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(GMT+08:00) 2008-01-19 20:31:36    
बेमतलब का तर्क वितर्क शीर्षक नीति कथा

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बहुत पहले की बात थी , एक दिन दोनों भाई शिकार करने घास मैदान चले गए , दूर आकाश में जंगली हंसों का एक झुंड नजदीक उड़ने आ रहा नजर आया ।

दोनों भाई अपना अपना तीर को राजहंस की ओर साध कर रहे थे कि बड़े भाई की बात छिड़ी , देखो , भाई , इस मौसम में जंगली हंस का मांस बड़ा ताजा और स्वादिष्ट है , उसे पानी में उबाल कर खाने से मजा आएगा ।

छोटा भाई ने भाई के सुझाव का विरोध किया , पालतू हंस का मांस उबाल कर पकाया जाता है , लेकिन जंगली हंस का मांस भुन कर पकाया जाने से अधिक मजेदार है ।

मेरी मान लो , पानी में उबाल कर पकाओ ।

बड़े भाई ने पके लहजे में कहा । इस बार मेरा सुझाव चलेगा , उसे आग पर भुन कर पकाया जाएगा ।

छोटा भाई अपनी जिद्द पर कायम रहा ।

इस तरह दोनों अपनी अपनी राय पर तुले रहे और आपस में वादविवाद जारी रहा ।

अंत में दोनों भाई वापस गांव के मुखिया के सामने जा पहुंचे , वृद्ध मुखिया ने उन के झगड़े को सुलझने का यह उपाय रखा कि जंगली हंस का आधा भाग उबाला जाए और आधा भाग भुन दिया जाए ।

दोनों भाई राजी हो गए और फिर घास मैदान वापस लौटे , इस वक्त आकाश में किसी जंगली हंस की छाया भी नहीं रह गयी।

दोस्तो , किसी काम को पूरा करने से पहले बेकार का तर्क वितर्क में लग जाने से यही परिणाम निकलना स्वाभाविक है ।

हमें खोखली विवाद से बचना चाहिए ।