पाओ-जंग की कार्यपरायणता और वफादारी से प्रभावित हो कर सम्राट ने पाओ-जंग को अनेक क्षेत्रों का महापौर नियुक्त कर दिया।अपने कार्यकाल में पाओ-जंग जहां-जहां गए,
वहां-वहां उन्होंने किसानों का बोझ हल्का करने और प्रशासन में सुधार लाने की कोशिश की,यहां तक कि सम्राट के शाही संबंधियों को विशेषाधिकार देने की प्रथा को खत्म करने की अपील भी की।उस समय चांग च्याओ-ज़्वो नामक एक दरबारी अफसर भी वहां थे।अपनी भतीजी के सम्राट की उपपत्नी होने के कारण उन के हाथ में राष्ट्रीय वित्त विभाग जैसे अनेक महत्वपूर्ण विभागों की देखरेख की जिम्मेदारी थी।पाओ-जंग का मानना था कि वे इतने विभागों का एक साथ अच्छी तरह प्रबंध करने के काबिल नहीं हैं।इसलिए उन्होंने सम्राट को पांच बार पत्र भेजकर इस अफसर से कुछ अधिकार वापस लेने का अनुरोध किया।इस मामले को ले कर एक दिन उन का सम्राट के साथ आमना-सामना भी हुआ। धैर्य से समझाने-बुझाने के बाद आखिरकार सम्राट ने इस अफ़सर के अधिकारों को कम कर दिया।
ईस्वी सन् 1056 में जब पाओ-जंग 57 साल की उम्र में दाखिल हुए,तो उन्हें राजधानी का महापौर नियुक्त किया गया।वे इस पद पर कोई डेढ़ साल तक रहे। इस दौरान उन्होंने हमेशा की तरह अपनी कार्यशैली से अनेक रईसों और उन के समर्थित अफसरों की अवैध कार्यवाहियों पर करारा प्रहार किया।शुरू में उन्हें जरूर जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा,पर अंत में वे लोग उन के अविचलित रूख से हार गए और यहां तक कि पाओ-जंग का नाम सुनते ही घबराने लगे।पाओ-जंग के प्रशासन में राजधानी भ्रष्टाचार से मुक्त होकर एक साफ़-सुथरी,सभ्य औऱ सुरक्षित महानगर बन गयी।इसलिए स्थानीय लोगों ने स्नेहपूर्वक उन्हें विशेषाधिकारी कहकर पुकारा।
सन् 1062 में जब पाओ-जंग देश के उपप्रधान मंत्री के पद पर थे तब बीमारी से उन का निधन हो गया।ऐतिहासिक ग्रंथों के अनुसार उन के निधन के दिन राजधानी गमगीन सागर में डूब गयी और उन के अंतिम संस्कार के दिन राजधानी खाली सी हो गयी।शहर के सब लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु एक जगह पर एकत्र हो गए और लोगों की भीड़ से रह-रह कर हाय-हाय की आवाज सुनाई पड़ती रही।
चीन के सामंती समाज में कानून-व्यवस्था की बजाए अधिकारी-व्यवस्था का बोलबाला था।उस व्यवस्था में पाओ-जंग जैसे ईमानदार और अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा रखने वाले अधिकारी मोती की तरह दुर्लभ और मूल्यवान थे।इसलिए चीनी जनता के मन में उन की स्मृति आज तक ज्यों की त्यों बरकरार है। लोगों ने समाज के विकास के चलते सांस्कृतिक रचनाओं के जरिए उन की छवि को निरंतर परिपूर्ण बनाने का प्रयास किया है।आज उन की छवि भ्रष्टाचार विरोधी आदर्श के रूप में लोगों के दिलों में कायम है।
उल्लेखनीय है कि चीन की लगभग सभी परंपरागत शैलियों वाले ऑपेराओं में पाओ-जंग से जुड़े कार्यक्रम होते हैं।उन में से《मौत की सज़ा》नामक कार्यक्रम पेइचिंग शैली के ऑपेरा,हपे शैली के ऑपेरा और शानशी शैली के ऑपेरा में देखने को मिलता है।इस कार्यक्रम में पाओ-जंग द्वारा राजकुमारी के अपराधी पति को मौत की सज़ा दी जाने की कहानी दिखाई जाती है।
इस कहानी के अनुसार सुंग राजवंश काल के दौरान छन शी-मई नामक एक व्यक्ति अपनी पत्नी और अन्य परिजनों को घर पर छोड़ कर सर्वोच्च स्तर की राष्ट्रीय परीक्षा में भाग लेने के लिए काफी दूर राजधानी में गया।परीक्षा में उस ने प्रथम स्थान प्राप्त किया और उसे सीधे ही उच्च अधिकारी के पद पर नियुक्त किया गया।ऐसे में उसे घर लौटकर अपनी पत्नी और अन्य परिजनों को राजधानी में लाना चाहिए था,पर उस ने ऐसा नहीं किया,बल्कि ठाट-बाट के जीवन की लालसा में राजकुमारी से शादी कर ली।कई साल बाद उस की असहाय पत्नी बच्चे के साथ गांव से राजधानी पहुंची।निर्मम छन शी-मई को आशंका थी कि पत्नी और बच्चे से उस के अपराध का पर्दाफाश हो जाएगा।इसलिए उस ने अपने अंग-रक्षक को उन की हत्या करने का आदेश दिया।बाल-बाल बची पत्नी ने अपने साथ हुए अन्याय से पाओ-जंग को वाकिफ़ करवाया।पाओ-जंग ने इस मामले को गंभीरता से लिया और पूरी घटना को बारीकी से परखने के बाद छन शी-मई को मौत की सज़ा दी।
बस यह तो मात्र एक सांस्कृतिक रचना है,पर उस में चित्रित पाओ-जंग की छवि लोगों का वांछित आदर्श है।
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