चीन के सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी भाग में एशिया का मशहूर पामीर पठार अवस्थित है , जहां 14 समुद्र सतह से 8 हजार मीटर ऊंची पर्वत चोटियां खड़ी हुई हैं , इस के कारण पामीर पठार विश्व में बहुत मशहूर है और पठार पर रहने वाले ताजिक जाति के लोग भी पामीर के बहादुर बाज के नाम से विख्यात हैं ।
चीन के सिन्चांग उइगूर स्वायत्त प्रदेश के दक्षिण पश्चिमी भाग में अनंत अपार फैले पामीर पठार पर ताजिक , उइगुर , किर्गिज और ह्वी आदि चीन की अल्पसंख्यक जातियों के लोग रहते हैं । लेकिन वहां की कुल आबादी में 90 प्रतिशत लोग ताजिक जाति के हैं । वे अधिकांश सिन्चांग के ताशकुरकन प्रिफेक्चर की ताजिक स्वायत्त काऊंटी में रहते हैं । पामीर पठार पर बसे ताजिक जाति के लोग अपने को ताजिक कहते हैं , यह एक सुन्दर नाम है और ताजिक भाषा में ताजिक का मतलब ताज यानी मुकुट है । अतीत में ताजिक लोग मुख्यतः मवेशी चराने का काम करते थे और इस के साथ खेतीबाड़ी भी करते थे । वे अर्धपशुपालन और अर्ध कृषि उत्पादन का जीवन बिताते थे । नए चीन की स्थापना के बाद वर्ष 1954 में सिन्चांग के ताशकुरकन प्रिफेक्चर की ताजिक स्वायत्त काऊंटी स्थापित हुई । चीन सरकार के पुरजोर समर्थन में ताजिक जाति का अर्थतंत्र तेजी से विकसित हुआ और जन जीवन का स्तर भी उल्लेखनीय रूप से सुधर गया । पामीर के ताजिक लोगों का एक नया ऐतिहासिक युग आरंभ हो गया है।
ताजिक काऊंटी के ताजिक जातीय संस्कृति केन्द्र में ताजिक गाइड श्री एबुल ने हमें बताया कि ईसापूर्व दसवीं शताब्दी के समय ताजिक जाति के पूरज पामीर पठार पर बस गए थे , ताजिक लोग चीन में आबाद श्वेत रंग के निवासी हैं । श्री एबुल ने कहाः
आम तौर पर श्वेत रंग के लोग का नाक ऊंचा है , चेहरा थोड़ा लम्बा है , आंखों की पलकें दुहरी हैं और आंखें गहरी धंसी हुई हैं । ताजिक लोग शकलसूरत में यूनानी लोग से मिलते जुलते लगते हैं , किन्तु उन के त्वचे का रंग थोड़ा काला है , क्यों कि पठार पर सूर्ज से आयी युल्ट्रेविओलेट रै प्रबल होती है , जिस से तप कर ताजिक लोग का त्वचा रंग काला बदल गया है , यदि पठार से अन्य स्थान चले गए , तो एक ही हफ्ते के भीतर उन के रंग सफेद में परिवर्तित हो सकता है ।
ताजिक लोगों ने अपनी विशेष पहचान वाली जातीय संस्कृति की सृष्टि की है । परम्परागत जातीय त्यौहार उन के रीति रिवाज का एक अहम भाग है । ताजिक जाति इस्लाम धर्म के इस्मायील संप्रदाय के मातहत है । इसलिए वे अपना परम्परागत पर्व –कुर्बान त्यौहार मनाते हैं । ताजिक लोग बड़े मनोप्रयोग से कुर्बान त्यौहार मनाते हैं । इस की चर्चा में स्थानीय गाइड श्री एबुल ने बतायाः
ताजिक जाति में कुर्बान मनाने के समय बकरी का वध किया जाता है , साल के शुरूआती समय में बलि के लिए श्रेष्ठ बकरी के बच्चे चुने जाते हैं , ऐसे बकरी के बाल सफेद होना जरूरी है । पुरानी प्रथा के मुताबिक बकरी का वध करने के समय बकरी के भौंहों को रंजित किया जाता है , इस के बाद बकरी को मकान की छत पर उठा कर पहुंचाया जाता है और वहीं उस का वध किया जाता है । कुर्बानी के लिए अर्पित बकरी पवित्र माना जाता है , इसलिए उस के खून को गंदे स्थल पर नहीं टपकने दिया जाता है , बकरी का वध किये जाने के बाद उस के खून से बच्चे के माथे या मुह पर लगाया जाता है , जिसे सुहुर्त माना जाता है ।
ताजिक जाति के पर्व त्यौहार की अपनी अलग विशेषता होती है , साथ ही नित्य शिष्टाचार में भी उस का लम्बा श्रेष्ठ इतिहास रहा है । खास कर जब दो लोग आपस में मिले , तो अभिवादन के लिए उन की विशेष प्रथा होती है । आम तौर पर महिला पुरूष की हथेली को जूम लेती है । पूर्वज पीढ़ी और अनुज पीढी के लोगों की मुलाकात के समय पूरज लोग अनुज लोग के कान को जूम लेते हैं । जबकि अनुज लोग पूरज लोग की हथेली को जूम लेते हैं , इस से वे पूरजों के प्रति अपना आदर व्यक्त कर देते हैं ।
ताजिक जाति की संस्कृति को थोड़ा ज्यादा जानने के लिए हमारे संवाददाता ने विशेषतः ताशकुर्कन टाउनशिप के ताजिक विद्वान श्री मादालहान का साक्षात्कार किया ।
श्री मादालहान का घर ठेठ शैली का ताजिक घर है । घर के मकान बहुत सादे सरल है , जो पत्थरों से बनाये गये हैं । चीन की हान जाति के मकान आम तौर पर दक्षिण की ओर मुख करते हैं , लेकिन ताजिक जाति के मकानों के दरवाजे बहुधा पूर्व की दिशा में खुलते हैं । इस का मतलब है कि वे हमेशा सूरज की ओर देखते हैं ।
श्री मादाल्हान ने हमें बताया कि ताजिक लोग बाज को शुरवीर का प्रतीक मानते हैं । ताजिक जाति के परम्परागत सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में बहुत सी बाज से संबंधित कहानियां और लोकगीत प्रचलित हैं । ताजिक वाद्य यंत्र –बाज नुमा बांसुरी के बारे में एक सुन्दर लोक कथा प्रचलित है । इस की चर्चा में श्री मादाल्हान ने कहाः
बहुत पहले की बात थी , कहा जाता है कि एक लड़का और लड़की एक दूसरे से गहरा प्रेम करते थे , लेकिन जब तत्कालीन नगर पालिका को उन का प्रेम मामला मालूम हुआ , तो उस ने दोनों को एक दूसरे से अलग कर दिया , आपस में अलग होने के बाद युवती रोज पानी लेने जाते वक्त युवा की आवाज में गाया कोई गीत सुनती रहती थी । युवा के पास एक बाज था, बाज की मृत्यु होने के बाद उस ने सपना दिलाते हुए अपने मालिक युवा को बताया कि वह बाज के पंखे की हड्डी का एक बांसुरी बनाये और इसी बांसुरी पर लोक गीत बजाए । सपने में बाज द्वारा कही गयी बातों के अनुसार युवा ने बाज की हड्डी से एक बांसुरी बनाया और उसे हवा फूंक कर धुन बजाने लगा । इस बांसुरी से बजायी गयी धुन असाधारण मधुर थी । धुन सुनने के बाद युवती धुन के ताल पर थरकती लगती थी और इस तरह वहां बाज बांसुरी और बाज नृत्य के नाम पर ताजिक जाति का बाज नुमा बांसुरी प्रचलित हो गया और बाज का नृत्य लोकप्रिय हुआ।
श्री मादाल्हान ने हमें बताया कि बाज बांसुरी आम तौर पर युगल रूप में बजाया जाता है , कभी कभी बांसुरी भी दो दो के रूप में बेचा जाता है । युगल बांसुरी युवा युवती के अटूट प्रेम का प्रतीक है । ताजिक लोग नृत्य गान में बहुत पारंगत रहते हैं और बहुत पसंद भी करते हैं । हर त्यौहार या अन्य शुभअवसर पर जरूर नृत्य गान आयोजित होता है । ताजिक जाति के बूढे बच्चों समेत सभी लोग नृत्यगान जानते हैं । असल में पठार पर बसे ताजिक जाति के लोग न केवल नृत्य गान के जरिए अपना हृद्यभाव अभिव्यक्त करते हैं , साथ से इस से देश की रक्षा के लिए अपनी बाहदुरी भी दिखाते हैं । पामीर पठार पर चीन की लम्बी सीमाएं फैली हुई हैं । सदियों से ताजिक जाति के किसान व चरवाहे स्वेच्छे से सीमा रक्षक सेना को सहायता देते हुए देश की सीमा की रक्षा करने का काम संभालते आऐ हैं । अपार अनंत बर्फीले पहाड़ों पर जब कभी सीमा रक्षक सेना के जवानों को किसी मुश्किल का सामना करना पड़ता है , तो ताजिक लोग अवश्य आकर उन की मदद करते हैं । ताशकुरकन काऊंटी की राजनीतिक सलाहकार सम्मेलन की कमेटी अध्यक्ष श्री मोनी ताबलिट ने कहाः
दो हजार सालों के कालांतर में ताजिक लोगों ने देश के लिए जो सब से बड़ा योगदान किया है , वह सीमा की रक्षा करने में हुआ है , ताजिक लोगों के खून में देशभक्ति प्रबल है , वे देश से प्यार करते हैं , जन्म भूमि से प्यार करते हैं और उन में से कोई अपने देश को नहीं छोड़ करके चले जाता है और वे यहां सीमा रक्षक बल के गश्त दल को मातृभूमि की सीमा की रक्षा करने में मदद देते हैं ।
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