खुन-छ्वी शैली वाले ऑपेरा का इतिहास कोई 600 साल पुराना है,सो वह चीन में ऑपेराओं का पूर्वज कहलाता है।चीन में ऑपेराओं की बहुत सी शैलियों की उत्पति और विकास पर उस का प्रभाव पड़ा है। खुन-छ्वी शैली वाले ऑपेरा की धुन सलीकेदार है,बोल चिकने-चुपड़े है और मुद्रा व अंग-भंगिमाओं में विविधता है। 19वीं शताब्दी के बाद वह दक्षिणी चीन के उच्च तबकों का चहेता बन गया।यही कारण है कि वह उच्च तबकों के जितना करीब आता गया,उतना ही आम जनता से दूर चला गया।ऐसे में वह धीरे-धीरे पतन के कगार पर आ पहुंचा।मई 2001 में यूनेस्को ने इस शैली के ऑपेरा को विश्व की मौखिक व अभौतिक संपदाओं की प्रथम खेप में शामिल किया।
खुन-छ्वी शैली वाले ऑपेरा के अनुसंधानकर्ता श्री छन जाओ-हुंग ने 《आलूचा पंखिया》के रूपांतरण की खूब प्रशंसा की और कहा कि आज जो रूपांतर हुआ है,वह कल परंपरा हो जाएगा।उन का कहना है:
"हम खुन-छ्वी ऑपेरा की परंपरागत विशेषता बनाए रखने के साथ उस में युग से मेल खाने वाला सुधार लाना चाहिए।अनेक किस्मों की आधुनिक अभिनय-कला यहां तक कि विदेशी ऑपेराओं में भी ऐसी खूबियां होती हैं,जिन्हें खुन-छ्वी ऑपेरा में ग्रहण किया जा सकता है।कुछ नया न किए जाने से प्राचीन ऑपेराओं के दर्शको की संख्या घटती चली जाएगी और अंतत: उन के अस्तित्व की समस्या पैदा हो जाएगी।"
उधर य्वे-चु शैली वाला ऑपेरा पिछली शताब्दी के अंत से ही जन-समुदाय में प्रचलित रहा है।जब खुन-छ्वी ऑपेरा अपना ज्यादा ध्यान शहरवासियों पर दे रहा है,तो य्वे-चु ऑपेरा का अधिक ध्यान व्यापक गांववासियों की ओर चला गया है।
दक्षिणी चीन के हांगचो शहर का य्वे-यु ऑपेरा मंडल एक सक्रिय अभिनय-दल है।पिछली शताब्दी के अंत में य्वे-चु ऑपेरा का बाजार भी मंदा पड़ा।इस स्थिति को सुधारने के लिए हांगचो के य्वे-चु ऑपेरा मंडल के कलाकारों ने गांवों में जाकर वहां अपने दर्शकों को तैयार करने की योजना बनायी।इस मंडल के प्रभारी होऊ-चुन ने मंडल के कार्यउसूल की चर्चा करते हुए कहा:
"हमारा मंडल जन-समुदाय में य्वे-चु ऑपेरा को लोकप्रिय बनाने के कार्य उसूल पर कायम है।विभिन्न तबकों के लोगों को हमारे द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रमों से संतोष उपलब्ध कराना हमारे कार्य का उद्देश्य है।हम पुराने दर्शक और नए दर्शक दोनो के शौक को ध्यान में रखकर परंपरा के आधार पर कुछ नया करने की कोशिश जारी रखेंगे।"
100 साल से भी अधिक पहले य्वे-चु शैली वाला ऑपेरा दक्षिणी चीन के चच्यांग प्रांत के ग्रामीण क्षेत्र में प्रादुर्भूत हुआ। बाद में शांघाई महानगर में इस का बड़ा विकास हुआ ।लेकिन इस समय बड़े शहरों में उस के दर्शक बहुत कम हो गए हैं, जब कि ग्रामीण इलाके में उस का खूब स्वागत किया जा रहा है।ऐसे में चीनी ऑपेरा जगत को इस बात पर विचार करना पड़ा है कि परंपरागत ऑपेरा कला का पुनरूद्धान शहरों पर निर्भर कराना चाहिए या गांवों पर।
परंपरागत चीनी ऑपेरा-कला के टिप्पणीकार,चीनी मीडिया विश्विद्यालय के प्रोफेसर चो ह्वा-पिन का चिवार है कि ऑपेरा-कला एक प्रकार की लोककला है,जिसे ऊपरी तबके और निचले तबके में नहीं बांटा जाना चाहिए।विभिन्न शैलियों वाले ऑपेरा अपनी-अपनी विशेषताओं के अनुसार विकास का रास्ता ढ़ूंढ़ निकाल सकते हैं।उन्हों ने कहा :
"चीन में परंपरागत ऑपेरा पूरे राष्ट्र के हैं।इसलिए उन्हें पूरी जनता की सेवा में पेश आना चाहिए।गांववासियों और शहरवासियों के बीच मांग में जरूर फर्क होता है,पर उन सब की मांगों को पूरा करना ऑपेरा-कलाकारों का एक दायित्व है।
आज संस्कृति बहुतत्वीय जमाने में दाखिल हुई है।संस्कृति के एक भाग के रूप में ऑपेरा भी बहुतत्वीय विकास की दिशा में चल सकते हैं। "
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