फूलदार टोपी उइगुर जाति की वेषभूषा की एक अभिन्न वस्तु ही नहीं, बल्कि इस जाति के सौंदर्य का एक प्रतीक भी मानी जाती है। पहले थाडं राजवंश में पश्चिमी इलाके के अधिकांश उइगुर जाति के पुरुष ऊन से बनी शंक्वाकार टोपी, जिसके निचले किनारे ऊपर की ओर मुड़े होते थे, पहनना पसन्द करते थे। मिडं राजवंश तक अरबी देशों व मध्य एशिया की संस्कृति के प्रभाव में इस जाति के पुरुष अपने लम्बे बाल को काटकर छोटे आकार की कढ़ी हुई टोपी पहनने लगे थे। छिडं राजवंश के आरम्भ में उइगुर जाति की इस फूलदार टोपी के कपड़े व आकार में फिर सुधार आया। जाड़ों में वह पशुओं के खाल की व गर्मियों में रेशम की बनी होती थी, जिसके अग्रभाग में पक्षियों के पंख भी लगे होते थे। महिलाओं की टोपी पर सोने व चांदी के धागे निकला है। बादाम फारस से आए एक पेड़ का नाम है, जो शुष्क रेगिस्तान में उगता है। "यओ याडं चा चू"नामक पुस्तक में इसका वर्णन हुआ है कि बादाम के फल का गूदा कड़वा होता है और गुठली मीठी होती है। चीन के पश्चिमी इलाकों में यह अत्यन्त मूल्यवान फल माना जाता है। उइगुर जाति की जनता बादाम की विशेषता व नव चांद सी उसकी गुठली के आकार के अनुसार श्वेत रेशमी धागे से टोपी पर जड़ी छोटी छोटी सफेद मोती के बीच बादाम की डिजाइन भी काढ़ती है, जो चश्मे के बूंद-बूंद पानी से फलों से लदे पेड़ों की सिंचाई करने का प्रतीक माना जाता है। ऐसी साफ-सुथरी व अनोखी टोपी को खास तौर पर प्रौढ़ व बूढ़े लोग पसंद करते हैं।