म्याओ जाति की कसीदाकारी तकनीक मोम रंगाई कपड़े से विकसित हुई है। पुरानी कसीदाकारी मोम रंगाई कपड़े के डिज़ाइन पर आधारित थी। मगर कसीदाकारी कला के विकास के साथ साथ एक नई कसीदाकारी कला पुरानी निश्चित प्रकार के डिजाइन की पाबंदी से हटकर पनपी है। इस की अभिव्यक्ति की एक अपनी पूर्ण व्यवस्थित व कलात्मक भाषा है। आम तौर पर पुरानी कसीदाकारी, कपड़े के गहरे रंग के पृष्ठभाग पर सफ़ेद रेखाचित्र बनाकर और केवल बीच-बीच में कुछ अन्य रंग गढ़कर की जाती है। इसलिए वह गाय या कुत्ते के दांतों जैसी भाववाचक ज्यामिति की शकल लिए बहुत प्राचीनतम, साधारण व सामान्य सी मालूम पड़ती है। नई कसीदाकारी जातीय शैली में बुने गए परम्परागत श्याम कपड़े को छोड़कर लाल, नीले, सफ़ेद और काले रंग के मशीन द्वारा बुने कपड़े के पृष्ठभाग पर की जाती है। उस में रेखाचित्रों की भिन्न भिन्न शैलियां और विविध रंगों की परिवर्तनशीलता मिलती हैं। भड़कीले रंगों के धागे के प्रयोग से वह बहुत सजीव और ओजस्वी दिखाई देती हैं। उन में ज्यामिति-रेखाचित्रों के अलावा मानव आकृतियां, जीव-जन्तु, पेड़ पौधे तथा अन्य बर्तन-औजारों की आकृतियां भी शामिल हैं।
म्याओ जाति की युवतियां रेखाचित्रों की रचना में बड़ी नियमबद्ध होती हैं। वे हमेशा ज्यामिति-रेखाचित्र व जीव-जन्तु या पेड़-पौधे की आकृतियों को सामंजस्य रूप देकर एक आश्चर्यजनक डिजाइन ढ़ालती हैं। वे रंगों के प्रयोग के बारे में इतनी जानकार होती हैं कि इन की कृतियां देखकर पेशेवर चित्रकार भी चकित रह जाते हैं।