026 स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत

2017-05-02 19:36:21 CRI

026 स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत

स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत 鹬蚌相争

"स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत"कहानी को चीनी भाषा में"यू पांग श्यांग चंग"(yù bàng xiāng zhēng) कहा जाता है। इसमें"यू"स्नाइप और"पांग" सीप है, जबकि"श्यांग"का अर्थ है एक दूसरे, और"चंग"का अर्थ है लड़ाई और संघर्ष।

कहते है कि एक दिन एक बड़ी सी सीप नदी के किनारे पर आ गयी, उसके दो बड़े-बड़े गोलाकार खोल धीरे-धीरे खुल गए और वह आराम से आराम से रेत पर धूप का आनंद लेने लगी।

तभी, एक स्नाइप नामक जल पक्षी नदी के किनारे-किनारे खाने की तलाश में घूम रहा था, उसकी तेज़ और नुकीली चोंच कभी पानी में तैरती छोटी मछली को मार कर पकड़ रही थी, तो वह कभी पानी में रहने वाले कीड़ों को पकड़ कर खा रहा था। उसने देखा कि रेत पर एक बड़ी सीप लेटी हुई है, उसके खुले खोलों के बीच ताज़ा मांस भी दिखा, तो उसे सीप का शिकार करने का लालच आया। उसने अपनी तेज़ चोंच को ज़ोर से सीप के शरीर में मारा। अचानक सीप के दोनों खोल चोट लगने से अचानक बंद हो गए। और स्नाइप की चोंच खोल के बीच में जकड़ गई।

स्नाइप ने अपनी चोंच से ज़ोर से सीप का मांस पकड़ा और सीप ने अपने खोलों से स्नाइप की चोंच को कस कर पकड़ लिया। दोनों में से कोई भी दूसरे को छोड़ना नहीं चाहता था।

स्नाइप ने धमकी देते हुए कहा:"आज बारिश नहीं हुई है, और कल भी नहीं होगी। तुम धूप में सूखकर मर जाओगी।"

सीप ने भी धमकी भरे लहजे में जवाब दिया:"आज तुम्हारी चोंच नहीं निकल सकी, कल भी नहीं निकलेगी, तो तुम भूख से मर जाओगे।"

इसी तरह दोनों नदी के किनारे एक-दूसरे से चिपटे रहे। कुछ देर के बाद एक मछुआरा नदी के किनारे आ पहुंचा। उसने देखा कि स्नाइप और सीप एक दूसरे को पकड़े हुए आपस में भिड़ रहे हैं, तो उसने बड़े आराम के साथ सीप और स्नाइप दोनों को पकड़ा और बांस के बड़े टोकरे में डाल कर घर ले गया।

"स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत"यानी चीनी भाषा में"यू पांग श्यांग चंग"(yù bàng xiāng zhēng) यह चीन में बहुत लोकप्रिय नीति कथा है, वह लोगों को बताती है कि एक दूसरे को दुश्मन समझ कर आपस में लड़ाई करने से किसी तीसरे पक्ष को इसका लाभ मिल सकता है। और दोनों को नुकसान हो सकता है।

026 स्नाइप और सीप की लड़ाई का अंत

ढोंगी व्यक्ति और कछुआ 再爬一回

"ढोंगी व्यक्ति और कछुआ"कहानी को चीनी भाषा में"ज़ाइ फा यी हुई"(zài pá yī huí) कहा जात है।"ज़ाइ"का अर्थ है फिर से, और"फा"का अर्थ है रेंगना या पेट के बल चलना, जबकि"यी हुई"का अर्थ है एक बार।

बहुत पहले की बात है। एक व्यक्ति बड़ा ढोंगी था, वह अक्सर दयालु होने का ढोंग करता था। एक दिन, उस आदमी ने एक कछुवा पकड़ा। वह कछुए को पका कर खाना चाहता था, क्योंकि वह जानता था कि कछुए का सूप स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। लेकिन वह यह नहीं चाहता था कि कछुए की हत्या का दोष उस पर पड़े। उसने बहुत सोचा और अंत में उसे एक तरकीब सूझी। उसने एक बड़े से बर्तन में पानी उबाला, फिर बर्तन के ऊपर पुल के रूप में एक पतली लकड़ी रख दी।

उस आदमी ने कछुए से कहा:"हम दोनों एक शर्त लगाते हैं, यदि तुम इस लकड़ी के पुल को पार करने में सफल हो गए, तो मैं तुम्हें नदी में छोड़ दूंगा।"

कछुए को आदमी की साजिश के बारे में पता था, लेकिन उसे अपनी जान भी बचानी थी, इसलिए उसने शर्त मान ली। वह पतली लकड़ी और उबले हुए पानी की गर्मी को बमुश्किल सहन कते हुए लकड़ी के दूसरे छोर पर जा पहुंचा। लेकिन ढोंगी व्यक्ति कछुए के शर्त जीतने पर बोला, "वाह, बड़ा करिश्मा कर दिया तुमने, सर्कस की रस्सी पर चलने का कौशल दिखाने की तरह तुमने

इस पुल को पार किया। तुम एक बार फिर अपना यह कौशल दिखाओ।"

"ढोंगी व्यक्ति और कछुआ"यानी चीनी भाषा में"ज़ाइ फा यी हुई"(zài pá yī huí) कहानी में वह आदमी कितना ढोंगी निकला, पहले कछुए का सूप पीना चाहता था, और ऊपर से अहिंसक होने का नाटक भी करने लगा।

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