अमरीकी राष्ट्रपति श्री बुश 8 से 16 तारीख तक इज़राइल, जोर्डन नदी के पश्चिमी तट, कुवैत, बर्लिन, संयुक्त अरब अमीरात, सऊदी अरब और मिस्र आदि सात मध्य पूर्व देशों व क्षेत्रों की यात्रा करेंगे जिन में इज़राइल और जोर्डन नदी के पश्चिमी तट की यात्रा राष्ट्रपति पद संभालने के बाद श्री बुश की पहली यात्रा होगी । विश्लेषकों का विचार है कि बुश की मौजूदा मध्य पूर्व यात्रा का प्रमुख मकसद फिलिस्तीन-इज़राइल की शांति वार्ता को आगे बढ़ाना और ईरान के नाभिकीय सवाल को लेकर तेहरान पर दबाव डालना है ।
फिलिस्तीन व इज़राइल मुठभेड़ को समाप्त करने के लिए गत वर्ष के नवम्बर माह में अमरीका के अन्नापोलिस में मध्य पूर्व सम्मेलन आयोजित किया गया, जिस में पचास से ज्यादा देशों व अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस से अनेक वर्षों तक गतिरोध में फंसी फिलिस्तीन-इज़राइल शांति वार्ता की बहाली एक बार फिर शुरू हुई । लेकिन अन्नापोलिस सम्मेलन के बाद इज़राइल ने फिलिस्तीन-इज़राइल शांति वार्ता को लेकर नए प्रतिबंध व शर्तें पेश कीं, जिन में फिलिस्तीन द्वारा अपने आतंकवादी संगठनों को नष्ट करने से पूर्व शांतिपूर्ण समझौते पर इज़राइल द्वारा हस्ताक्षर न करना आदि शामिल है । उधर फिलिस्तीन में जोर्डन नदी के पश्चिमी तट और गाज़ा पट्टी की अलगाव की स्थिति से फिलिस्तीन- इज़राइल शांति को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा ।
ऐसी स्थिति में अन्नापोलिस सम्मेलन में प्राप्त उपलब्धियों को सुदृढ़ करने व उस का विकास करने के लिए श्री बुश ने फिलिस्तीन के कब्ज़े वाली भूमि में इज़राइल द्वारा यहूदी बस्तियों का विस्तार करने की गतिविधि पर प्रथम बार टिपण्णी की और कहा कि इस गतिविधि से फिलिस्तीन इज़राइल शांति में बाधा खड़ी होगी । इज़राइल को अपने वचन का पालन कर अवैध यहूदी बस्तियों को हटाना चाहिए । श्री बुश ने कहा कि वे मौजूदा यात्रा के जरिए फिलिस्तीन व इज़राइल से अपने वचनों का पालन करने का आग्रह करेंगे ।
अमरीकी मीडिया का विश्लेषण है कि श्री बुश के ऐसा करने का मकसद अपने अंतिम साल के कार्यकाल में फिलिस्तीन-इज़राइल शांति वार्ता को आगे बढ़ाने की कोशिश कर अपनी वैदेशिक नीति रिकॉर्ड को सुधारना है। लेकिन वाशिंग्टन के अनेक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों का विचार है कि मध्य पूर्व सवाल बहुत जटिल सवाल है, फिलिस्तीन व इज़राइल के बीच मुठभेड़ बहुत गंभीर समस्या है । एक ही साल में दोनों पक्षों की मुठभेड़ को समाप्त करना असंभव होगा ।
फिलिस्तीन-इज़राइल शांति वार्ता के अलावा श्री बुश की मध्य पूर्व की यात्रा का एक और मकसद ईरान के नाभिकीय सवाल पर अरब देशों का समर्थन प्राप्त करना है ।
अमरीकी गुप्तचर विभाग ने कुछ समय पूर्व ईरान के नाभिकीय सवाल से संबंधित मूल्यांकन रिपोर्ट जारी की, जिस में कहा गया था कि कई साल पूर्व ईरान ने नाभिकीय हथियारों की विकास परियोजना को बंद कर दिया था और आज तक बहाल नहीं किया है । इस मूल्यांकन रिपोर्ट से बुश सरकार मुसीबत में फंस गई, और अमरीका के ईरान के खिलाफ बल-प्रयोग की संभावना कम हो गई लगती है ।
लेकिन बुश सरकार ने मूल्यांकन रिपोर्ट के आधार पर ईरान के प्रति अपनी नीति को नहीं बदला है । अमरीका का विचार है कि ईरान मध्य पूर्व क्षेत्र में सब से बड़ा खतरा है और वह उस के खिलाफ प्रतिबंध लगाने पर डटा हुआ है । इस के साथ ही उस ने ईरान के खिलाफ बल-प्रयोग करने की संभावना को नहीं छोड़ा है । लेकिन ऐसी नीति का कार्यान्वयन मध्य पूर्व देशों के समर्थन के बिना असंभव होगा । इस तरह मौजूदा मध्य पूर्व यात्रा के दौरान श्री बुश सऊदी अरब, मिस्र, संयुक्त अरब अमीरात, कुवैत और बर्लिन आदि देशों के सामने ईरान के नाभिकीय सवाल को लेकर अमरीका की चिंता को रखेंगे , ताकि उन का समर्थन प्राप्त कर ईरान को अलग-थलग किया जा सके ।
विश्लेषकों का विचार है कि श्री बुश को अपना लक्ष्य पूरा करने में कठिनाई आएगी । हालांकि अरब देश ईरान की नाभिकीय परियोजना के खिलाफ़ हैं और उस की बड़ी क्षेत्रीय शक्ति बनने की इच्छा के बारे में चिंतित हैं, पर फिर भी वे ईरान के खिलाफ़ बल-प्रयोग का विरोध करते हैं । उन की चिंता है कि इस से क्षेत्रीय स्थिति में और उथल-पुथल पैदा होगी । अमरीकी गुप्तचर विभाग द्वारा ईरान के नाभिकीय सवाल को लेकर रिपोर्ट जारी किए जाने के बाद इस क्षेत्र में अरब देशों का समर्थन प्राप्त करना बुश सरकार के लिए और कठिन होगा । इस तरह ऐसा कहा जा सकता है कि श्री बुश की मौजूदा मध्य पूर्व यात्रा के दौरान अनेक चुनौतियां मौजूद होंगी। उन का क्या परिणाम निकलेगा, अभी अनुमान नहीं किया जा सकता ।
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