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मुर्ख वृद्ध के पहाड़ हटाने की कहानी

अतीत में एक वृद्ध लोग रहता था , नाम था य्यु-गङ , अर्थात मुर्ख दादा , वे नब्बे साल के हो चुके थे । उस के घर के सामने दो ऊंचे ऊंचे पहाड़ खड़े थे , एक का नाम थाईहान और दूसरे का नाम वांगवु , दोनों पहाड़ों के कारण वहां का यातायात बहुत दुगम था ।

एक दिन , य्यु-गङ ने परिवार के तमाम लोगों को एक साथ बुला कर कहा कि सामने खड़े ये दो पहाड़ हमारे बाहर जाने के रास्ते को रोक देते हैं , बाहर जाने के लिए हमें लम्बे समय तक घूमा चक्कर लगाना पड़ता है । बेहतर है कि हम मिल कर इन दो पहाड़ों को हटा दें और रास्ता सुगम बनाएं , तुम लोगों का क्या ख्याल है?

य्यु-गङ के पुत्र और पोते मुर्ख दादा के सुझाव के समर्थन में हां भरते हुए बोले , हां , दादा जी , आप ने सही कहा है , हम कल से ही शुरू करेंगे । लेकिन य्यु-गङ की पत्नी को लगता था कि इन दो बड़े बड़े पहड़ों को हटाने का काम असाधारण कठिन है , इसलिए उस ने विरोध में कहा कि हम यहां पीढ़ियों से रहते हैं , इसी तरह आगे भी रह सकेंगे , ये दो पहाड़ इतने बड़े हैं , आहिस्ता आहिस्ता उसे हटाया जा सके , तो भी इतना ज्यादा मिट्टी पत्थर कहां रखे जाए ?

य्यु-गङ की पत्नी की आशंका पर घर वालों में खूब बहस हुई , अंत में यह तय किया गया कि पहाड़ के पत्थर दूर समुद्र में ले जाया जाए और अतह समुद्र में डाले जाए ।

दूसरे ही दिन , य्यु-गङ के नेतृत्व में घर वालों ने पहाड़ हटाने का महान और कठोर काम आरंभ किया । पड़ोस की एक विधवा थी , उस का बेटा अभी सात आठ साल का था , वह भी पहाड़ हटाने में हाथ बटाने आया । पहाड़ हटाने के लिए औजार बहुत सरल थे , फावड़े और बांस के थैला मात्र थे , और तो और पहाड़ और समुद्र के बीच फासला भी बहुत दूर था , एक लोग एक दिन महज दो दफे आ जा सकता था । इस तरह एक महीना गुजरा , किन्तु वे दोनों पहाड़ पहले की ही तरह जरा भी कम हुआ नहीं दिखता था ।

पड़ोस में ची-स्यो नाम का एक दूसरा वृद्ध रहता था , ची-स्यो का अर्थ था बुद्धिमान बुजुर्ग । उसे य्यु-गङ की इस कोशिश पर बड़ी परिहास आया , वह य्यु-गङ को बड़ा मुर्ख समझता था । तो एक दिन उस ने य्यु-गङ से कहा, तुम तिकने बड़ी उम्र के हो , चलने फिरने में भी मुश्किल हुए दिखते हो , तुम इन बड़े बड़े पहाड़ों को कैसे हटा सकोगे ।

य्यु-गङ ने जवाब में कहा कि तुम्हारा नाम ची-स्यो है , यानी बुद्धिमान बुजुर्ग हो , लेकिन मेरे विचार में तुम बच्चे से भी ज्यादा अक्लमंद नहीं होते हो । मैं इस दुनिया से जा बसने वाला हूं , पर मेरे पुत्र हो , पोते हो , परपोते हो , इस प्रकार वंश जारी रहते हुए मेरी संतानों का अंत नहीं होगा , किन्तु , इस पहाड़ का जितना हटाया गया , उतना कम हो जाएगा और फिर बढ़ नहीं सकेगा । अगर महीने पर महीने और साल पर साल उसे हटाया जाएगा , तो अखिर में एक दिन वह जरूर खत्म होगा । य्यु-गङ के पक्के संकल्प पर ची-स्यो को शर्म आया , उस ने फिर जबान नहीं खोली ।

य्यु-गङ के सारे परिवार दिन रात पक्के संकल्प के साथ पहाड़ हटाने का काम करते रहे , वे न तो तपती गर्मियों और कड़ाके की सर्दियों से डरते थे , न ही कठोर परिश्रम से । वे जी जान से काम में जुटे रहे । उन की भावना से भगवान प्रभाविक हुए , उस ने य्यु-गङ को मदद देने के लिए दो देवता भेजे , जिन्हों ने दिव्य शक्ति से इन दो पहाड़ों को य्यु-गङ के घर के सामने से दूर दराज जगह हटाया ।

मुर्ख दादा की यह कहानी सदियों से चीनी लोगों में लोकप्रिय हो रही है , चीनी लोग उस के अदम्य मनोबल से सीखते हुए कठिन से कठिन काम पूरा करने की कोशिश करते हैं ।

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