024 लोहे के डंडे को सुई का रूप
लोहे के डंडे को सुई का रूप 铁杵磨针
"लोहे के डंडे को सुई का रूप"कहानी को चीनी भाषा में"थ्ये छू मो छंग चन"(tiě chǔ mó chéng zhēn) कहा जाता है। इसमें"थ्ये छू"लोहे का डंडा है, जबकि "मो"एक क्रिया शब्द और अर्थ है पीसना,"छंग"का अर्थ है बन होना और"चन"का अर्थ तो हो सुई।
कहते हैं कि चीन के थांग राजवंश (618-907) के महान कवि ली पाई को बचपन में पढ़ाई करना पसंद नहीं था। वह अक्सर स्कूल से भाग जाता था। एक दिन एक पाठ का आधा भाग भी नहीं पढ़ पाया था कि उसका मन पढ़ाई से उचाट हो गया। वह सोचता था कि इतनी मोटी पुस्तक पढ़ने में बेवजह समय बर्बाद होता है, पढ़ाई छोड़कर वह बाहर खेलने चला गया।
ली पाई बड़ी खुशी में कूदते हुए आगे बढ़ रहा था। अचानक कान में छा-छा-छा की आवाज सुनाई पड़ी। उसने चारों ओर नज़र दौड़ाई और देखा, सड़क किनारे बैठी एक बूढ़ी औरत पत्थर पर एक लोहे के डंडे को रगड़ते हुए उसे पतला बनाने की कोशिश कर रही थी। ली पाई को बड़ा ताज्जुब हुआ और वह पास बैठ कर महिला की मेहनते के बारे में सोचने लगा।
बूढ़ी औरत का ध्यान लोहे का डंडा रगड़ने में लगा था, और उसने ली पाई पर ध्यान नहीं दिया। थोड़ी देर में ली पाई की जिज्ञासा और बढ़ी। उसने पूछा:" दादी मां, तुम यह क्या कर रही हो?"
"मैं इस लोहे के डंडे को सुई का रूप दे रही हूं।"बूढ़ी औरत ने जवाब दिया।
"सुई बना रही हो!"ली पाई का कौतुहल और बढ़ा, "आखिर इस मोटे डंडे को भला सुई कैसे बनाया जा सकता है?"
बूढ़ी औरत ने तभी सिर उठा कर कहा:"बेटा, लोहे का डंडा कितना भी मोटा क्यों न हो, पर मैं रोज़ उसे रगड़ कर पतला बनाने की कोशिश करती रहूंगी, एक न एक दिन वह सुई बन जाएगा।"
वृद्धा का तर्क सुनने के बाद ली पाई का दिमाग खुल गया। उसने मन ही मन में सोचा कि दादी मां की बात बिलकुल ठीक है। जब हम लगातार कोशिश करते रहेंगे, तो काम कितना भी कठिन क्यों न हो, उसे अच्छी तरह पूरा किया जा सकता है। वह इसी क्षण घर लौटा, और ज़मीन पर पड़ी पुस्तक उठाकर लगन से पढ़ने लगा। वर्षों की कड़ी मेहनत के बाद ली पाई चीन का महान कवि बन गया।
"लोहे के डंडे को सुई का रूप" चीनी छात्रों को मेहनत से अध्ययन करने के लिए प्रेरित करने वाली लोकप्रिय कहानी है। हां, चीन के प्राचीन महा कवि ली पाई एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे, लेकिन उनकी महान सफलता कड़ी मेहनत पर आधारित थी। इसलिए वह छात्रों के लिए एक आदर्श मिसाल हैं।
बेमतलब का तर्क-वितर्क 无谓的争论
"बेमतलब का तर्क-वितर्क"नाम की कहानी को चीनी भाषा में"वू वेइ द चंग लुन"(wú wèi de zhēng lùn) कहा जाता है। इस में"वू वेई द"एक विशेषण शब्द है, जिसका अर्थ है बेमतलब का, जबकि"चंग लुन"का अर्थ है तर्क-वितर्क या विद-विवाद।
बहुत पहले की बात है। एक दिन दोनों भाई शिकार करने घास के मैदान गए। दूर आकाश में जंगली हंसों का एक झुंड नज़दीक उड़ता नज़र आया। दोनों भाई अपने-अपने तीर को जंगली हंस की ओर साध ही रहे थे कि बड़े भाई ने कहा:"देखो, भाई, इस मौसम में जंगली हंस का मांस बड़ा ताजा और स्वादिष्ट होता है, उसे पानी में उबाल कर खाने से मज़ा आएगा।"
छोटे भाई ने भाई के सुझाव का विरोध किया और कहा:"हंस का मांस उबाल कर पकाया जाता है, लेकिन जंगली हंस का मांस भून कर पकाने में ज्यादा स्वादिष्ट होगा।"
"मेरी मानो, पानी में उबाल कर ले आओ।"बड़े भाई ने ज़ोर देते हुए कहा।
"इस बार मेरी बात चलेगी, उसे आग में भूनकर बनया जाएगा।"छोटा भाई अपनी जिद् पर कायम रहा।
इस तरह दोनों अपनी-अपनी राय देते रहे और आपस में वाद-विवाद जारी रहा। अंत में दोनों भाई वापस लौटकर गांव के मुखिया के सामने जा पहुंचे। वृद्ध मुखिया ने उनके झगड़े को सुलझाने का यह उपाय रखा:"जंगली हंस का आधा भाग उबाला जाएगा और आधा भाग भूना जाएगा।"
दोनों भाई राजी हो गए और फिर घास के मैदान में वापस लौटे। तब तक बहुत देर हो चुकी थी और आकाश में हंस की परछाई भी नहीं थी।
"बेमतलब का तर्क वितर्क"नाम की नीति कथा हमें बताती है कि किसी काम को पूरा करने से पहले बेकार के तर्क वितर्क में लग जाने का यही परिणाम होता है।