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चीन स्थित भारतीय राजदूत के इंटरव्यू का प्रतिलेखन
2016-11-29 18:52:03 cri

12 से 13 नवम्बर तक, दो दिवसीय भारत-विद से जुड़े विश्व विद्वानों का दूसरा सम्मेलन दक्षिण चीन के क्वांगतोंग प्रांत के शनचन शहर में आयोजित हुआ। इस बीच सीआरआई संवाददाता अखिल पाराशर ने सम्मेलन में भाग ले रहे चीन स्थित भारतीय राजदूत विजय गोखले का विशेष विडियो इंटरव्यू किया। इस इंटरव्यू का प्रतिलेखन निम्नलिखित है-

संवाददाता- नमस्कार सर, आपका चाइना रेडियो इंटरनेशनल में स्वागत है

राजदूत- धन्यवाद

संवाददाता- सर, जैसे कि आज शनचन में सैकेंड इंटरनेशनल कांफ्रेंस ऑफ इंडोलोजिस्ट ओर्गानाइस (organize) हो रहा है। सर, हम इसके बारे में जानना चाहते हैं कि इसका उद्देश्य क्या है और आगे हमें इससे क्या फायदा मिलेगा?

राजदूत- आप जानते हैं कि पिछले साल के नवम्बर में इस तरह की कांफ्रेंस पहली बार हमने भारत में किया था। माननीय राष्ट्रपति जी ने उसका उद्घाटन किया था और हमारा लक्ष्य ये है कि जो भारत के बारे में जानकारी हो, खासकर जो इतिहास हो और जो हमारी संस्कृति हो उसको बाहर देशों में लेकर वहां उनको बताना है कि हमारी जो संस्कृति की परंपरा है वो बहुत पुरानी है और उसका जो प्रभाव है वो सिर्फ ऐतिहासिक नहीं है लेकिन आज के दिन में भी चाहे वो राजनीति में हो, चाहे वो अर्थव्यवस्था में हो, चाहे वो संस्कृति में हो वो अभी भी जारी है। तो इस दृष्टि से देखते हुए चीन में जो सैकेंड इंटरनेशनल कांफ्रेंस है, उसका बहुत महत्व है क्योंकि भारत और चीन तो दो हजार सालों में, उनका हमारे संस्कृति में आदान-प्रदान हुआ है लेकिन आज हम दोनों के बीच समझ में थोड़ा गैप है और हम दोनों को एकदूसरे को समझना चाहिए और उस समझ को बढ़ाने के लिए इस तरह के कांफ्रेंसिस काफी महत्वपूर्ण होते हैं। तो हम बहुत खुश हैं कि शनचन यूनिर्वसिटी ने और चाइनिस पीपल्स एसोसिएशन फॉर फ्रेंडशिप विथ फॉरेन कन्ट्रीज (Chinese People's Association for Friendship with Foreign Countries) ने यह कांफ्रेंस ओर्गानाइस (organize) किया है। हम आशा करते हैं कि इसके जो आउटकम हो, वो पॉजिटिव हो।

संवाददाता- सर, आज आपने अपने स्पीच में ये कहा था कि हम लोगों को चाइनिज लोगों से सीखना चाहिए कि जो चीन का अध्ययन है, जो साइनोलॉजी है, उसकी पढ़ाई कैसे की जाए, उसका अध्ययन कैसे किया जाए और आज के दौर में जो साइनोलॉजी है वो एक मुख्य विषय बन गया है। सर, इस पर हम आपकी राय जानना चाहते हैं।

राजदूत- जैसा मैंने कहा मेरे भाषण में, आज तो स्टडी ऑफ चाइना (study of China) एक पॉपुलर सब्जेक्ट बन चुका है। वो सिर्फ ये नहीं जानना चाहते हैं कि कन्फ़्यूशियस जब दो हजार साल पहले थे, या सुन-ज़ जब दो हजार साल पहले थे, तो उनका क्या फिलोसोफी है, वो अभी यह पढ़ रहे हैं कि उस फिलोसोफी को आज के दिन में और आज की परिस्थिति में कैसे लागू किया जाए। अब आप देखें जहां सुन-ज़... हर देश की मिलिट्री और हर देश की पॉलिटिकल क्लास सुन-ज़ की प्रिंसिपल को जानते हैं। और कितने लोग चाणाक्य नीति के बारे में जानते हैं। हालांकि आज भी चाणाक्य नीति भारत में हम उसका उपयोग करते हैं। लेकिन क्योंकि जानकारी बहुत कम है तो लोग.. बाहर के लोग ये समझ नहीं पाते है कि आज के भारत को जानने के लिए उनको ऐतिहासिक भारत जानना बहुत जरूरी है और उसमें चाणाक्य की नीति एक बहुत ही.. उसका बहुत ही अहम स्टेटस है। और सिर्फ चाणाक्य नीति नहीं, चाहे उपनिषद हो, चाहे वो... जब इस्लाम भारत आया तो एक सिंक्रिंटिंग कल्चर बना है दोआबा में, जो दोआब में है, उसका किस तरह से हम मिलजुलकर रहे है... क्यों भारत में मिडिल ईस्ट के बाहर क्यों भारत एक ऐसा देश है जहां मल्टीप्ल स्पिरिचुअल ट्रेडिशन्स (Multiple Spiritual Traditions) का जन्म हुआ है और कहीं भी ऐसा दुनिया में नहीं है.. एक तो है जो आज पलेस्टाइन कहलाता है जहां ईस्लाम, जूदाईस्म, क्रिश्चियनिटी का जन्म हुआ और एक तो भारत है जहां जैनिज़्म, बुद्धिज़्म, हिंदूज़्म, सिखिस्म हुआ। इसके अलावा तो और कोई वर्ल्ड रिलिजन तो है ही नहीं, तो आज इसका रेलेवंस है और मेरे ख्याल में ये जो कांफ्रेंस है वो यह बताता है कि अगर आप भारत की संस्कृति के बारे में नहीं जानते है तो आज जो भारत में परिवर्तन हो रहा है, आज जो भारत में डेवलपमेंट्स हो रही हैं, प्रगति हो रहा है, वो आप पूरी तरह से समझ नहीं पाएंगे। और इसकी जानकारी दुनिया को जरूरी है क्योंकि भारत उभरकर आ रहा है। हम भी 21वीं सदी में एक बड़ा देश बनेंगे, हमारा योगदान रहेगा.... अर्थव्यवस्था में तो है ही योगदान लेकिन राजनीति में, संस्कृति में, साइंस एंड टेक्नोलॉजी में। तो वो समझने के लिए इतिहास भी समझना जरूरी है.. ये मेरा मानना है।

संवाददाता- सर, हाल के वर्षों में देखा है कि इंडिया और चाइना के जो नेता हैं, प्राइम मिनिस्टर, प्रेसिडेंट वो एक दूसरे देशों की यात्रा भी कर रहे हैं, आदान-प्रदान भी काफी हो रहा है तो आने वाले टाइम में आप चीन और भारत के रिश्तों को किस तरह से देखते हैं।

राजदूत- जब 1988 में माननीय प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी आये थे चीन, उस समय मैं एम्बैसी में मौजूद था। हम सोच भी नहीं सकते थे कि आज 2016 में इस तरह का आदान-प्रदान होगा। अब इसी साल आप देखिए, शायद हमारे प्रधानमंत्री और चीन के राष्ट्रपति ने 3 बार मुलाकात की है। ये तो हम सोच भी नहीं सकते थे 1990 या 2000 में, तो राजनीतिक तौर पर तो काफी बदलाव शुरु हो गए हैं। अर्थव्यवस्था की बात हो तो, चाइना हमारा सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर है, 75 बिलियन डॉलर के साथ, कुछ उसमें खामियां हैं क्योंकि वो अनबैलेंस्ड है। लेकिन उसमें लगातार कोशिश कर रहे हैं हम कि चीन से निवेश आए, मेक इन इंडिया प्रोग्राम में निवेश आए, जॉब्स क्रिएट हों और हमारी कंपनियां यहां आएं आईटी में, फार्मास्यूटिकल्स में बढ़ाने के लिए वो एक जरूरी बात है। लेकिन इसमें संस्कृति का जो योगदान है, वो नहीं भूलना चाहिए हम लोगों को, क्योंकि चीन भारत को इसलिए बड़ा देश मानता है क्योंकि हमारी जो संस्कृति है, उसका प्रभाव चीन पर भी पड़ा है और ये लोग समधते हैं ये और ये लोग ये भी मानते हैं कि पिछले 3-4 वर्षों में भारत कभी महान देश रहा है, कभी घट गया है और कभी बढ़ गया है, लेकिन उसका जो सांस्कृतिक आकर्षण है, वो आज भी जारी है। और आप देखिए प्रधानमंत्री ने युनाइटेड नेशंस संगठन में उन्होंने जब योगा-डे मनाया तो जैसा कि मैंने अपने भाषण में भी कहा कि मैं जहां भी जाता हूं, उन्हें योगा टीचर्स चाहिए। और योगा के साथ तो कल्चर भी आता है, ट्रडीशन्स आते हैं, एक्सप्लनेशंस आते हैं, स्पिरिचुयलिज्म आता है, So I think we need to do other aspects of Indian culture, जो हम योगा के लिए कर रहे हैं। एक तरह से उन्हें मेनस्ट्रीम में ले आना, उन्हें पॉपुलर बनाना, लोगों को समझाना कि आज की दुनिया में इसका क्या महत्व है। सिर्फ एक ऐतिहासिक विषय, जो हम म्युजियम में देखते हैं और फिर उसे भूल जाते हैं, ऐसा नहीं होना चाहिए।

संवाददाता- सर, पिछले साल चाइना में विजिट-टू-इंडिया ईयर मनाया गया था और इस साल विजिट-टू-चाइना ईयर मनाया जा रहा है। तो, देखा जा रहा है कि दोनों देशों की एम्बैसी काफी अहम रोल अदा कर रही है दोनों देशों के लोगों के आवागमन में... तो आगे आने वाले समय में एम्बैसी और क्या करने जा रही है?

राजदूत- ईयर ऑफ विजिट टू इंडिया या ईयर ऑफ विजिट टू चाइना तो एक माध्यम है, लेकिन सबसे जरूरी है कि अगर हम लोगों तक पहुंच बढ़ाना चाहते हैं, तो उसमें भारत सरकार ने जो ठोस कदम उठाएं हैं, खासकर जो इलेक्ट्रॉनिक वीजा का चीनी लोगों के लिए हमने जो उपलब्ध किया है, उससे उन्हें एम्बैसी आने की जरूरत ही नहीं है। ऑनलाइन आवेदन भरकर उन्हें तुरंत वीजा मिल जाता है, तीन दिन में वीजा मिलता है, भारत जा सकते हैं, एयरलाइंस कनेक्टिविटी बढ़ रही है। मैंने सुना है कि एयर चाइना जल्द ही बीजिंग से मुंबई की डायरेक्ट फ्लाइट शुरु करने वाली है। एक एयर इंडिया का आवेदन पेंडिंग है कि वो शंघाई से दिल्ली और मुंबई की डेली फ्लाइट्स करें। तो फ्लाइट्स दिनोंदिन बढ़ेंगी। उसके अलावा बिजनेस सेमिनार और बिजनेस मीटिंग्स तो हम प्रमोट करते ही रहते हैं। ये खुशी की बात है और ये प्रधानमंत्री की पहल है कि हमारे जो मुख्यमंत्री हैं उन्हें कहा जा रहा है कि वे चीन जाकर देखें कि किस तरह से आर्थिक रिश्तों को और बढ़ाया जाए। मैं आपको बता सकता हूं कि इसी साल हमारे 5 मुख्यमंत्री आए हैं- हरियाणा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़ के आए हैं और इस महीने के अंत तक शायद झारखंड के आने वाले हैं। पिछले साल 3-4 आए थे, अगले साल की शुरुआत में महाराष्ट्र के आने वाले हैं। तो जब मुख्यमंत्री आते हैं, उनके ऑफिशियल्स आते हैं, उनके क्षेत्र के जो बिजिनेस के लोग हैं वो आते हैं, कभी-कभी विशेष हस्तियां भी आती हैं, so in other words the relations are moving out of Beijing centric and Delhi centric, so our diplomacy has become India-centric, not just Delhi centric and likewise here. तो मैं समझता हूं कि यही आगे बढ़ाएगा अब, एम्बैसी तो एक फैसिलिटेटर है, हमारा तो छोटा-सा योगदान होगा है, I think the overall effort is large और उसी को हम सपोर्ट करते हैं।

संवाददाता- हमसे बात करने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद सर।

राजदूत- थैंकयू

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