कुमारजीव द्वारा अनुदित बौद्ध ग्रंथों का अत्यन्त दीर्घकालीन और व्यापक प्रभाव पड़ा। वे ग्रंथ चीनी दर्शन और साहित्य के विकास में सहायक सिद्ध हुए। कुमारजीव मूल रचनाओं के अर्थ को विशुद्ध धारावाहिक चीनी भाषा में व्यक्त कर सकते थे। उन्होंने विभिन्न विचार शाखाओं के ग्रंथों का अनुवाद किया, कुमारजीव के द्वारा अनुदित ज्यादातर ग्रंथों को दार्शनिक साहित्यक और धार्मिक जगत में बहुत मूल्यवान समझा जाता है। मूल रचनाओं की शैली को पूर्व वर्ती अनुवादकों को काफी पीछे छोड़ दिया। जब कभी हमें चीनी ग्रंथ में बौद्ध अनुवादकों की शैली की चर्चा करनी होती है, तो हम मुख्यतः कुमारजीव कालीन अनुवाद शैली का ही उल्लेख करते हैं।
इसका मुख्य श्रेय कुमारजीव को ही है। साथ ही कुमारजीव एक कवि भी थे। दुर्भाग्यवश अब उनकी केवल एक ही कविता उपलब्ध है। दर्शन के क्षेत्र में कुमारजीव का भी महान योगदान था। उनके दो शिष्य, चीन के दो मह्तवपूर्ण दार्शनिक थे। ताओ शङ ध्यान संप्रदाय का एक संस्थापक था। चीनी दर्शन के इतिहास में जब हम इस काल की मौतिकवादी और आदर्शवादी विचार शाखाओं के बीच हुई अनेक गरमागरम बहसों पर नजर डालते हैं, तो कुमारजीव की भूमिका कमी नहीं भूल सकते, जिन्होंने चीनियों को भारतीय बौद्ध दर्शन से अवगत कराया। उन्होंने सम्पूर्ण चीनी दर्शन को समृद्ध बनाया।
कुमारजीव एक ऐसे श्रेष्ठ भारतीय विद्वान थे। जिन्होंने चीनी धर्म दर्शन और साहित्य को बेहद प्रभावित किया। उनकी ख्याति चीन और भारत की जनता की मैत्री के चिरन्तन स्मारक के रुप में अनन्त काल तक बनी रहेगी।