025 कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी

2017-04-25 19:10:20 CRI

025 कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी

कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी     掩耳盗铃

"कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी"नाम की नीति कथा को चीनी भाषा में"यान अर ताओ लिंग"(yǎn ěr dào líng) कहा जाता है। इसमें"यान" का अर्थ है बंद करना और"अर"का अर्थ है कान,"यान अर"का अर्थ तो निकलता है हाथ से कान को बंद करना।"ताओ"का अर्थ है चुराना और"लिंग"का अर्थ होता है घंटी।

प्राचीन काल की कहानी है। एक चोर शहर के धनी परिवार के आंगन में घुस गया। उसने आंगन में एक घंटा देखा। चोर उसे घंटे को चोर कर ले जाना चाहता था, पर घंटा बड़ा था और चोर उसे उठा कर ले जाने में असमर्थ था, फिर चोर ने घंटे को तोड़ कर उसके टुकड़े कर बेचने के बारे में सोचा।

घंटे को तोड़ कर टुकड़े करने में तेज़ आवाज सुनाई पड़ सकती थी और घर के लोग जाग कर उसे पकड़ सकते थे। यह सोच कर चोर फिर चोरी करने का दूसरा तरीका सोचने लगा। उसे ध्यान आया कि लोग इसलिए घंटी की आवाज़ सुन सकते हैं, क्योंकि उनके कान होते हैं, यदि कान को किसी चीज़ से बन्द कर दिया जाय, तो कोई भी आवाज़ नहीं सुन सकता।

यह सोचकर चोर को बड़ी राहत मिली, उसने रूई के दो टुकड़े ढूंढ़कर उसे अपने कानों में ठूंस दिया, फिर उसने बिना किसी चिंता के साथ घंटे को तोड़ना शुरू किया।

हां, चोर के कान तो बंद हो गए थे, किन्तु दूसरों के कान खुले

थे। घंटा टूटने की आवाज़ सुनकर लोग कमरे से बाहर निकले और उन्होंने चोर को पकड़ लिया।

"कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी"नाम की नीति कथा में वह चोर तो बुद्धूराम निकला, जो सोचता था कि अपने कान में रूई डालने से दूसरे लोगों को सुनाई नहीं देगा। वह बिलकुल अपने आप को धोखा देता है।

025 कान को हाथ से बन्द करके घंटी की चोरी

साहब ये की पसंद ड्रैगन     叶公好龙

"साहब ये की पसंद ड्रैगन"नीम की नीति कथा को चीनी भाषा में"ये कोंग हाउ लोंग"(yè gōng hào lóng) कहा जात है। इसमें"ये कोंग"व्यक्ति का नाम है, उच्चारण में चौथी टॉन में तीसरे"हाउ"का अर्थ है पसंद करना, अगर इस शब्द की टॉन तीसरी में होती, तो अर्थ है अच्छा। जैसा कि चीनी भाषा में हम नी हाउ यानी नमस्ते कहते हैं। चौथा शब्द"लोंग"का अर्थ है ड्रैगन।

कहते हैं कि बहुत पहले ये नाम का एक साहब था। उसे ड्रैगन बहुत पसंद था। उसके घर के दरवाज़ों, खिड़कियों और स्तंभों पर ड्रैगन के चित्र लगे थे। दीवारों पर ड्रैगन के विशाल चित्र खींचे गए थे और कपड़ों, बिस्तरों और मच्छरदानी पर भी ड्रैगन के सुन्दर चित्र बनाए गए थे।

शहर और उसके आस पास की जगहों में सभी लोग जानते थे कि साहब ये ड्रैगन को बहुत प्यार करते हैं। खबर स्वर्ग लोक के असली ड्रैगन के कान तक पहुंची, वह बहुत पभावित हुआ और सोचा:"क्यों न नीचे उतर कर साहब ये से मिलने जाए।"

असली ड्रैगन साहब ये के घर पहुंचा। उसका शरीर ये घर के हॉल में लगे खंभे पर लिपटा। पूंछ फ़र्श पर फैली और सिर साहब ये के कमरे में पहुंचा। असली ड्रैगन को देखकर साहब ये बेहद डर गया, चेहरे का रंग एकदम उड़ गया, वह तुरंत बाहर की ओर भागा।

असल में साहब ये को असली ड्रैगन पसंद नहीं था, उसे पसंद था नकली ड्रैगन। यानी वह असली चीज़ की जगह नकली चीज़ पसंद करता था। इस स्वभाव के लोग अपनी बातों के पक्के नहीं होते।

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