क्वेइचओ प्रांत की राजधानी के उपनगर में स्थित ह्वाशी एक रमणीक स्थान है। यहीं पर पीड़ियों से आबाद म्याओ जाति की महिलाएं, बेहतरीन कसीदाकारी में निपुण हैं। "क्रास" कसीदाकारी का डिजाइन देशान्तर, अक्षांतर व तिरछी रेखाओं से बनता है और इस की अभिव्यक्ति साधारण, सामान्य व अतिरंजित होते हुए भी बड़ी नियमबद्ध और ज्यामितिपूर्ण होती है।
यहां म्याओ जाति की युवतियां बचपन में ही अपनी मां से कसीदाकारी सीख लेती हैं। सामान्य वक्त में वे श्रम के बाद कसीदाकारी करती हैं और कृषि से फुरसत मिलने के मौसम में वे चार-पांच के दल में एकत्र होकर अस्थाई छड्डे के नीचे गीत गुनगुनाते हुए कसीदाकारी के अनुभव सुनाती हैं।
जब जातीय त्योहार आता है, तो युवक-युवतियां बाजा बजाते या पहाड़ी गीत गाते हुए मिलन-सारोह में शामिल होने के लिए "फूल प्रदर्शित मैदान" में एकत्रित होते हैं। यह स्थान नाचने-गाने के लिए ही नहीं, प्रेम करने का स्थान भी है। इस के अलावा यह महिलाओं के लिए कसीदाकारी के इस भव्य प्रदर्शन में अनुभव जुटाने और अपनी कसीदाकारी का हुनर दर्शाने का सुअवसर भी होता है। ऐसे मौके पर सब से अच्छी कसीदाकारी करने वाली महिलाएं लोगों की नज़र अपनी ओर खींचती है और उन की कृतियां जल्द ही लोकप्रिय बन जाती हैं।
कसीदाकारी की म्याओ जाति की युवतियों के प्रेम व भविष्य में महत्वपूर्ण स्थान है। वे महिलाएं, जो कसीदाकारी में निपुण हों, उन्हें परिवार और समाज में बहुत आदर मिलता है। यह युवकों के लिए अपनी जीवन-साथी चुनने की एक आवश्यक्त शर्त सी बन गई है। शादी या प्रथम बच्चा जनने के शुभ दिन, बधाई देने आए रिश्तेदारों व मेहमानों को आनन्दित करने के लिए नई बहू के लिए अपनी कृतियों का प्रदर्शन आवश्यक्त होता है। मित्र व रिश्तेदारों से मिलते या किसी मिलन-समारोह में भाग लेते समय अगर कोई महिला कसीदाकारी वाले कपड़े न पहनी हो, तो लोग इसे अपमानजनक मानते हैं। आम समय में म्याओ महिलाएं बड़ी मेहनत से अपने कसीदाकारी कपड़े तैयार करती हैं। इस तरह के शानदार कपड़ों का एक सेट बनाने में आम तौर पर कई वर्ष लगते हैं। इस को बनाने की विधि इस प्रकार हैः पहले कपड़े के विभिन्न भागों पर अलग अलग कसीदाकारी की जाती है और फिर कोई त्योहार आने पर उन्हें जोड़ा जाता है।
कसीदाकारी के लिए म्याओ जाति की युवतियों के पास कोई नमूना नहीं होता, बल्कि वे अपनी इच्छा व कल्पना शक्ति के आधार पर यह कार्य करती हैं। अतः इस में पुरानी परम्परा को विरासत के रूप में प्रहण करने के साथ साथ उन का सृजन भी शामिल है। कसीदाकारी करना एक संजीदा व जटिल प्रक्रिया है जिस में एक धागे की गलती की भी गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। इस कार्य के लम्बे समय के दौरान कपड़े को दाग-धब्बों से बचाने के लिए उस की सतह पर दूसरा कपड़ा या काग़ज़ ढककर पृष्ठभाग से कसीदाकारी करना एक कलात्मक विशेषता है।