रांग पो और पत्नि श्ये लीश्यांग
तिब्बती युवा रांग पो का जन्मस्थान रोअरगे कांउटी के पानयो गांव में है। 8 साल की उम्र से ही वह रोअरगेई घास के मैदान में पशुपालन करने लगा। उसे औपचारिक शिक्षा ग्रहण करने का मौका नहीं मिला। लेकिन कांउटी शहर से नज़दीक रहने के कारण वह चीनी हान जाति के लोगों के साथ बहुत परिचित हो गया। वह चीनी भाषा बोलने में निपुण है। औपचारिक शिक्षा न लेने के बावजूद उसके ज्ञान में कोई कमी नहीं है। उसकी ईमानदारी और घास के मैदान जैसे बड़े दिल ने थाईवान से आई श्ये लीश्यांग को प्रभावित किया। आपसी समझ बढ़ने के बाद दोनों के बीच प्रेम पनपने लगा। अंत में उन्होंने विवाह करने का फैसला किया। विवाह के बाद श्ये लीश्यांग रांग पो के साथ शांगहाई और शनचन जैसे बड़े शहर गई, जहां उन्होंने अपने नये जीवन की खोज की। लेकिन आधुनिक बड़े शहरों का जीवन रांग पो को रास नहीं आया। इसकी चर्चा करते हुए उसने कहा:" मैं बड़े शहरों के माहौल के अनुकूल नहीं हो पाया। जन्म से ही घास के मैदान में रहने लगा। हम तिब्बती लोगों और घास के मैदान के बीच बहुत गहरी भावना होती है। घास के मैदान में स्वच्छ हवा और वातावरण बेहतर लगता है। शहरों की भीड़-भाड़ और लोगों के बीच संबंध जटिल होते हैं। हम लोग शांत माहौल से परिचित होते हैं। घास के मैदान में रहने पर बहुत खुशी होती है।"
श्ये लीश्यांग के साथ विचार विमर्श के बाद पति-पत्नी ने रोअरगेई कांउटी के पानयो गांव वापस लौटने का फैसला किया। वे आम तिब्बती लोगों की तरह साधारण जीवन बिताने लगे। हर दिन रांग पो अपनी प्रेमी श्ये लीश्यांग को घास-मैदान में हुई कहानी सुनाते हैं। तिब्बती लोगों के रीति रिवाज़, परम्परा और संस्कृति से अवगत कराते हैं। जीवन बहुत सुंदर और अच्छा है। एक दिन, उन्होंने घास के मैदान में अपना"वो"यानी छोटा सा सरल घर बनाने पर सोचा। यह उनके प्रेम का गवाह ही नहीं, बल्कि इससे रोअरगेई में दुनिया के विभिन्न स्थलों से आने वाले पर्यटकों को तिब्बती और हान जाति की संस्कृति और कला से रूबरू कराया गया। फिर"पुलाओ वो"का निर्माण किया गया। इसकी चर्चा करते हुए तिब्बती बंधु रांग पो ने कहा:"मेरी पत्नी वास्तुकार है। उसे मकान का निर्माण करना और कलात्मक वस्तुएं बनाना पसंद है। हम सुन्दर वास्तु-निर्माण और तिब्बती संस्कृति का मिश्रण पर्यटकों को दिखाना चाहते हैं। यह हम दोनों का सपना भी है।"