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छाओक्वी की युद्ध कला
चीन के इतिहास में आम जनता की मदद से दुश्मन की सेना पर विजय पाने की कहानी थी , युद्धरत राज्यकाल का छाओक्वी इस प्रकार का एक व्यक्ति था ।

युद्धरत राज्य काल में चीन देश में अनेक राज्य शासन करते थे , वे एक दूसरे के साथ युद्ध करते हुए प्रभु का स्थान छीनते थे । छी राज्य उन में से एक था । अपनी बड़ी सैन्य शक्ति के भरोसे छी राजा छीहङकोंग ने ईसापूर्व 684 में कमजोर राज्य लू पर हमला बोलना शुरू किया । लू राज्य का राजा लुजच्वांगकोंग छी सेना से अखिरी दम लड़ने का संकल्पबद्ध था ।

छी राज्य के आक्रमण के सामने लू राज्य के आम लोगों में भी बड़ा रोष भड़का और राज्य का एक आम निवासी छाओक्वी राजा लुज्वांगकोंग से युद्ध में हाथ बाटना चाहता था , पड़ोसी ने उसे समझाया कि युद्ध राजा सेनापति का मामला है , अधिकारियों को उस पर सोच विचार करना चाहिए, आम नागिरक होने के नाते आप को उस में भाग लेने की क्या जरूरत है ।

छाओक्वी ने कहा कि अधिकारी दूरदर्शी नहीं हैं , उन के शायद ही अच्छी युद्ध नीति है , राज्य जब खतरे में पड़ा है , तो हम आम लोगों को भी कर्तव्य निभाना चाहिए ।

छाओक्वी ने राजमहल में जाकर राजा लुज्वांगकोंग से मुलाकात की और छी राज्य के आक्रमण विरोधी युद्ध में भाग लेने की मांग की और यह पूछा कि हमारा लु राज्य छी राज्य से बहुत कमजोर है , महाराजा आप किस के बल पर छी सेना का मुकाबला करेंगे ?

लुज्वांगकोंग ने कहा कि मैं अच्छा खाना और पहनना अकेले नहीं चाहता हूं , लोगों में बांटना करता हूं , इसलिए वे मेरा समर्थन करते हैं ।

छाओक्वी ने कहा कि यह छोटा मोटा एहसान है , कम लोगों को मिलता है , आम लोग इस के लिए आप के समर्थन में नहीं आएंगे ।

लुज्वांगकोंग ने कहा कि मैं पूजा प्रार्थना में आस्था दिखाता हूं । छाओक्वी ने मुस्कराया कि युद्ध में देवता आप की मदद के लिए नहीं आता है।

लुज्वांगकोंग ने फिर सोच कर कहा कि मैं आम प्रजा के मुकदमों में न्याय का फैसला करता हूं । छाओक्वी ने हां में सिर हिलाते हुए कहा कि यह न्यायप्रिय काम है , इस के भरोसे छी सेना से मोर्चा ले सकते हैं ।

युद्ध के समय लुज्वांगकोंग छाओक्वी की मांग पर उसे भी साथ रणरथ पर ले गया ।

प्राचीन काल में दोनों सेनाओं के बीच जब लड़ाई लड़ रही थी , तो दोनों सेनाएं आमने सामने मोर्चा बनाती थीं ,एक पक्ष की सेना हमले के लिए रणदुंद बजाती थी और विपक्ष की सेना भी जवाब में दुंद बजाती थी । छी और लु दोनों सेनाओं ने लु के छांगश्यो की जगह अपना अपना मोर्चा बनाया , अपनी बड़ी सैन्य शक्ति के भरोसे छी सेना ने पहले हमले के लिए रणदुंद बजाया , लुज्वागंकोंग ने भी हमले के जवाब में रणदुंद बजाने की हुक्म देना चाहा , उसे रोक कर छाओक्वी ने कहा कि अभी रणदुंद न बजाए , समय उचित नहीं है ।

छी सेना ने दूसरी बार रणदुंद बजाया , छाओक्वी ने फिर लुज्वांगकोंग को रणदुंद बजाने से रोका , छी सेना की चुनौति के सामने लु सेना के सैनिकों में असाधारण रोष भड़क उठा, लेकिन बिना आदेश उन्हें मौके का इंतडार करना पड़ा।

दो बार दुंद बजाने के बाद छी सेना समझी कि लु सेना कायर थी , तो तीसरी बार रणदुंद बजाने के बाद छी सेना ने मुस्तैदी से मुक्त हमला बोला ।

तभी छाओक्वी ने लुज्वांगकोंग से कहा कि अब रणदुंद बजाने का समय आ गया है ।

लु सेना में जोर का रणदुंद बजा , बुलंद हौसले से परिपूर्ण लु सेना बाज की भांति छी सेना पर टूट पड़ी . छी सेना इस जोरदार हमले के लिए तैयार नहीं थी , जल्दी ही वह हार खा कर पीछे भाग गयी ।

छी सेना को पीछे भाग जाते देख कर लुज्वांगकोंग ने पीछा करने का आदेश देना चाहा , तो छाओक्वी ने उसे रोका और रणरथ से नीचे उतर कर छी सेना की गाडियों की लकीरों, फिर गाड़ी पर खड़े छी सेना की पंक्तियों की स्थिति का जायज किया , तब कहा कि अब पीछा करने बढ़ो।

राजा के आदेश पर लु सेना ने बड़े जोश के साथ छी सेना का पीछा कर उसे लु राज्य की सीमा से बाहर खदेड़ कर दिया ।

इस महान विजय के कारण लु राज्य के राजा लुज्वांगकोंग ने छाओक्वी की प्रतिभा कायल कर ली । उस ने उस की युद्ध कला पूछा , तो छाओक्वी ने कहा कि युद्ध की जीत हार बहुत ज्यादा सेना के मनोबल पर निर्भर होती है । छी सेना ने जब पहला रणदुंद बजाया , उस वक्त वह बुलंद हौसले पर थी , दूसरा रणदुंद बजा , उस का हौसला थोड़ा कम हो गया , जबकि तीसरी बार रणदुंद बजा , तो उस का हौसला नीचा गिरा था ,लेकिन हमारी सेना बुलंद हौसले पर थी , इसलिए जीत हुई ।

छी सेना का पीछा करने की चर्चा में छाओक्वी ने कहा कि छी सेना हार तो गई , पर वह एक बड़ा राज्य है , सैन्य शक्ति बड़ी है , उस के हार जाने का स्वांग रचने की चाल से सचेत होना चाहिए । लेकिन मैं ने उस की गाड़ियों की लकीरें देखीं और उस की सैन्य पंक्ति का जायज किया ,तो पाया कि सब अस्त व्यस्त है , तो विश्वास हुआ कि वह सच्चे में पराजित हो गई है । तभी आप को पीछा करने को कहा था ।

छाओक्वी की बातों से लुज्वांगकोंग को युद्ध की यह कला समझ में आयी और उसे मान भी गया ।

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