगी रोशनी निकली, वहां लाल रंग का एक खूबसूरत फूल खिल उठा, फूल वाली कलम ली पाई की ओर उड़ते हुए निकट आ रही थी, कलम को निकट आते-आते देखकर ली पाई ने हाथ बढ़ा कर उसे पकड़ना चाहा, अभी उसकी उंगली कलम को छूने को ही थि कि उसका सपना टूट गया और फूल की कलम अदृश्य हो गयी।

सपने से जागने के बाद ली पाई ने फूल की कलम वाली जगह पहचानने की लाख कोशिश की, पर उसे सफलता नहीं मिला। तो वह देश के विभिन्न मशहूर पहाड़ों और नदियों का दौरा करने निकला और फूल की कलम वाला स्थान ढूंढ़ता रहा। अंत में ली पाई हुआंग शान पर्वत आया, पर्वत घाटी में सीधा खड़ी उस कलम रूपी चोटी को देख कर ली पाई के मुंह से यह शब्द निकलाः वाह, यही वही फूल की कलम है, जो मैंने सपने में देखी था।

कहते थे कि फूल की कलम वाला पर्वत देखने के बाद ली पाई की कविताओं में नई ताजगी आ गयी, उसके कलम से तमाम मशहूर कविताएं निकलीं।

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