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सौ कदम दूर पेड़ के पत्ते पर अचूक निशान

प्राचीन चीन के युद्धरत राज्य काल में बहुत से बड़े छोटे राज्य आपस में युद्ध करते रहे , इन राज्यों में बहुत से मशहूर लोग उभरे थे , जिन की योग्यता की कहानी आज भी देश में प्रलचित है । सौ कदम दूर के पेड़ के पत्ते पर अचूक निशाना साधने की कहानी उन में से एक है ।

छिन राज्य का सेनापित पाईछी एक अपराजेय जनरल था , जो कभी युद्ध में नहीं हारा । एक साल छिन राज्य के राजा ने पाई छी को सेनापति नियुक्त कर वी राज्य पर आक्रमण करने भेजा । यदि वी राज्य पर छिन राज्य की सेना ने कब्जा किया , तो इस का दूसरे राज्यों पर सिलसिलेवार प्रभाव पड़ेगा , इसे लेकर बहुत से लोग चिंतित थे ।

सु ली नाम का एक राजा का सलाहकार था , वह पाई छी को वी राज्य के विरूद्ध युद्ध छोड़ने के लिए मनाने भेजा गया । सु ली की किसी माध्यम से पाई छी से मुलाकात हुई । उस ने उसे एक कहानी सुनायीः

एक मशहूर तीरंदाज था , नाम था यांग योजी । उस ने बालावस्था में तीरंदाजी पर अधिकार हासिल कर दिया , जो ऐसा अचूक निशानेबाज बन गया था कि सौ कदम दूर के पेड़ के पत्ते पर अचूक निशाना साधने में पारंगत था । उस के जमाने में फानहु नाम का एक तीरंदाज भी था ,वह भी निशाना साधने में कुशल था । एक दिन दोनों मैदान में तीरंदाजी का कोशल दिखाने की होड़ कर कर रहे थे , तमाशा देखने आए लोगों की भरी भीड़ लगी थी ।

प्रतियोगिता के लिए निशाना पचास कदम दूर रखा गया , निशाना के तख्ते के बीचोंबीच लाल रंग का एक बिन्दु अंकित किया गया । फानहु ने कड़ा मजबूत धनुष तान कर एक सांस में तीन तीर छोड़े , तीनों निशाने पर खिंचे लाल बिन्दु पर लगे। भीड़ में तुरंत वाहवाही की आवाज गूंज उठी ।

जब यांगयोजी की बारी आई , तो उस ने मैदान में उतर कर चारों ओर नजर दौड़ाई और कहा कि पचास कदम दूर का वह लाल निशाना तीरंदाजी के लिए वहुत बड़ा है , हम सौ कदम दूर के उस पेड़ के पत्ते को निशाना बना कर प्रतियोगिता करें , तभी हार जीत तय सकेगा ।

कहते हुए उस ने सौ कदम दूर के एक पेड़ की ओर इशारा करते हुए उस के एक पत्ते को चुन कर लाल रंग से निशाना बनाने को कहा । फिर उस ने अपना कमान तान कर बाण छोड़ा , तीर अचूक से पत्ते के बीच आरपार कर उड़ा ।

इस प्रकार की अद्भुत योग्यता देख कर भीड़ अवाक् रह कर जीभ के तले ऊंगली दब गई । फानहु को मालूम था कि स्वयं उस का ऐसा असाधारण कोशल नहीं था , किन्तु उसे विश्वास भी नहीं था कि यांग योजी के हर तीर पेड़ के पत्ते पर अचूक लग सके । तो उस ने उस पेड़ के तीन पत्ते चुने और लाल रंग के तीन नम्बर भी लगाए । उस की मांग थी कि यांग योजी नम्बर के अनुसार तीनों पत्तों पर निशाना साधे ।

यांग योजी पहले पेड़ के पास आया और उस के उन तीन पत्तों को पहचाना , फिर दूर सौ कदम तक चले और वहां उस ने धनुष को तान कर लगातार तीन तीर छोड़े । तीनों तीर अलग अलग तौर पर उन तीन पत्तों पर लगे । भीड़ में अचानक जोर की वाहवाही की आवाज गूंज उठी और फानहु भी पूरी तरह यांग योजी की असाधारण कुशल तीरंदाजी कली मान ली ।

इसी वक्त एक आदमी यांग योजी के पास आया , उस न् आलोचनात्मक लहजे में कहा कि मैं महज ऐसे अचूक निशाना साधने में सक्षम लोग को शिक्षा देता हूं ।

इस घमंडी बातों पर यांग योजी बहुत एतराज हो उठा , उस ने गुस्से में आकर पूछा कि तुम मुझे तीरंदाजी की क्या शिक्षा दे सकते हो ?

उस आदमी ने शांत लहज में कहा कि मैं आप को तीरंदाजी पर शिक्षा नहीं देता हूं , मैं आप को सलाह देना चाहता हूं कि आप किस तरह अपनी अचूक निशानेबाज वाले की साख बनाए रखें । आप ने क्या यह समझने की कोशिश नहीं की है कि जब आप की शक्ति तीर छोड़ने से कमजोर बनी और जरा भी त्रुटि निकली , तो उस से आप की इस अचूक निशानेबाजी की साख पर बहुत बड़ी आंच पहुंचेगी । तीरंदाजी में निपुण व्यक्ति अपनी साख बनाए रखना जानता है ।

यह कहानी कह कर सु ली ने पाई छी से कहा कि आप अपराजेय सेनापति कहलाते हैं , लेकिन वी राज्य भी आसानी से पराजय मानने वाला राज्य नहीं है । अगर युद्ध में आप शीघ्र ही विजय न पा सके , तो इस का आप की प्रतिष्ठा पर असर पड़ेगा । पाईछी उस का तर्क मान गया कि अपना अपराजेय नाम बनाए रखने के लिए आसानी से युद्ध चलाने का नाम न लेना चाहिए । अतः उस ने बीमार पड़ने के बहाने से वी राज्य पर हमला बोलना बन्द कर दिया ।

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