|
23 जुलाई को तिब्बत स्वायत्त प्रदेश में प्रथम तिब्बती सांस्कृतिक अनुभव रेल गाड़ी "थांगचू गुताओ हाओ" के ल्हासा-शिकाचे रेलमार्ग पर आवागमन शुरु होने की रस्म राजधानी ल्हासा में आयोजित हुई।
"थांगचू गुताओ हाओ" का नाम "थांग-पो-थिआनचू" प्राचीन मार्ग से आया है, इसमें"थांग"तो थांग राजवंश का संक्षिप्त नाम है,"पो"प्राचीन तिब्बत का संक्षिप्त नाम है, जबकि"थिआनचू"तो प्राचीन काल में चीन में भारत को कहा जाता था।
"थांग-पो-थिआनचू" प्राचीन मार्ग प्राचीन चीन के थांग राजवंश की राजधानी छांग'आन से छिंगहाई-तिब्बत पठार को पारकर नेपाल और भारत पहुंचता था। वह पुराने पठारी रेशम मार्ग का एक अहम स्थापित भाग है। ईस्वी 658 में थांग राजवंश के राजदूत वांग श्वान-त्से (wáng xuán cè) इस रास्ते से भारत गए और आज तिब्बत की सीमा पोर्ट चीलुंग काऊंटी में एक शिलाखंड रखा गया है।
"थांगचू गुताओ हाओ" रेलगाड़ी के डिब्बों में तिब्बती शैली वाले शुभचित्र, तिब्बती नाटक के मुखौटे, तिब्बती वेशभूषा का साजोसामान और तिब्बती प्राकृतिक दृश्यों की फोटो टांगे गई हैं। साथ ही इस रेलगाड़ी पर सवार यात्री परम्परागत तिब्बती व्यंजनों का आनंद भी उठा सकते हैं।
तिब्बत स्वायत प्रदेश की पर्यटन विकास कमेटी के प्रधान वांग सोंगफिंग के अनुसार इस रेलगाड़ी के चलाने से चीन के तिब्बत और दक्षिण एशियाई देशों के पर्यटन विकास व सहयोग को प्रगाढ़ किया जाएगा।
(श्याओयांग)
आपके विचार (0 टिप्पणियां)
![]()
कोई टिप्पणी नहीं
powered by changyan
|
![]() |
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved. 16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040 |