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क्वाफू की सुर्य के पीछा की कहानी

आदि प्रचीन काल में उत्तर में वीरान मैदान पर एक गगनचुंबी पर्वत खड़ा था , पर्वत की घनी वन्य वादी में बड़ी संख्या में ताकतवर भीमकाय मानुष्य रहते थे , उन के मुखिया के कानों पर दो स्वर्णिम सांप लटकाए हुए थे और दोनों हाथों में दो स्वर्णिम सांप पकड़े थे , उस का नाम था क्वाफू , कबीले का नाम भी क्वाफू पड़ा । क्वाफू कबीले के लोग दयालू , बहादुर और मेहनती थे , वे सदियों से शांत और खुशहाल जीवन बिताते थे ।

एक साल, मौसम अत्यन्त गर्म हो गया था . सुरज की तपती किरणें सीधे जमीन पर पड़ती थी , जिस से पेड़ पौधे सभी सूख कर मर गए , नदियों और झीलों के पानी सूख पड़े और मनुष्य कड़ी गर्मी से सह नहीं पा कर मर गए, जिन में क्वाफू कबीले के लोग भी शामिल थे । कबीले के मुखिया के नाते क्वाफू और अधिक दुखी हुए थे , ऊपर सुरज की ओर देखते हुए उस ने कहाः यह सुरज बड़ा दुष्ट है , मैं उस का पीछा कर उसे पकड़ दूंगा और उसे मानव के आदेश का पालन करने पर मजबूर करूंगा । कबीले के लोगों ने उसे मनाने की कोशिश की , किस ने कहा कि आप कतई न जाए , सुर्य हम से अत्यन्त दूर रहता है , वहां जा पहुंचने में आप थक से मर जाएंगे । किस ने कहा कि सूरज बहुत गर्म है , आप उस के ताप से जल जाएंगे । लेकिन क्वाफू का संकल्प पक्का हो गया , तो हो गया है । उस ने कबोले के लोगों की दुख महसूस कर कहा कि आप लोगों के सुखचैन के लिए मैं अवश्य सूरज को पकड़ दूंगा ।

कबीले लोगों से बिदा हो कर क्वाफू सूर्योद्य की दिशा में चल निकला , तेज कदम में वह हवा के वेग से आगे बढ़ता जा रहा , आसमान में सूरज तेज गति से दौड़ रहा था , क्वाफू उस का पीछा करने के लिए जान लगा कर दौड़ने लगा । ऊंचे ऊंचे पहाड़ों को पार गए , बड़ी बड़ी नदियों से गुजरे , जमीन उस के कदमों से कांप उठी । थक गए , क्वाफू ने रूक कर जूते के भीतर में पड़े रेतों को निकाल कर जमीन पर उतारे , जो एक ऊंचे पहाड़ के रूप में परिवर्तित हुआ । खाना बनाने के लिए तीन पत्थरों का चूल्हा बनाया , जिन्हों ने त्रिपदों वाली एक ऊंची गिरी का आकार ले लिया , जो हजारों मीटर ऊंची थी ।

क्वाफू सूरज के पीछे आगे दौड़ता जा रहा और सूरज के नजदीक से नजदीक पहुंच रहा था , उस का विश्वास भी लगातार बढ़ता गया था । अंत में क्वाफू उसी जगह , जहां सूर्यास्त होता था , सूरज के पास पहुंच गया । सूरज एक विशाल लाल अग्नि गोले की भांति क्वाफू के सामने चमक रहा था , उस की लाखों किरणों से वह आलोकित हो उठा । क्वाफू अपनी दोनों बाहें फैला कर सूरज को पकड़ना चाह रहा था , किन्तु सूरज की किरणें बेहद तेज और तपती थी कि क्वाफू को बहुत प्यास लगी , वह पीली नदी के किनारे पहुंच कर पीली नदी का पानी पीया, फिर वीह नदी का पानी पीया , फिर भी प्यास नहीं बुझी , तो क्वाफू फिर उत्तर में दौड़ते हुए हजारों मील विशाल तालाब पर भागे जा रहा था , तालाब के पानी से क्वाफू की प्यास बुझ सकती थी , लेकिन क्वाफू वहां तक नहीं पहुंच पाये , वह रास्ते में प्यासी व थक कर मर गए ।

दम तोड़ते समय क्वाफू को मन में बड़ा खेद हुआ , उस का ख्याल अपने कबीले से जुड़ा था , उस ने अपनी लाठी को दूर बाहर फैंक दिया , जहां लाठी गिर पड़ी , वहां तुरंत आड़ू पेड़ की घनी जंगल उग गई । आड़ू पेड़ की जंगल सदियों से हरिभरी रही और लहलहाती रही , राह चलने वाले लोग इस जंगल की छाया में विश्राम कर सकते थे , ताजा ताजा आड़ू से लोगों की प्यास बुझ सकती थी और लोगों की थकान दूर हो सकती थी और फिर बड़े ताजा तरोर हो कर अपनी सफर जारी रखते थे ।

क्वाफू की सूर्य का पीछा करने वाली कथा में आदि प्राचीन काल के चीनी लोगों की सूखा पर विजय पाने की अभिलाषा व्यक्त हुई है , हां , क्वाफू ने अपनी जान का न्यौछावर कर दिया था , लेकिन उस की अदम्य भावना अमर रहती है , इसलिए चीन की बहुत से प्राचीन पुस्तकों में क्वाफू की कहानी उल्लिखित है ।

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