उन्होंने पहले बौद्ध धर्म की हीनयान शाखा का अध्ययन किया और फिर महायान शाखा का। कूचा लौटने के बाद उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा और व्याख्यान देने शुरु कर दिये। इस तरह उनकी ख्याति बढ़ती गई। बाद में उनकी माता भारत चली गई। जाने से पहले उन्होंने कुमारजीव से कहा कि वह चीन के भीतरी क्षेत्र में जाकर भारी योगदान कर सकता है, हालांकि इस कार्य में सम्भवतः मुसीबतों का सामना करना पड़ेगा। कुमारजीव ने जवाब में कहा, अगर मैं दूसरे लोगों को फायदा पहुंचा सकूं, तो कठोर से कठोर यंत्रणाएं सहकर भी सन्तोषपूर्वक पर सकूंगा।
उस काल में पूर्व कालीन छिन नरेश फू च्येन बड़ा शक्तिशाली था। उत्तर में उस का काफी प्रभुत्व था। 382 ईसवी में उसने अपने जनरल ल्यू क्वांग को कूचा पर विजय पाने और कुमारजीव को राजधानी शीएन में ले आने का आदेश दिया। ल्यू क्वांग ने सन 384 में कूचा राज्य पर विजय पायी। लेकिन, अगले वर्ष जब राजा फू च्येन मारा गया, तो ल्यू क्वांग ने शीएन लौटने के बदले अपने को एक स्वतंत्र राज्य का शासक घोषित कर दिया औह कुमारजीव को अपने पास रखा उसने कुमारजीव के साथ बड़ा अपमानजनक व्यवहार किया। इसी बीच, याओ छांग ने पूर्व कालीन छिन राजवंश का तख्ता पलट दिया और उत्तर कालीन छिन राजवंश की नींव डाली। याओ छांग का उत्तराधिकारी याओ शिंग था, जो बौद्ध धर्म का अनुयायी था। उस ने सन् 401 में ल्यू क्वांग को पराजित किया और कुमारजीव को अपनी राजधानी में बुला लिया।