अखिल- दोस्तों, आपका एक बार फिर स्वागत है हमारे इस मजेदार कार्यक्रम संडे की मस्ती में... मैं हूं आपका दोस्त एन होस्ट अखिल।
सपना- और मैं हूं आपकी दोस्त सपना....
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सपना- चलिए दोस्तों, अभी हम अखिल जी से सुनते हैं एक प्रेरक कहानी। सुनिए प्रियंका योशिकावा – नस्लवाद को हरा मिस जापान बनने की कहानी
अखिल- दोस्तों, आज मैं आपको अपने साहस के दम पर अपना सपना पूरा करने वाली प्रियंका योशिकावा की inspirational life के बारे में बताने जा रहा हूं। उन्होंने कैसे नस्लवाद के पूर्वाग्रह को हराकर मिस जापान का ख़िताब अपने नाम किया।
दोस्तों, प्रियंका योशिकावा को इस साल 6 सितम्बर 2016 को मिस जापान के खिताब से नवाजा गया। लेकिन प्रियंका के लिए मिस जापान बनने का सफर आसान नहीं था और इसकी वजह थी नस्लवाद। जो नहीं जानते उन्हें बता दें कि नस्लवाद या racism का मतलब होता है किसी एक नस्ल का दूसरी नस्ल से भेदभाव करना। जैसे कि दुनिया के कई देशों में गोरे लोग खुद को काले लोगों से बेहतर मानते हैं और उनसे भेद-भाव का व्यवहार करते हैं। और जापान भी इस बुराई से अछूता नहीं है, जिस वजह से प्रियंका को भी तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ा।
प्रियंका के पिताजी श्री अरुण घोष के दादा जी प्रफुल्ल चन्द्र घोष पश्चिम बंगाल के प्रथम मुख्यमंत्री थे। पढ़ाई करने के लिए 1985 में अरुण घोष जापान गए और वहाँ पर उनकी मुलाकात एक जापानी लड़की नाओको से हुई जो कि तोक्यो के एक स्कुल में बांग्ला भाषा पढ़ाती थीं। एक जापानी लड़की का बांग्ला पढ़ाना अरुण घोष को बहुत अच्छा लगा और नाओको का यही अंदाज उन्हें भा गया और दोनो अच्छे दोस्त बन गए। धीरे धीरे यह दोस्ती प्यार में बदली और कुछ समय बाद दोनों ने शादी कर ली।
Priyanka Yoshikawa का बचपन
20 जनवरी 1994 को जापान की राजधानी टोकियो में घोष दंपत्ति के घर एक प्यारी सी बच्ची का जन्म हुआ जिसका नाम प्रियंका योशिकावा रखा गया। बचपन से ही उन्हें परिवार में दो संस्कृतियों का माहौल मिला। मिश्रित संस्कृति वाले परिवार की बेटी होने के नाते उनके हावभाव बंगालियों और जापानियों दोनों से मेल खाते थे। इसी वजह से प्रियंका को स्कुल में बच्चे हाफू कहकर चिढ़ाते थे।
हाफू का मतलब है आधा। चूँकि उनके अन्दर जापानी और भारतीय, दोनों ही जींस थीं और उनके लूक्स और रहन-सहन कुछ अलगा था, इसलिए साथी बच्चों को लगता था कि यह लड़की उनसे अलग है। इसी कारण से उनके दोस्त नहीं बनते थे और प्रियंका खुद को अकेला महसूस करती थीं। दरअसल, प्रियंका के स्कूली दिनों से ही नस्लवाद और भेदभाव का शिकार होती रहीं।
प्रियंका जब पहली बार भारत आई थी तब वह नौ साल की थी। उनके लिए यहाँ का माहौल जापान से बिल्कुल अलग था। जापान में तो बस मम्मी–पापा को बांग्ला बोलते देखा था पर यहाँ उनके चारों तरफ बांग्ला बोलने वाले लोग थे। कोलकाता में प्रियंका एक साल तक रहीं।
इस दौरान सड़कों पर घूमते गरीब बच्चों को देखकर प्रियंका ने तय कर लिया कि जब वह बड़ी हो जाएंगी तब गरीबी को दूर करने के लिए जरुर कुछ करेंगी। छोटी-सी उम्र से ही इस प्रकार के विचार रखना उनके कोमल हृदय और बड़ी सोच का परिचायक है।
प्रियंका योशिकावा एक मजबूत लड़की
दोस्तों, जिंदगी में हम कभी फिसलते हैं, तो कभी गिरते हैं, लेकिन जरुरी होता है, निराशा को पूरी तरह दरकिनार करते हुए अपने पूरे उत्साह, जोश और शक्ति के साथ फिर से उठना। प्रियंका के अंदर भी यही जज्बा था। मिश्रित संस्कृति की होने के कारण प्रियंका को नस्लीय भेदभाव के व्यवहार को भी सहना पड़ा लेकिन इस तरह के व्यवहार से वह फिसली जरुर पर टूटी नहीं बल्कि मजबूत इरादों के साथ उठ कर उन्होंने हर एक चुनौतियों का सामना किया। प्रियंका कहती हैं कि लोगों के व्यवहार ने उन्हें और मजबूत लड़की बना दिया। और शायद यही सकारात्मक सोच उन्हें मिस जापान के खिताब तक ले गयी।
प्रियंका का मिस जापान बनने का सफर
दोस्तों, एक दिन प्रियंका ने अपने पापा से कहा "पापा, मैं मिस जापान प्रतियोगिता में हिस्सा लेना चाहती हूँ।"और हमेशा की तरह उनके पिता ने अपनी बेटी का साथ दिया। प्रियंका पूरी लगन से मिस जापान बनने की तैयारी में जुट गई और उनकी मेहनत का फल उन्हें 6 सितंबर 2016 को मिस जापान के रूप में मिला। प्रियंका की कामयाबी पूरे जापान के लिए एक सुखद हैरानी थी और साथ ही भारत भी अपनी इस बेटी की सफलता से बेहद खुश था।
जीत का विरोध
दोस्तों, हाफू के खिताब को पीछे छोड़ जब प्रियंका ने मिस जापान का खिताब जीत लिया तो नस्लवाद में लिप्त कई जापानियों को ये बात हज़म नहीं हुई और उन्होंने इस बात का विरोध किया। लेकिन मिस जापान चुनने वाली संस्था के अधिकारी टोमोको मोरीकावा ने कहा कि प्रियंका को उनकी खूबसूरती और समाज में योगदान के लिए चुना गया और वह पूरी तरह से मिस जापान बनने लायक है। ये भी एक दुखद पहलु है कि भारत में भी कुछ लोगों ने उनकी नस्ल को लेकर टिप्पणियां कीं और सोशल मीडिया पर भी उनका मजाक उड़ाने वाले सक्रीय थे। पर मजबूत प्रियंका इन हमलो से कहाँ विचलित होने वालें थीं हुई। उन्होंने कहा- मैं खुशनसीब हूँ कि मुझे जापानी और भारतीय संस्कृति के बीच पलने-बढ़ने का मौका मिला। मेरे पापा भारतीय है इस बात का मुझे गर्व है लेकिन लोग यह क्यों भूल जाते है कि मेरी मम्मी जापानी है इसलिए मैं एक जापानी भी हूँ।"
दोस्तों, आज प्रियंका अपनी जीत से बेहद खुश हैं। उन्हें उम्मीद है कि उनकी कामयाबी जापान के लोगों के मन से नस्ली भेदभाव की भावना कम पाएगी। अब उनका अगला लक्ष्य दिसम्बर में होने वाली मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता का खिताब जीतना है और दुनिया भर में फैली नस्लीय भेदभाव की बुराई को ख़त्म करना है।
क्या सीख देती है प्रियंका की कहानी?
1. तमाम मुश्किलों के बाद भी आप अपने जीवन में सफलता की सीढ़ी चढ़ सकते हैं।
2. जब लोग आप पर पत्थर फेंकें तो उनसे डरें नहीं, बल्कि उन पत्थरों से अपना महल तैयार कर लें।
3. नस्लवाद बुरी चीज है और एक इंसान को दूसरे इंसान का सम्मान करना चाहिए।
सपना- तो दोस्तों, ये थी अखिल द्वारा प्रस्तुत प्रियंका योशिकावा – नस्लवाद को हरा मिस जापान बनने की कहानी। उम्मीद करते हैं कि आपको जरूर पसंद आयी होगी। चलिए दोस्तों, हर बार की तरह इस बार भी हम आपको नई रिलिज हिन्दी फिल्मों के बारे मे बताएंगे और फिल्म का प्रोमो भी सुनवाएंगे। हम आपको बताते हैं कि इस शुक्रवार रिलिज हुई है फिल्म '31 अक्टूबर'
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अखिल- दोस्तों, इस शुक्रवार को सोहा अली खान और वीर दास स्टारर 1984 के सिख दंगों पर बनी फिल्म '31 अक्टूबर' रिलिज हुई है। फिल्म के प्रड्यूसर और राइटर हैरी सचदेवा का कहना है कि उन्होंने 1984 की सच्ची घटना पर फिल्म बनाई है। आपको बता दें कि 31 अक्टूबर 1984 को भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी और यह फिल्म इस घटना पर आधारित है। आइए... सुनते हैं इस फिल्म का प्रोमो...
(Trailor- 31 October)
सपना- तो दोस्तों, यह था फिल्म '31 अक्टूबर' का ट्रेलर, चलिए हंसी-खुशी की डबल डोज देने के लिए हम हर बार की तरह इस बार भी आपके लिए लेकर आए हैं कुछ मजेदार जोक्स, जिन्हें सुनकर आप जरूर हो जाएंगे लोट-पोट... आइए.. सुनते हैं ये कुछ मजेदार जोक्स
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1. एक दिन पप्पू के सामने भगवान प्रकट हुए और पप्पू से बोले- बोल, तुझे क्या चाहिए। पप्पू ने कहा- भगवान, मुझे एक जॉब चाहिए, एक पैसे से भरा बैग चाहिए, बड़ी-सी गाड़ी चाहिए और उस गाड़ी में कई सारी लड़कियों का साथ चाहिए। भगवान बोले- तथास्तु! और आज पप्पू महिलाओं की बस में कंडक्टर है! (हंसी की आवाज)
2. पत्नी अपने पति से बोली- सुना है पति पत्नी को स्वर्ग में साथ-साथ नहीं रहने देते है। पति ने कहा- पगली तभी तो उसे स्वर्ग कहते है। (हंसी की आवाज)
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अखिल- दोस्तों, चलिए... अब हम आपसे विदा लेते हैं। अब हमारा जाने का वक्त हो चला है... अगले हफ्ते हम फिर लौटेंगे, इसी समय, इसी दिन अपनी मस्ती की पाठशाला लेकर। आप हमें लेटर लिखकर या ई-मेल के जरिए अपनी प्रतिक्रिया, चुटकुले, हंसी-मजाक, मजेदार शायरी, अजीबोगरीब किस्से या बातें भेज सकते हैं। हमारा पता है hindi@cri.com.cn। अभी के लिए मुझे और सपना को दीजिए इजाजत। गुड बॉय, नमस्ते।