लाई गीत की गायिका चीमाओ च्या
लाई गायिका ची माओच्या और गायक चोमा छाईरांग का जन्म कोंगहे कांउटी के पशुपालन क्षेत्र में हुआ और वहां बचपन में वे माता-पिता की पीढ़ी द्वारा गाए गए लाई गीत सुनते हुए पले-बढ़े हैं। बाद में परीश्रम अध्ययन और अभ्यास करने से उन्होंने लाई गीत गाने की तकनीक में अच्छी तरह महारत पाई है। इसी दौरान उन्होंने राष्ट्र स्तीय प्रतिनिधित्व वाले लाई उत्तराधिकारी छ्येची चोमा को गुरु मानकर उनसे लाई गीत सीखा। अपना लाई का जीवन बताते हुए चोमा छाईरांग ने कहा:
"14 या 15 वर्ष से ही मैं कभी कभार पिता पीढ़ी की वाले लोगों द्वारा गाए गए लाई गीत सुनता था। 20 वर्ष की उम्र में मैं कैसेट या टेप पर लाई गीता गाना सीखता था। इसके बाद मैंने कुछ लाई प्रतियिगिताओं में भाग लिया। गांव स्तरीय प्रतियोगिता से राष्ट्र स्तरीय मैच तक मैंने विभिन्न प्रकार वाली प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इसी दौरान मैं लाई को दिन ब दिन ज्यादा से ज्यादा पसंद करने लगा।"
गाना न गाते समय गायिका चीमाओ च्या बहुत शांत हैं। ज्यादा न बोलने के बावजूद वे हमेशा मुस्कुराहट से भरी हुई हैं। लाल-लाल चहरे पर सुन्दर और चमकदार आंखों वाली चीमाओ च्या एक खूबसूरत स्त्री हैं। आज तक उन्होंने दसेक विशेष लाई गीत एलबम जारी किया है, मात्र छिंगहाई प्रांत में ही नहीं, संपूर्ण तिब्बती बहुल क्षेत्रों में भी वे बहुत मशहूर लाई गायिका हैं।
लाई गायिका चीमाओ च्या का जन्म वर्ष 1962 में हुआ था, वर्ष 1984 में 18 की उम्र में उन्होंने मां के प्रोत्साहन से पहली बार जिला स्तरीय लोक प्रेम गीत प्रतियोगिता में भाग लिया और वो चैम्पियन बनीं। इसके बाद उन्होंने विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेते हुए काफ़ी अनुभव प्राप्त किया। चीमाओ च्या ने कहा कि लाई गाना गाते समय उन्हें बहुत आनंद और सुख मिलता है। उनका कहना है:
"लाई गाते समय मैं प्रतिद्वंद्वी के स्तर के अनुसार प्रेम गीत गाती हूँ। गायक और गायिका दोनों अपनी भावनाओं के अनुसार गाते हैं। याद है कि एक बार हमारे हाईनान तिब्बती स्वयात्त प्रिफेक्चर में लाई प्रतियोगिता का आयोजन हुआ था, जिसमें मैंने भाग लेकर पहला स्थान प्राप्त किया था। यह मेरे लिए सबसे अविस्मर्णीय बात थी। इसके बाद मैं धीरे-धीरे स्वायत्त प्रिफेक्चर में सुप्रसिद्ध हो गई।"
लाई तिब्बती पारंपरिक संस्कृति का एक भाग है। आधुनिक काल में लाई की विरासत लेते हुए विकास के सामने चुनौतियां मौजूद हैं। लाई गायक चोमा छाईरांग ने कहा कि आधुनिक सभ्यता और शहरीकरण के चलते कुछ स्थलों में लाई धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है। उनका कहना है:
"अब हमारे रहने का वातावरण बदल गया है। पहले हम पशुपालन क्षेत्र में रहते थे। जहां भी मन करता था वहां तक घूमते थे, तो गाने की आवाज़ कहां सुनाई जा सकती थी। लाई गाने में रूपक के वाक्यों का ज्यादा प्रयोग है। चरवाहे नज़र में आए ऊंचे-ऊंचे पर्वत, कल-कल बहती नदी और बकरियों और मवेशियों के झुंड जैसे दृश्यों को अपने गीत में शामिल करते थे। प्रकृति में लाई गाने में बेशुमार विषय होता है। चीन में सुधार और खुलेपन के बाद हमारे जीवन में भारी सुधार आया है। ज्यादा से ज्यादा चरवाहे चरागाह क्षेत्र में घुमंतू जीवन छोड़कर स्थाई जीवन बिताने लगे। वे शीविरों को छोड़कर स्थाई मकानों में रहते हैं। इस तरह लोगों के जीवनस्तर और विचारधाराओं में भारी परिवर्तन आया है। साथ ही लोगों की कल्पना शक्ति भी कम हो रही है। पहले पशुपालन के वक्त अगर चरवाहे दो पर्वत देखते थे, तो वे तुरंत इन्हें दो सुन्दरियों का रूपक मान लेते थे। लेकिन आज घर से बाहर जाकर गगनचुंबी इमारतें एकदम नज़र में आती हैं। इस्पात और सीमेंट से बनाई गई इमारतों के सामने लोग कैसे रूपक कर सकते?इस तरह कुछ पारंपरिक कलाओं का वातावरण और रस धीरे-धीरे लुप्त होने लगा है।"