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(GMT+08:00) 2008-01-15 16:29:24    
फिलिस्तीन व इजराइल के बीच केंद्रीय सवालों पर वार्ता शुरू

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इजराइली विदेश मंत्री लिवनी और फिलिस्तीन के पूर्व प्रधान मंत्री कुरैया ने 14 जनवरी को यरुशलम में हुई वार्ता में यरुशलम के स्थान , फिलिस्तीनी शरणार्थियों की वापसी और फिलिस्तीन देश की सीमा रेखा जैसे फिलिस्तीन व इजराइल के बीच उत्पन्न मुठभेंडों से जुड़े केंद्रीय सवालों पर विचार विमर्श किया । यह गत दिसम्बर को शांति वार्ता की बहाली के बाद इन दोनों पक्षों ने प्रथम बार मुठभेड़ों के केंद्रीय सवालों का उल्लेख किया है । 

उसी दिन की वार्ता दो घंटे चली , दोनों पक्षों ने केवल निम्न दो सवालों पर सहमति प्राप्त की कि एक है आइंदे हर सप्ताह में एक बार वार्ता की जाये , दूसरा है वार्ता को बाधित करने से बचने के लिये मीडिया को वार्ता की तफसीलें कम सूचित की जाये । इस के अतिरिक्त दोनों पक्षों ने कोई भी सहमति नहीं की ।

विश्लेषकों का मानना है कि दोनों पक्षों द्वारा केंद्रीय सवालों का उल्लेख किये जाने के बाद वार्ता में प्रगति करना काफी कठिन है , यह स्वाभाविक है ।

सर्वप्रथम , मूल हितों से जुड़े केंद्रीय सवालों में अंतरविरोध काफी पुराने हैं , इन अंतरविरोधों का समाधान करना भी बेहद जटिल है । अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने दोनों पक्षों के गतिरोध को तोड़ने के लिये फिलिस्तीन व इजराइल की यात्रा अभी अभी समाप्त की , यात्रा के दौरान श्री बुश ने उक्त दोनों पक्षों से एक बार फिर यह अपील की है कि वे केंद्रीय सवालों पर वार्ता करने में तेजी लाये , पर केंद्रीय सवाल पर बुश के रवैये से फिलिस्तीन व इजराइल के बीच मौजूद मतभेद दूर नहीं हो पाये , फिलिस्तीन इजराइल वार्ता को सफल बनाने के लिये कोई स्पष्ट नियम फिर भी नसीब नहीं है । एक इजराइली अधिकारी के अनुसार श्री ओल्मर्ट जिस प्रस्ताव की खोज कर रहे हैं , वह फिलिस्तीन के साथ देश की स्थापना के बारे में एक ढांचागत समझौता संपन्न करना है , लेकिन यह समझौता तभी पूर्ण रूप से कार्यांवित किया जा सकता है , जबकि फिलिस्तीन इजराइल की सुरक्षा को सुनिश्चित कर सकेगा । उधऱ अब्बास यह आशा बांधे हुए हैं कि दोनों पक्ष एक अंतिम शांति समझौता करेंगे , ताकि वे बुश द्वारा निश्चित 2008 के अंत तक फिलिस्तीन देश की स्थापना की घोषणा कर सकें । दोनों पक्षों के लक्ष्यों में मतभेदों की मौजूदगी की हालत में उन की प्रथम वार्ता में स्वभावतः कोई सकारात्मक प्रगति नहीं हो पायी है ।

दूसरी तरफ , वर्तमात में ओल्मर्ट के सामने दो तरफ से आये दबाव मौजूद हैं । एक तरफ , सत्तारुढ़ गठबंधन के इजराइल हमारी जन्मभूमि नामक दल ने धमकी देते हुए कहा कि यदि इजराइल व फिलिस्तीन केंद्रीय सवालों पर वार्ता करें , तो वह मिली जुली सरकार से हट जायेगा , दूसरी तरफ , 2006 में इजराइल व लेबनानी हिजबल्लाह की मुठभेड की जांच पड़ताल विशेष कमेटी इसी माह की तीस तारीख को अपनी अंतिम रिपोर्ट सार्वजनिक करेगी । ये सब प्रत्यक्ष रूप से ओल्मर्ट सरकार के अस्तित्व पर असर डालेंगे । जहां तक फिलिस्तीन का ताल्लुक है कि गाजा पट्टी पर अब्बास का नियंत्रण फिर भी कमजोर बना हुआ है । शीघ्र ही आयोजित विपक्षी दलों का सम्मेलन ही ऐसी स्थिति की ठोस मिसाल है । हाल ही में सीरिया हमास , जिहाद और फिलिस्तीनी जन मुक्ति मोर्चे समेत कुछ विपक्षी दलों द्वारा अपनी राजधानी दमिश्क में सम्मेलन बुलाने पर राजी है , इस सम्मेलन में फिलिस्तीन की अंदरूनी राजनीतिक स्थिति और फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन को सुधारने जैसे मामलों पर विचार विमर्श किया जायेगा ।

उक्त स्थितियों से तय हुआ है कि हालांकि केंद्रीय सवालों पर वार्ता अमरीका के दबाव में शुरू है , लेकिन निकट भविष्य में कोई भारी प्रगति होना फिर भी बहुत मुश्किल है ।

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