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छिबी पर अग्नि युद्ध की कहानी
चीन के त्रिराज्य काल में छिबी पर चले अग्नि युद्ध की कहाना चीन में अब तक अत्यन्त लोकप्रिय रही है , जिस में बुद्धि के बल पर शक्तिशानी सेना पर विजय की कहानी दर्शा होती है ।

ईस्वी दूसरी शताब्दी के अंत में पूर्वी हान राजवंश की केन्द्रीय सत्ता लगातार कमजोर होती चली गई और विभिन्न स्थानीय सेना सरदारों की शक्ति जोर पकड़ रही थी और उन के बीच निरंतर युद्ध हुआ करता था । एक अवधि के संघर्ष के परिणामस्वरूप चीन देश की भूमि पर मात्र वी , शु और वु तीन राज्य रह गए , जो अलग अलग तौर पर उत्तरी चीन , दक्षिण पश्चिम चीन और दक्षिण चीन पर काबिज रहते थे । तीनों राज्यों में छाओछो का वी राज्य सब से अधिक शक्तिशाली था । ईस्वी 208 में छाओछो ने विशाल सेना को ले कर दक्षिण की दिशा में सैन्य मार्च किया , उस ने ल्यूबे द्वारा शासित सामरिक स्थल च्यंगचाओ क्षेत्र के अधिकांश भाग पर कब्जा कर दिया , जिस से ल्यूबे की सेना विवश हो कर मध्य चीन के शाको इलाके में हट गयी । छाओछो ने ल्यूबे और दक्षिण चीन पर काबिज सुनछ्वान का विनाश कर पूरे चीन पर विजय पाने की बड़ी आकांक्षा रखी थी । उस के जबरदस्त हमले को रोकने के लिए ल्यूबे और सुनछवान के बीच अस्थाई गठबंधन कायम हुआ । छाओछो की दो लाख सैनिकों की सेना पूर्व की ओर बढ़ते हुए शाखो के नजदीक पहुंची , जबकि ल्यूबे और सुनछ्वान की संयुक्त सेना के पचास हजार सैनिक उत्तर की दिशा में बढ़ी , दोनों पक्ष यांगत्सी नदी के छिबी नाम के स्थान पर आमने सामने आ खड़े । छाओछो के सैनिक उत्तरी चीन के लोग थे , वे नदी पर युद्ध करना नहीं जानते थे , इसलिए दोनों पक्षों के बीच शुरू में जब युद्ध छिड़ा , तो छाओछो की सेना हार गई । तब छाओछो ने अपनी सेना को यांगत्सी नदी के उत्तरी तट पर तैनात किया और नदी में युद्धाभ्यास में लग गयी । जबकि सुनछ्वान और ल्यूबे की सेना यांगत्सी नदी के दक्षिण तट पर तैनात हुई ।

वु राज्य के राजा सुनछवान के सेनापति चाओयु और शु राज्य के राजा ल्यूबे के सैन्य सलाहकार चुगल्यांग ने दोनों पक्षों की स्थिति का जायज कर यह सहमति पायी कि चुंकि छाओछो की सेना शक्तिशाली है और नदी के उत्तरी भाग पर मजबूत शिविर बनाया है , यदि आमने सामने का युद्ध चलाए , तो सुनछवान व ल्यूबे की संयुक्त सेना विजयी नहीं हो सकती है । सो दोनों सेना नायकों ने दुश्मन के शिविर पर आग से जला कर लड़ने की नीति अपनाने का निश्चय किया और इस नीति को सफल बनाने के लिए कई चालें भी चलीं । एक दिन सेनापति चाओयु ने अपने जनरलों को बुला कर छाओछो की सेना पर हमला करने के तरीके पर विचार करने की सभा की , सभा में वृद्ध जनरल ह्वांगगे ने कहा कि छाओछो की सेना बेहद तगड़ी है , उस के सामने आत्मसमर्पण उचित है । चाओयु ने बड़े गुस्से में आ कर ह्वांगगे को सैनिक अनुशासन नियम के मुताबिप पचास डंडा मार कर कड़ी सजा दी । सजा भुगतने के बाद ह्वांगगे ने गुप्त रूप से छाओछो को पत्र लिख कर आत्मसमर्पण करने का इरादा व्यक्त किया । चाओयु की सेना में गुप्त छुपे छाओछो के जासूसी ने भी छाओछो को ह्वांगगे के मामले की सूचना भेजी , इस तरह छाओछो को ह्वांगगे पर विश्वास हो गया और उस के आत्मसमर्पण करने आने के इंतजार में रहा । इसी बीच एक मशहूर सैन्य विद्य फांगथोंग भी छाओछो से मिलने आया । छाओछो ने बड़ी खुशी में फांगथोंग से यह सलाह मांगा कि उस के सैनिक उत्तर चीन के हैं , वे नदी में युद्ध करना नहीं जानते है और जहाजों पर रहते हुए अकसर बीमार भी पड़ते हैं । इस समस्या को हल करने का क्या अच्छा उपाय बताए , तो मेहरबानी होगा । फांगथोंग ने जो तरीका बताया था , उस पर अमल करते हुए छाओछो की सेना ने अपने हर तीस या पचास जहाजों को एक दूसरे से लोह जंजीरों से जोड़ा और उस पर लकड़ी के तख्ते बिछाये । इस से जहाजों का एक समूचा अंग बन गया और वह थलीय भाग जैसा नहीं हिल डुल जाता था और सैनिकों को उस पर युद्धाभ्यास करते हुए भी सिर चक्कर नहीं आता था । छाओछो को इस पर बड़ी खुशी हुई , लेकिन किसी ने उस से कहा कि युद्ध पोतों को जंजीरों से जोड़ कर समूचा अंग बनाना अच्छा तरीका तो है , पर दुश्मन यदि आग से हमला करे ,तो बड़ा खतरनाक होगा । यह बात सुन कर छाओछो ने हाहाकार कर कहा कि चिंता की कोई बात नहीं , अब शीतकालीन मौसम है , जिस के दौरान केवल उत्तर से दक्षिण की ओर हवा चलती है , हम नदी के उत्तरी तट पर हैं , वे दक्षिण तट पर , यदि आग लगायी जाए ,तो आग से वे खुद जल जाएंगे । छाओछो के अच्छे ज्ञान पर सब मान गए और सतर्कता में ढीला भी आया ।

छाओछो को क्या जाने कि ल्यूबे के सैन्य सलाहकार चुगल्यांग एक खगोल शास्त्री है , वह जानता था कि 20 नवम्बर को यांगत्सी नदी पर दक्षिण से उत्तर की दिशा में हवा चलेगी । इस भविष्यवाणी के अनुसार चाओयु और चुगल्यांग ने उसी दिन आग से छाओछो पर हमला बोलने की तैयारी की । इसबीच छाओछो को ह्वांगगे से आत्मसमर्पण आने की सूचना भी मिली । बीस तारीख की रात , छाओछो और अपने जनरलों के साथ जंजीरों से जुड़े जहाजों पर खड़े ह्वांगगे के आने की प्रतीक्षा में रहे । कुछ ही समय बाद नदी के पानी में ह्वांगगे के बीस छोटा जहाज नजदीक आते नजर आये, इस समय नदी पर दक्षिण से उत्तर की दिशा में तेज हवा चल रही थी , हवा के झोंके की मदद से ह्वांगगे के छोटे हल्के जहाज वेग गति से छाओछो के जहाजों से बने शिविर की ओर बढ़ आए और पास पहुंचते ही ह्वांगगे के आदेश पर सभी छोटे जहाजों में रखे घास और तेल में आग लगायी गई और आग की ऊंची लपेटें लिए जहाज झटके से छाओछो के शिविर में पैठ कर गये , तुरंत छाओछो के जहाजों पर भी आग भभगने लगी , सभी जहाज जंजीरों से आपस में जुड़े बंधे थे , वे आग से जले शिविर से भाग जाना चाहे , भी संभव नहीं । देखते ही देखते आग भीषण रूप पकड़ गई और शिविरों में आग का समुद्र सा मच गया । छाओछो और अपने नजदीकी लोग जहाजों को छोड़ कर तट पर भाग गए और तट पर स्थापित शिविरों में भी आग लगी । ल्यूबे और सुनछवान की सेना विजय पर विजय लेते हुए छाओछो की सेना का पीछा सफाया करने लगी । शोचनीय हार खा कर छाओछो केवल चंद ही लोगों के साथ उत्तर के अपने राज्य में वापल भागे ।

छिबी पर हुए इस अग्नि युद्ध के बाद सुनछवान ने दक्षिण चीन पर अपने शासन मजबूत कर दिया और ल्यूबे ने च्येंगचाओ के अधिकांश क्षेत्रों पर कब्जा किया , इसतरह चीन की भूमि पर तीन राज्य अलग अलग रूप से स्थापित हुए और चीन का यह ऐतिहासिक काल त्रि राज्यकाल के नाम से मशहूर हो गया और छिबि पर अग्नि युद्ध की कहानी भी सदियों से चीन में लोकप्रिय रही ।

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