चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ ने यात्रा पर आए भारतीय प्रधान मंत्री श्री मनमोहन सिंह के साथ वार्ता की। दोनों पक्षों ने नयी परिस्थिति में चीन व भारत के रणनीतिक सहयोगी साझेदार संबंधों पर व्यापक सहमति प्राप्त की। दोनों ने एक स्वर में कहा कि वे शांति व समृद्धि उन्मुख रणनीतिक सहयोगी साझेदार संबंधों का विकास करने, चिरस्थायी शांति व समान समृद्धि वाली सामन्जस्यपूर्ण दुनिया के निर्माण की दिशा में आगे बढ़ेंगे।
चीनी प्रधान मंत्री वन चा पाओ के निमंत्रण पर, भारतीय प्रधान मंत्री श्री सिंह ने हाल में पेइचिंग पहुंचकर चीन की तीन दिवसीय औपचारिक यात्रा शुरु की। यह पांच वर्षों में किसी भारतीय प्रधान मंत्री की पहली चीन यात्रा है। श्री सिंह वर्ष 2008 में चीन की यात्रा करने वाले प्रथम विदेशी नेता भी बने। 14 तारीख के तीसरे पहर, पेइचिंग के जन वृहद भवन में श्री वन चा पाओ ने मेहमान के लिए जोशपूर्ण व भव्य स्वागत समारोह का आयोजन किया।
इस वर्ष यह श्री सिंह की प्रथम यात्रा भी है। इस से पहले विशेषज्ञों ने कहा कि इस से जाहिर होता है कि श्री सिंह चीन-भारत संबंधों को बड़ा महत्व देते हैं। श्री वन चा पाओ के साथ वार्ता में श्री सिंह ने कहा,
हम चीन के साथ आपसी लाभ वाले सहयोग के विकास को बड़ा महत्व देते हैं ।दोनों देशों के सर्वोच्च नेताओं की आपसी नियमित यात्राओं ने हमारे बीच के संबंधों के विकास को आगे बढ़ाया है। यात्रा व आवाजाही से दुनिया के सामने हमारी आपसी समझ व विश्वास को मजबूत करने का संकल्प जाहिर हुआ है।
श्री सिंह ने कहा कि चीन के साथ संबंधों का विकास करना भारत की विदेशी नीति की सर्वश्रेष्ठ नीति है। भारत व चीन को दुनिया को यह जाहिर करना चाहिए कि भारत व चीन न केवल पड़ोसी व मित्र हैं, बल्कि सहयोगी साझेदार भी हैं। भारत चीन के साथ आवाजाही को,आपसी विश्वास को मजबूत करने और सहयोग का विस्तार करने और द्विपक्षीय रणनीतिक सहयोगी साझेदार संबंधों को आगे बढ़ाने का समान प्रयास करने की प्रतीक्षा में है।
श्री वन चा पाओ और श्री सिंह के बीच लगभग दो घंटें तक वार्ता चली जोकि अनुमानित तय समय से लगभग आधा घंटा लम्बी रही। दोनों ने द्विपक्षीय संबंधों तथा समान दिलचस्पी वाले अंतरराष्ट्रीय सवालों पर गहन रुप से रायों का आदान-प्रदान किया। वार्ता के बाद श्री वन चा पाओ ने देश-विदेश के संवाददाताओं को वार्ता में प्राप्त सहमति का परिचय दिया।
हमारा मानना है कि चीन व भारत सहयोगी साझेदार हैं और प्रतिद्वंद्वी नहीं हैं। चीन व भारत को एक दूसरे का सम्मान, समझ, विश्वास व सहयोग करना चाहिए, ताकि आपसी लाभ व समान विकास को साकार किया जा सके । दोनों देशों की समग्र शक्ति के तीव्र विकास ने द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करने का अवसर दिया है। चीन व भारत के बीच सहयोग को मजबूत करना एशिया और दुनिया की शांति व विकास के लिए लाभदायक है।
चीन व भारत दुनिया के दो सब से बड़े विकासमान देश हैं जो, इधर के वर्षों में द्विपक्षीय संबंधों का निरंतर विकास कर रहे हैं, जिन में सब से उल्लेखनीय संकेत है आर्थिक व व्यापारिक आवाजाही का दिन ब दिन घनिष्ठ होना। संबंधित आंकड़ों के अनुसार, चीन व भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार की रक्म 2007 में 38 अरब 70 हजार अमरीकी डॉलर तक जा पहुंची है, जो वर्ष 1995 की तुलना में 33 गुना अधिक है। वार्षिक वृद्धि दर भी 34 प्रतिशत तक पहुंची है। विकास की ऐसी अच्छी प्रवृत्ति के मद्देनजर, चीन व भारत के नेताओं ने यह निर्णय लिया है कि वे आपसी आर्थिक व व्यापारिक संपर्क को और मजबूत करेंगे। श्री सिंह ने कहा,
हम जानते हैं कि हमारे रणनीतिक सहयोगी साझेदार संबंधों को एक शक्तिशाली बहुध्रुवीय आपसी लाभ के आर्थिक व व्यापारिक संबंध के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए। हम ने यह निर्णय लिया है कि 2010 तक, हमारी द्विपक्षीय व्यापार रक्म 40 अरब अमरीकी डॉलर से 60 अरब अमरीकी डॉलर तक उन्नत की जाएगी।
श्री वन चा पाओ और ने श्री सिंह ने 21 शताब्दी के उन्मुख चीन व भारत के समान विचार के दस्तावेज पर भी हस्ताक्षर किए और एक स्वर में कहा कि वे शांति व समृद्धि के उन्मुख रणनीतिक सहयोगी साझेदार संबंधों का विकास करने और चिरस्थायी शांति व समान समृद्धि वाली सामन्जस्यपूर्ण दुनिया के निर्माण को आगे बढ़ाने पर सहमत हैं। श्री वन चा पाओ ने कहा,
हम अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय सवालों पर सहयोग को मजबूत करने , चिरस्थायी शांति के निर्माण को आगे बढ़ाने और समान समृद्धि वाली सामन्जस्यपू्र्ण दुनिया के निर्माण को आगे बढ़ाने पर समहत हैं।21 शताब्दी के उन्मुख चीन व भारत के समान विचार दस्तावेज में अहम अंतरराष्ट्रीय व क्षेत्रीय सवालों पर दोनों की सहमति प्रतिबिंबित हुई है, जो चीन व भारत के संबंधों के विकास का निर्देशन करने वाला और एक महत्वपूर्ण दस्तावेज बनेगा।
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