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लोशान पहाड़ का ताओ तपस्वी

चीन के प्राचीन देव असूर कथा संकलन में लाओशान पहाड़ के ताओ तपस्वी की कहानी काफी मशहूर है ।

कहा जाता था कि समुद्र के सुन्दर तट पर लाओशान नाम का एक पहाड़ खड़ा था , पहाड़ पर एक देवता रहता था , जो लाओशान के ताओ तपस्वी के नाम से मशहूर था । ताओ धर्म में तपस्या करने से लाओशान ताओ तपस्वी बहुत से तंत्र मंत्र जानता था , जिन से जन साधारण अज्ञात था । लाओशान पहाड़ से कोई सौ किलोमीटर दूर एक शहर में वांगछी नाम का एक व्यक्ति रहता था । बालावस्था में ही वांगछी तंत्र मंत्र में सुरूचिकर था और दिव्य तंत्र सीखना चाहता था । जब लाओशान के ताओ तपस्वी की खबर उस के कान में पड़ी , तो उस ने वहां जा कर सीखने की ठान ली । इस तरह वांगछी लाओशान पहाड़ पर आया और ताओ तपस्वी से मिला । बातचीत से वांगछी को लगा कि ताओ तपस्वी अलोकिक काम के ज्ञाता है। तो उस ने ताओ तपस्वी से उसे अपना चेला बनाने का अनुरोध किया । ताओ तपस्वी ने उसे थोड़ा निहारते हुए कहा कि तुम सुख आराम से पले बढ़े हो , तुम तपस्या की कठोरता से डरते हो । लेकिन वांगछी ने बारंबार विनती की , अंत में ताओ तपस्वी ने उसे अपना चेला बनाना स्वीकार लिया।

उसी रात , खिड़की से अन्दर छटकी चांदनी को निहारते हुए वांगछी ने तुरंत ही दिव्य तंत्र सीख जाने का सपना देखा और उसे असीम आनंद हुआ । लेकिन उसे क्या पता कि दूसरे दिन , जब सुबह वह गुरू के पास गया , तो ताओ तपस्वी ने तंत्र मंत्र सीखाने के बजाए उसे एक कुहाड़ी थामा और उसे अन्य चेलों के साथ पहाड़ पर ईंधन के लिए लकड़ी काटने भेजा । इस पर वांगछी बहुत नाखुश हुआ , लेकिन उसे गुरू जी का आज्ञा मानना पड़ता था । पहाड़ पर पदडंडी दुगम था , झाड़खंड व चट्टानें थे , सूर्यास्त होने तक भी नहीं था कि वांगछी के हाथों व पांवों में कई छाला पड़े।

देखते ही एक महीना गुजरा था , वांगछी के हाथ पांव में छाला पक्का भी हो गया और दिन भर के कड़े परिश्रम से वह असह भी लगा , तो घर वापस जाने का विचार आया । उसी रात , जब वांगछी और अपने साथियों के साथ विहार में लौटा , तो देखा कि उन का गुरू दो मेहमानों के साथ मदिरा पीने में मस्त थे । अंधरा छाया था , कमरे में बत्ती नहीं जली , तब गुरू ने एक सफेद कागज निकाल कर खैंची से उसे काट कर आइना का रूप बनाया और दीवार पर लगा दिया , क्षण में कागज का आइना चांद की भांति आलोकित हो गया , पूरे कमरे में रोशनी फैली । एक मेहमान ने कहा कि इस प्रकार की सुहावनी रात और स्वादिष्ट भोज में मनोरंजन भी होना चाहिए । वांगछी के गुरू ताओ तपस्वी ने चेलों को केतली का मदिरा दिया और उन्हें जी भर कर पीने को कहा । वांगछी को शंका आयी कि इतनी छोटी केतली का शराब सभी चेलों के लिए क्या पर्याप्त हो सकता था , लेकिन ताज्जुब की बात थी कि केतली का मदिरा जितना भी उडेला गया , उस में भरा शराब लबालब रहा था । वांगछी को बड़ा आश्चर्य हुआ । थोड़ी देर में एक दूसरे मेहमान ने कहा कि अब चांद की रोशनी मिली है , मधु मदिरा भी है , अगर नाच गान भी हो , तो ज्यादा आनंद होगा । वांगछी के गुरू ताओ तपस्वी ने मुस्कराते हुए एक चापस्तिक उठा और दीवार पर लगे सफेद कागज की ओर जरा इशारा किया , देखते ही देखते , कागज में से एक सुन्दरी निकली , जो पहले केवल चापस्तिक जितना ऊंची थी , जमीन पर खड़ी होने के बाद ही वह आदमकद लम्बी बढ़ गई , सुन्दरी बड़ी छरहरी थी , गोरी गोरी थी और लम्बी फीता लहराते हुए गाने नाचने लगी । नाचगान जब समाप्त हुआ , वह सुन्दरी हवा में उड़ कर मेज पर कूद पड़ी , लोगों के हवाहोश के बीच वह फिर चापस्तिक के रूप में बदल गई । यह सब करिश्मा देख कर चकित हुए वांगछी के मुहं से एक शब्द भी नहीं निकल सका । इसी वक्त एक मेहमान ने कहा कि बड़ा मजा आया , किन्तु जाने का वक्त आया है । ताओ तपस्वी और दोनों मेहमानों ने भोज का मेज उठा कर चांद में डाला , चांद की रोशनी धीरे धीरे चली गई , चेलों ने मोमबत्ती जलाई , तब देखा, तो उन के गुरू वही अकेले बैठे थे, मेहमान पता नहीं कहां चले गए , पर मेज पर बचा हुआ खाना वही रहा था ।

एक महीना और गुजरा , गुरू ताओ तपस्वी ने फिर भी वांगछी को तंत्र मंत्र नहीं सीखाया , वांगछी सहन से बाहर हो गया , तो वह गुरू के पास चला गया । उस ने गुरू से कहाः गुरू जी , मैं दूर से आया हूं , यदि आप मुझे अमर होने का दिव्य तरीका नहीं सीखाना चाहते हैं , तो कम से कम मुझे थोड़ा सा मामूला तंत्र सीखाएं , इसी पर मैं संतुष्ट होऊंगा । गुरू को मुस्कराते हुए एक शब्द भी नहीं बोलते देख वांगछी और बड़ा चिंचित हुआ , उस ने जिद के साथ कहाः गुरू जी , मैं रोज सुबह सुबह लड़की काटने जाता हूं , संध्या वेला समय तक ही लौटता हूं , अपने घर में भी मैं ऐसा कठोर काम कभी भी नहीं करता हूं । गुरू ने हंसते हुए कहा कि मैं शुरू में ही जानता हूं कि ऐसा कठिन काम तुम्हारी बस के बाहर है , कल सुबह तुम घर लौट सकते हो । वांगछी ने फिर विनती की कि गुरू जी , थोड़ा मामली कौशल तो सीखाएं , इसतरह मैं बेकार तो यहां नहीं आया हूं । गुरू ने पूछा कि तुम क्या सीखना चाहते हो । तो वांगछी ने कहा, मैं देखता आया हूं कि आप जब मकान के भीतर प्रवेश करते हैं , दीवार भी आप को नहीं रोक सकती । दीवार में से गुजरने का हुनर सीखाएं । ताओ तपस्वी ने हां भरी । वांगछी उस के साथ एक दीवार के सामने आया , तपस्वी ने उसे दीवार में से गुजरने का तंत्र बताया और उसे जपाते हुए दीवार पर सिर टक्कारने को कहा । लेकिन पत्थर की मजबूत दीवार के सामने वांगछी के पैर भय के मारे कांपने लगे । गुरू ने फिर उसे दीवार के अन्दर घुसने को कहा ,वांगछी आगे कुछ कदम बढ़ कर फिर रूक गया , गुरू नाखुश हो गया और बोला ,सिर नीचे की ओर झुका कर आगे जा बढ़ो । इस बार वांगछी दिल कड़ा कर आगे दौड़ा , अजान में ही वह दीवार की दूसरी तरफ जा पहुंचा था । वांगछी की खुशी का ठिकान नहीं रहा और गुरू को धन्यावाद दे कर घर लौटने की अनुमति मांगी । ताओ तपस्वी ने कहा कि घर लौटने के बाद ईमानदारी से लोक व्यवहार करना , वरना वह तंत्र अप्रभावित होगा ।

घर लौटने के बाद वांगछी ने बड़े अहंकार के साथ अपनी पत्नी से डींग माराः मेरी देवता से मुलाकात हुई थी , उन से मैं ने तंत्र सीखा , अब दीवार भी मुझे मकान के भतर घुस जाने से नहीं रोक सकती है । पत्नी को उस की बात पर विश्वास नहीं हुआ , और कहा कि दुनिया में ऐसा कभी नहीं सुनने को मिला है । अपना कौशल दिखाने के लिए वांगछी ने मुह में तंत्र जपाते हुए सिर को दीवार पर दे मारा , एक धमके की आवाज के साथ वांगछी दीवार के आगे जमीन पर गिर पड़ा , पत्नी ने तुरंत उसे सहारा दे कर खड़ा कर दिया , लेकिन वांगछी के माथे पर एक बड़ा सा फफोड़ उभर पड़ा । वागंछी का पूरा होश हवा हो गया , उस से एक शब्द भी नहीं बोल पाया । पत्नी ने हंसते हुए उसे मनाते हुए कहा कि मान लीजिए , इस दुनिया में आप का कहा जैसा तंत्र मौजूद है , तो भी उसे दो तीन माह के भीतर सीखा जा सकता है ! किन्तु वांगछी को यह बात कभी समझ में नहीं आयी कि उसी रात सचमुच ही गुरू के कहने पर वह दीवार में से सही सलाम गुजरा था , तो क्या ताओ तपस्वी ने उसे धोखे में डाला हो ?

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