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(GMT+08:00) 2008-01-04 15:01:18    
परंपरागत चीनी ऑपेरा का विकास किस दिशा में

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इधर के कुछ दिनों में चीनी मीडिया में देश के परंपरागत आँपेराओं के बारे में ज्यादा रिपोर्टें आने लगी हैं।पहले《आलूचा पंखिया》नामक खुन-छ्वी शैली वाले ऑपेरा का पेइचिंग में फिर से मंचन किया गया। 300 साल पुराने इस ऑपेरा ने परंपरागत व हृदयस्पर्शी प्रेम कहानी और आधुनिक मंचीय दृश्य-सज्जा से नयी धूम मचायी।फिर य्व-चु शैली वाले ऑपेरा अपनी शताब्दी-जयंती पर फिर से दर्शकों के आकर्षण का केन्द्र बना ।लेकिन चीन में पंरपरागत शैली वाले ऑपेराओं के आंशिक पुनरूथान से ज्यादा इन ऑपेराओं के आगे के विकास पर ही लोग ध्यान देते हैं। लोग यह जानना चाहते हैं कि ये प्राचीन ऑपेरा किस तरह आज भी लोगों के सौंदर्य-बोध की पूर्ति और मांग से मेल खा सकते हैं।

खुन-छ्वी और य्वे-चु शैलियों वाले ऑपेरा चीन के दक्षिणी भाग में जन्मे हैं।चीन की परंपरागत शैलियों वाले ऑपेराओं में से पेइचिंग ऑपेरा सब से प्रभावशाली है,जिस का प्रादुर्भाव उत्तरी चीन में हुआ।अपने 200 साल से अधिक के इतिहास में उस ने अभिनय की अन्य भगिनी कलाओं की विशेषताओं को भी अपने में समो कर देश भर में लोकप्रियता बटोरी और राष्ट्रीय ऑपेरा का खिताब जीता।

राष्ट्रीय ऑपेरा माने जाने पर भी पेइचिंग ऑपेरा के दर्शकों की संख्या उतनी नहीं है,

जितनी फिल्मों की या नाटकों की।विशेषकर युवा लोगों को उस में दिलचस्पी नहीं है।

वे इसे देखना तक नहीं चाहते,करना तो दूर की बात है। कौन वह काम करना चाहता है,जिस में उसे कोई रूचि नहीं है।सो पेइचिंग ऑपेरा के विकास में सुयोग्य व्यक्तियों की कमी की दिक्कत आई है।पेइचिंग ऑपेरा थिएटर की प्रभारी सुश्री वांग य्वी-चिन का मानना है कि परंपरागत शैलियों वाले ऑपेराओं को आधुनिक समाज में पुनर्जीवित रहने के लिए नयी शैली वाली कलाओं की खूबियां सीखनी चाहिएं।उन का कहना है :

"एक अभिनय-कला के रूप मे पेइचिगं ऑपेरा को भी युग के साथ कदम मिलाकर चलना चाहिए।हमारे थिएटर के कलाकार इस परंपरागत ऑपेरा को बदलते समाज के अनुकूल बनाने के सवाल पर विचार कर रहे हैं कि किस तरह इसे सामयिक बनाया जाए।यह पेइचिंग ऑपेरा जगत में अनुसंधान का एक मुख्य मुद्दा भी है।"

चीनी राष्ट्रीय पेइचिंग ऑपेरा थिएटर के एक नेता श्री य्वी ख्वे-ची का विचार है कि युवा दर्शकों को तैयार करना ही खासा महत्वपूर्ण है।उन्हों ने कहा:

"पेइचिंग ऑपेरा के विकास और संरक्षण के लिए अभिनेताओं और अभिनेत्रियों के उत्तराधिकारियों की जरूरत है।पर इस से अधिक जरूरत है दर्शकों के उत्तराधिकारी तैयार करने की।ठोस रूप से कहें,तो 35 साल से कम उम्र वाले लोगों को पेइचिंग ऑपेरा के बारे में बहुत कम जानकारी है।उन में किस तरह से इस ऑपेरा का प्रचार-प्रसार किया जाए और किस तरह इस ऑपेरा के प्रति उन में दिलचस्पी उजागर हो, पेइचिंग ऑपेरा कलाकारों का एक कार्य यह देखना भी है।"

उक्त उल्लेखित《आलूचा पंखिया》नामक एक खुन-छु शैली वाला ऑपेरा 1699 में छिंग राजवंश के विख्यात नाटककार खुंग शांग-रन की कृति है।पुरानी पृष्ठभूमि को आज की पृष्ठभूमि में बदल कर आधुनिक समाज में जीने वाले लोगों की मानसिकता के अनुसार इस ऑपेरा में नयापन लाने की कोशिश की गयी है ।यह कोशिश सफल रही,सो उस ने नयी धूम मचाई।पुरानी कृतियों में नयापन लाने के और कई उदाहरण भी हैं।पिछले साल चीन के थाइवान प्रांत में मशहूर लेखक पाई श्यान-युंग ने कॉलेज विद्यार्थियों के लिए दूसरे प्राचीन खुन-छु शैली वाले ऑपेरा《प्योनी मंडप》का रूपांतर किया।उस के मंचन का थाइवान

ही नहीं,बल्कि देश की मुख्यभूमि में भी खूब स्वागत किया गया।《आलूचा पंखिया》उस की सफलता से प्रेरित होकर पैदा हुआ कहा जा सकता है।

《आलूचा पंखिया》की निर्देशक सुश्री थ्यान छिन-शिन ने कहा कि प्राचीन ऑपेराओं से नयी कृतियां रचने के दौरान परंपरा और आधुनिकता के संगम पर जोर दिया जाना चाहिए।खासकर मंच-सज्जा और रुप-सज्जा व पौशाकों की शैली में नयापन लाया जाना चाहिए।हमारे नए संस्करण की 《आलूचा पंखिया》ऑपेरा ने गाने का परंपरागत अंदाज बरकरार रखने के साथ मंच-सज्जा और रुप-सज्जा व पौशाकों की शैली में नयापन लाने का सफल प्रयोग किया है।उन का कहना है:

"मुझे अपेक्षा है कि आगे भी ऑपेरा के बाहरी रूप में सुधार लाया जाएगा।मिसाल के लिए मंच की सजावट में नयी प्रगति होगी,ताकि नए दृश्यों से दर्शक प्रभावित हो सकें।जहां तक ऑपेरा के विषय का सवाल है,उस में ज्यादा सुधार लाने की गुंजाइश बहुत कम है।हम ज्यादा से ज्यादा उस में गाने के उन अंशों को शामिल करने की कोशिश कर सकते हैं,जो जन-समुदाय में बिखरे हुए हैं।"