"रअकुंग"तिब्बती भाषा में"रअकुंग सेचोम"का संक्षिप्त शब्द है, जिसका मतलब है सपना पूरा करने वाली स्वर्ण घाटी होता है। आज का रअकुंग क्षेत्र छिंगहाई तिब्बत पठार स्थित छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती प्रिफेक्चर की थोंगरन कांउटी है। रअकुंग कला तिब्बत में ही नहीं, देश भर में, यहां तक कि विश्व में बहुत प्रसिद्ध है। इस कला का जन्म 13वीं शताब्दी में हुआ। यह तिब्बती बौद्ध धर्म के मठों में प्रचलित परंपरागत हस्त कला है।
रअकोंग कला चीन में तिब्बती बौद्ध धार्मिक कला का एक अहम भाग है, जिसमें मुख्य तौर पर थांगखा चित्र, त्वेशो चित्र, मूर्ति निर्माण, रंगीन चित्र, डिज़ाइन और घी से बनाए गये फूल आदि शामिल हैं। रअकोंग कला का जन्म पश्चिमी चीन के छिंगहाई प्रांत के ह्वांगनान तिब्बती स्वायत्त प्रिफेक्चर की थोंगरन कांउटी के लोंगवू नदी के तट पर स्थित रअकोंग में हुआ। रअकोंग कला का इतिहास आज से कोई 700 से अधिक वर्ष पुराना है। इतने वर्षों में रअकोंग कला के कलाकार चीन में तिब्बत स्वायत्त प्रदेश, छिंगहाई, स्छ्वान, कानसू आदि प्रांत और भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के साथ भारत, नेपाल, मंगोलिया और थाईलैंड जैसे देशों में फैले हुए हैं। उन्होंने अधिकांश सुन्दर कलात्मक वस्तुएं रचीं। वर्ष 2009 में रअकोंग कला को यूनेस्को द्वारा "मानव के गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की सूची"में शामिल किया गया।
वूथुन गांव थोंगरन कांउटी के लोंगवू कस्बे में स्थित है। लोंगवू नदी से थांगखा चित्र बनाने वाले कुछ गांवों का बंटवारा हुआ है। जिनमें ऊपरी वूथुन गांव और निचला वूथुन गांव सबसे मशहूर है। आम तौर पर कहा जाए, तो रअकोंग थांगखा ज्यादा तौर पर वुथुन थांगखा कहा जाता है। लम्बे समय में वुथुन वासियों का जीवन थांगखा चित्र बनाने पर निर्भर रहा है। इधर के सालों में बाज़ार में थांगखा चित्र की मान्यता हर साल बढ़ती जा रही है, इस तरह थांगखा चित्र बनाने से वुथुन वासियों को बड़ा आर्थिक लाभ भी मिला है।
"थांगखा"तिब्बती भाषा का शब्द है। यह कपड़े पर बनाये जाने वाला चित्र है। तिब्बती चरवाहे आम तौर पर घुमंतू जीवन बिताते हैं। घास के मैदान में पशुपालन करते समय वे अपने पास जरूर एक थांगखा चित्र रखते हैं और कभी कभार इसके सामने पूजा करते हैं। तिब्बती चरवाहों के दिल में थांगखा चित्र मठ का रूप माना जाता है। शिविर में हो, या पेड़ की शाखाओं पर, वे थांगखा लटकाकर पूजा करते हैं। यह उनके दिल में हमेशा पवित्र है।
थांगखा चित्र तिब्बती बौद्ध धर्म से घनिष्ट रूप से जुड़ने वाली कला है, थांगखा के माध्यम से बौद्ध धार्मिक कथाओं को प्रदर्शित करना चीनी तिब्बती जाति में पुरानी परम्परा रही है, बड़ी संख्या में तिब्बती लोग बड़े सम्मान के साथ घर में एक थांगखा चित्र खरीदकर लटकाते हैं, इसके साथ ही हर रोज इसकी पूजा करते हैं। धार्मिक संस्कृति और थांगखा कला का मूल सिर्फ गहराई से ही तिब्बत से नहीं जुड़ा है बल्कि सैकड़ों वर्षों की विरासत के रूप में तिब्बती जनता के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है, इतना ही नहीं, तिब्बती बौद्ध धर्म और मठों को छोड़कर तिब्बती चिकित्सा, खगोलशास्त्र और भूगोल पर भी उसका प्रभाव है।