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लुशान पर्वत की कहानी

दक्षिण चीन के च्यांगसी प्रांत में खड़ा लुशान पर्वत अपने अनूठे प्राकृतिक सौंदर्य से विश्वविख्यात है , जिस के बारे में प्राचीन काल से ही बड़ी मात्रा में किवदंतियां प्रचलित रही ।

लुशान पर्वत दक्षिण चीन के च्यांगसी प्रांत के उत्तरी भाग में स्थित है , जो आलीशान , अनोखा , खतरनाक और सौमय होने के कारण देश विदेश में मशहूर है। प्राचीन काल से अब तक बड़ी संख्या में सांस्कृतिक हस्तियों ने पर्वत में आ आ कर कलासृष्टि की , उन की कविताओं और चित्रों ने लुशान पर्वत को एक पवित्र स्थल का रूप दे दिया । ईस्वी आठवीं शताब्दी के थांग राजवंश के महान कवि ली पाई ने लुशान पर्वत के जलप्रपात के सौंदर्य के वर्णन में जो कविता लिखी थी , वह सदियों से चीन में लोकप्रिय रही और प्रसिद्ध रही । कविता इस प्रकार की हैः सुर्य की किरण पड़ी है धूपबत्ती पात्र पर , हल्का हल्का उठ पड़ा है बैंगनी धुंआं ऊपर की ओर , दूर दूर से उस की ओर निगाह दौड़ा , सीधी चट्टान पर से टपका जलप्रपात अनोखा । वेग गति से बहता है मानो आसमान से , उफनती फुटवारा छोड़ती तीन हजार गज , लगता सभी को वह गंगा आकाश हो , स्वर्ग के नौवें लोक से आया है इस पर्वत पर । चीन के सुन राजवंश (ईस्वी 960--1127) के सुप्रसिद्ध साहित्यकार सु तुंगपो ने अनेक बार लुशान पर्वत का दौरा किया , पर्वत की पश्चिमी चट्टान के वर्णन में उस ने जो कविता लिखी थी , उस में दार्शनिक विचार निहित है और आज तक चीनियों द्वारा अपने लेखन में प्रयोग किया जाता है । कविता का अर्थ हैः इस तरफ से देखे , बनती है चट्टान वही , उस तरफ देखे , उभरती है चोटी यही , दूर दूर का नीचा छोटा , नजदीक वाला ऊंचा दिखता । नहीं जान सकता है लुशान का चेहरा असली , किन्तु समझ आता है इसी पर्वत में समागत है हम सच्च । इस दार्शनिक तर्क निहित कविता ने लुशान पर्वत को और रहस्यमय बनाया है ।

लुशान का दूसरा नाम है ख्वांगशान , कहा जाता है कि ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में चो राजवंश के एक श्रीमान ख्वांग शु के नाम से मशहूर था , वह वर्षों से लुशान पर्वत में ताओ धर्म के अलौकिक काम की खोज में जुटा था । चो राजवंश के राजा को ख्वांग शु की योग्यता की खबर मिली , तो उस ने ख्वांग शु को बुलावा के लिए आदमी भेजा । लेकिन खवांग शु ने हर बार राजा के निमंत्रण को अस्वीकारा और वह पर्वत के गहन वादी में भी जा छुपे । बाद में ख्वांग शु का अता पता भी नहीं रहा , लोग कहते थे कि वह देवता बन कर अदृश्य हो गया था । उस की याद में लुशान को ख्वांग शान के नाम से भी कहलाने लगा ।

ईस्वी 381 में चीन के पूर्वी च्येन राजवंश के काल में धर्माचार्य ह्वीयुन अपने चेलों के साथ लुशान पर्वत में आए। स्थानीय पदाधिकारी की मदद में ह्वी युन ने तुंगलिन मठ बनाया , जो आगे चल कर बौध धर्म के महायान की एक मुख्य शाखा -- सुखवटी संप्रदाय का जन्म स्थल बन गया । इस तरह लुशान भी दक्षिण चीन में बौध धर्म का प्रमुख केन्द्र बन गया । धर्माचार्य ह्वीयुन ने लुशान पर्वत में 38 साल तक तपस्या किया , उस ने कड़ाई से बौध धर्म के विभिन्न शीलों का पालन किया और गहरी सिद्धि भी प्राप्त की।

तुंगलिन मठ और धर्माचार्य ह्वीयुन के संबंध में आज तक धार्मिक जगत में बहुत से दिलकश कथाएं प्रचलित है । कहा जाता था कि तुंगलिन मठ के निर्माण में सामग्री अपर्याप्त होने की समस्या को सुलझाने में ह्वीयुन रोज दिमाग खपाता रहा । अचानक एक रात आकाश में बिजली चमकी और मुसलाधार वर्षा हुई , सभी लोग कमरों में रूक कर बाहर नहीं जा पाए । दूसरे दिन वर्षा थमी , बादल छंट गया , जमीन पर पानी का एक तालाब बन कर नजर आया , पानी पर बड़ी मात्रा में लकड़ी तिरती रही । ह्वीयुन समझता था कि ये लकड़ी देवता द्वारा तुंगलिन मठ के निर्माण के लिए पहुंचायी गई थी । इन लकड़ियों से मठ का एक भव्य भवन बनाया गया । ह्वीयुन ने इस भवन का नाम दिव्य परिवर्हन भवन तथा उस तालाब का नाम लकड़ी तालाब रखे ।

तुंगलिन मठ के सामने कमल का एक तालाब है , तालाब में पानी स्वच्छ , लहरदार है , हरे हरे पत्तों के बीच सफेद कमल के फुल झांकते हैं , वातावरण अत्यन्त शांत और सुन्दर है । कहा जाता है कि सफेद कमल का यह तालाब पूर्वी च्येन राजकाल के मशहूर कवि श्ये लिंगय्वेन ने खुदवाया था । श्ये लिंगय्वेन पूर्वी च्येन राजवंश के सुप्रसिद्ध राजनीतिज्ञ श्येन श्वान का परपोता था और चीन के सुप्रसिद्ध लिपिकार वांग शिजी का भतीजा था । वह प्रतिभाशाली और खमंडी भी था । एक बार वह लुशान पर्वत आया और धर्माचार्य ह्वीयुन के नेतृत्व वाले सफेद कमल संघ में भाग लेना चाहता था । लेकिन ह्वी युन ने उस का आवेदन स्वीकार नहीं किया । उस ने श्ये लिंगय्वेन से कहा कि तुम्हारा स्वाभाव पेचदा है , बेहतर है कि तुम पहले तीन तालाब खोदे , जब तुम्हारा हृद्य कमल की भांति शुद्ध और शांत बन गया , तब तुम संघ में शामिल हो । नाचार हो कर श्ये लिंगय्वेन को तीन तालाबा खोदना पड़ा । इसी के बाद वह सफेद कमल संघ में दाखिल हो गया । ह्वी युन और श्ये लिंगय्वेन में ज्ञान पर गहन रूप में बातचीत हुई और दोनों में गाढ़ा दोस्ती कायम हुई । ह्वी युन के महानिर्वाण पर श्ये लिंगय्वेन को बेहद दुख हुई , उस ने दूर च्यान खांग से लुशान आ कर ह्वी युन की स्मृति में समाधि का आलेख लिखा ।

लुशान पर्वत में चीन की सदियों पुरानी सांस्कृतिक परम्परा गर्भित रहती है और असाधारण सुन्दर प्राकृतिक दृश्य मिलता है , वह चीन के प्रमुख दर्शनीय क्षेत्रों में एक प्रमुख सथल है ।

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