03 ख्वा फ़ू का सूर्य का पीछा करना
ख्वा फ़ू का सूर्य का पीछा करना 夸父逐日
चीन की प्राचीन पौराणिक कथाओं में ऐसे कई वीरों की कहानियां मिलती हैं, जिन्होंने अपनी बुद्धिमता, साहस और दृढ़ संकल्प का परिचय देकर लोगों की सेवा में अपना जीवन लगा दिया।"ख्वा फ़ू के सूर्य का पीछा करना"नाम की पौराणिक कहानी को"ख्वा फ़ू चू रइ"(kuā fù zhú rì) कहते हैं।
प्रचीन काल में उत्तर की दिशा में वीरान मैदान पर एक गगनचुंबी पर्वत खड़ा था, पर्वत के घने जंगल में तमाम भीमकाय जीव रहते थे, उनके मुखिया के कानों में दो स्वर्णिम सांप लटकते थे और हाथों में दो सांप होते थे। उसका नाम था ख्वा फ़ू। इसी से कबीले का नाम भी ख्वा फ़ू पड़ गया। ख्वा फ़ू कबीले के लोग दयालु, बहादुर और मेहनती थे, वे सदियों से शांत और खुशहाल जीवन बिताते थे।
एक साल, मौसम बहुत गर्म हो गया। सूरज की तपती किरणें सीधे जमीन पर पड़ी, जिससे पेड़ पौधे सभी सूख कर मर गए, नदियों और झीलों का पानी भी सूख गया और इंसान तपती गर्मी को सहन नहीं कर पाया, ख्वा फ़ू कबीले के लोग भी गर्मी से मर गए।
कबीले का मुखिया होने के नाते ख्वा फ़ू और अधिक दुखी हो गया, ऊपर सूरज की ओर देखते हुए उसने कहा:"यह सूरज बड़ा दुष्ट है, मैं उसका पीछा कर उसे पकड़ लूंगा और उसे मानव के आदेश का पालन करने पर मजबूर करूंगा।"
कबीले के लोगों ने उसे मनाने की कोशिश की, किसी ने कहा:"आप कतई न जाए, सूरज हमसे बहुत दूर रहता है, वहां पहुंचने तक आप थकान के मारे मर जाएंगे।"
किसी ने कहा:"सूरज बहुत गर्म है, आप उसकी गर्मी से जल जाएंगे।"
लेकिन ख्वा फ़ू का संकल्प पक्का था। उससे कबीले के लोगों का दुख नहीं देखा गया:उसने कहा"आप लोगों के सुखचैन के लिए मैं सूरज को जरूर पकड़ूंगा।"
कबीले के लोगों से विदा होकर ख्वा फ़ू पूरब की दिशा में चल दिया। तेज़ कदमों से वह हवा के वेग से आगे बढ़ा। आसमान में सूरज भी तेज गति से दौड़ रहा था। ख्वा फ़ू उसका पीछा करने के लिए पूरी ताकत से दौड़ने लगा। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों को पार किया, बड़ी-बड़ी नदियों से गुजरा। जमीन उसके कदमों से कांप उठी।
थक चुके, ख्वा फ़ू ने रुक कर जूते के भीतर पड़ी रेत को निकाल कर जमीन पर फेंका, जो एक ऊंचे पहाड़ के रूप में बदल गया। खाना बनाने के लिए तीन पत्थरों का चूल्हा बनाया, जिन्होंने त्रिपद वाली एक ऊंची गिरी का आकार ले लिया, जो हजारों मीटर ऊंची थी।
ख्वा फ़ू सूरज के पीछे आगे दौड़ता जा रहा। ज्यों-ज्यों वह सूरज के नजदीक पहुंचता गया, उसका विश्वास भी लगातार बढ़ता गया। अंत में ख्वा फ़ू उसी जगह, जहां सूर्यास्त होता था, सूरज के पास पहुंच गया। सूरज एक विशाल लाल अग्नि के गोले की भांति ख्वा फ़ू के सामने चमक रहा था, उसकी लाखों किरणों से वह आलोकित हो उठा।
ख्वा फ़ू अपनी दोनों बाहें फैला कर सूरज को पकड़ना चाह रहा था, किन्तु सूरज की किरणें बेहद तेज़ और तपती थी कि ख्वा फ़ू को बहुत प्यास लग गयी। इस पर उसने पीली नदी के किनारे पहुंचकर पीली नदी का पानी पिया, फिर वेई हअ नदी का पानी पिया, फिर भी प्यास नहीं बुझी, तो ख्वा फ़ू फिर उत्तर की दिशा में दौड़ते हुए हजारों मील विशाल तालाब पर भागे जा रहा था, तालाब के पानी से ख्वा फ़ू की प्यास बुझ सकती थी, लेकिन ख्वा फ़ू वहां तक नहीं पहुंच पाया, वह रास्ते में प्यासा और थकान से मर गया।
दम तोड़ते समय ख्वा फ़ू को मन में बड़ा दुख हुआ, उसका ख्याल अपने कबीले से जुड़ा था। उसने अपनी लाठी को दूर बाहर फेंक दिया, जहां लाठी गिरी, वहां तुरंत वहां आड़ू के पेड़ उग आए। आड़ू के पेड़ का जंगल सदियों से हरा भरा रहा , राह चलने वाले लोग इस जंगल की छाया में विश्राम कर सकते थे, ताजा-ताजा आड़ू से लोगों की प्यास बुझ सकती थी। ताकि वे आगे का सफर तय करते रहें।
"ख्वा फ़ू के सूर्य का पीछा करने"वाली कहानी में प्राचीन चीनी लोगों की सूखे पर विजय पाने की अभिलाषा व्यक्त हुई है। हां, ख्वा फ़ू ने अपनी जान न्यौछावर कर दी, लेकिन उसकी अदम्य भावना अमर है, इसलिए चीन की तमाम प्राचीन पुस्तकों में ख्वा फ़ू की कहानी का उल्लेख मिलता है।