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(GMT+08:00) 2007-12-27 10:31:02    
मशहूर चीनी थाईवानी मूर्तिकार चू-मिंग की कहानी

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श्री चू-मिंग का जन्म वर्ष 1938 में चीन के थाईवान प्रांत के म्याओ-शु क्षेत्र में हुआ था।परिवार गरीब होने के कारण उन्हें प्राइमरी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद ही नौकरी करनी पड़ी।15 साल की आयु में उन्हें पिता जी के द्वारा मंदिरों में सजावट के रूप में फूल-नक्काशी का काम करने वाले एक कारीगर के पास पहुंचाया गया,ताकि वह खुद के लिए रोजी-रोटी का प्रबंध कर सके।चू-मिंग ने नक्काशी के कौशल पर कुछ अधिकार प्राप्त किया,पर वह एक साधारण कारीगर बनना नहीं चाहता था।उन्हो ने कहा :

"पहले मैं ने जो सीख लिया,वह मंदिरों की छतों,स्तंभों और द्वारों पर पुष्प उकेरने जैसा पुराना पड़ गया परंपरागत कौशल था।ऐसा काम करने का मेरा स्तर संतोषजनक था,तो भी एक कलाकार बनना ही मेरा सपना था।मैं गुरू जी से पूछा करता था कि क्या मेरे द्वारा तऱाशी गयी वस्तुएं किसी मेले में प्रदर्शित की जा सकती हैं? गुरू जी ने कभी मेरे इस प्रश्न का उत्तर भी नहीं दिया।मैं दूसरी चीजों की नक्काशी करना चाहता था और कौशल में नयी प्रगति करना चाहता था।पर मंदिरों के लिए कारीगर के रूप में काम करने से मेरा सपना पूरा नहीं हो पाएगा। "

मंदिरों के लिए काम करने के 10 सालों के दौरान श्री चू-मिंग ने किसी मूर्तिकार का शिष्य बनने की अथक कोशिश की,पर व्यक्तिगत संपर्क के अभाव के कारण ये सब नामायाब रहीं।बावजूद इस के उन्हें निऱाशा नहीं हुई।उन्हों ने आत्माध्ययन करना और किबातों में छपे चित्रों को देखते हुए मूर्तियां बनाने का अभ्यास करना शुरू किया।30 साल की उम्र में उन्हों ने हिम्मत से थाइवान के सुप्रसिद्ध मूर्तिकार प्रोफेसर यांग ईन-फंग के घर का दरवाजा खटखटाया और उन्हें मूर्तिकार बनने की अपनी 10 साल पुरानी अभिलाषा बताई।प्रोफेसर यांग ने उन की सद्भावना और महनत से प्रभावित होकर उन्हें अपना एक शिष्य बनाया।

श्री चू-मिंग ने भावविभार होकर कहा कि अध्यापक यांग उन्हें फूल-नक्काशी की छोटी परिधि से मुक्त कराकर मूर्तिकला के भवन में ले आए,जिस से वह एक कारीगर से एक कलाकार में बदल गये हैं।

सन् 1976 में श्री चू-मिंग ने थाइवान में अपनी पहली व्यक्तिगत प्रदर्शनी लगायी।उस समय थाइवान के सांस्कृतिक जगत में ग्रामीण विषय हावी रहे।श्री चू-मिंग के द्वारा

किसानों,चरवाहों और गाय-बकरियों के आधार पर बनाई गई मूर्तियां जल्द ही आम चर्चाओं का केंद्र बन गईं और खुद चू-मिंग रातोंरात ग्रामीण विषय वाली कृतियां रचने के कलाकारों का एक प्रतिनिधि बन गए।उन्हों ने इस का जिक्र करते हुए कहा :

"कहा जा सकता है कि प्रथम व्यक्तिगत प्रदर्शनी से ही मेरी ख्याति कायम हुई है।मैं रातोंरात नामी हो गया हूं,पर मैं हमेशा ठंडे दिमाग से सोच-विचार करता हू।उस प्रदर्शनी में जो दिखाया गया,वह सब क्षेत्रीय था।बाद के एक लम्बे अरसे में मै ने क्षेत्रीय विषयवाली कृतियां नहीं रचीं।मैं समझता हूं कि मूर्तिकला की वह अंतर्राष्ट्रीय शैली होनी चाहिए,जो दर्शकों को डिजाइन,विस्तार और ताकत के सौंदर्य का बोध देती।यही मूतियों का आत्मा और भाषा है।शैडोबोक्सिंग नामक मेरी कृतियों के समूह में इस शैली की अच्छी तरह से अभिव्यक्ति की गयी है।सो उन का अंतर्राष्ट्रीय स्वागत किया गया है।"

पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक के शुरू में श्री चू-मिंग ने चीन के हांगकांग,जापान औऱ दक्षिण कोरिया में अपनी व्यक्तिगत प्रदर्शनियों का सफल आयोजन करवाया।इस के बाद वह अमरीका के न्यूयार्क गए।लेकिन अंग्रेजी न जानने के कारण उन्हें वहां के लोगों के साथ संपर्क में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ा।वह वहां एकदम अजनबी बन गये।इस स्थिति से उबरने के लिए उन्हों ने खुद बाजार जाकर वहां से लकडियां खरीदीं और उन से मूर्तियां बनायीं।न्यूयार्क का सोहो क्षेत्र बहुत मशहूर है,जहां विश्वविख्यात कला गैलरियां एक के बाद एक तड़केदार रूप से विराजमान हैं।श्री चू-मिंग अपनी कृतियों को लेकर वहां की 3 प्रमुख कला गैलरियों में से एक मैक्स हाद्चाइसोन गैलरी गए।बेशक उन्हें अपनी कृतियों को प्रदर्शित करने का मौका मिला।इस तरह वह धीरे धीरे पश्चिमी कला जगत की नजर में आ गए हैं।

न्यूयार्क में श्री चू-मिंग की 4 सफल व्यक्तिगत प्रदर्शनियां लगीं।फिर वह यूरोप के लंदन और पेरिस गए।वहां प्रदर्शित उन की शैडोबोक्सिंग शीर्षक मूर्तियों के समूह का पश्चिमी सौंदर्यबोध के विशेषज्ञों द्वारा उच्च मूल्यांकन किया गया।ब्रिटिश कला समीक्षक ई-आन.फ़िदली ने कहा कि श्री चू-मिंग ने हाथों से नही,दिल से ही ये मूर्तियां बनायी हैं,जिन की नाटकीय मोहन-शक्ति के सामने कोई भी व्यक्ति झुके बिना नहीं रह सकता है।

कृतियां रचने के अपने अनुभवों के बारे में श्री चू-मिंग ने कहा :

"मूर्तिकला डिजाइन,विस्तार व ताकत के सौंदर्य जैसी अंतर्राष्ट्रीय भाषा और राष्ट्रीय विशेषताओं के संगम पर आधारित है।चीनी कलाकार अपने राष्ट्र की सांस्कृतिक श्रेष्ठता पर निर्भर होने से ही अंतर्राष्ट्रीय कला जगत में अपनी पैठ बना सकते हैं।चीनी संस्कृति कई हजार वर्ष पुरानी है,जो राष्ट्र का रत्न है।उसे अपनी कृतियों पर जड़ सकने पर ही कलाकार अपने को सुयोग्य साबित कर सकते है। "