अफगान राष्ट्रपति करजाई ने गत व्यस्त सप्ताहांत बिताया , 22 और 23 दिसम्बर को उन्हों ने क्रमशः फ्रांस के राष्ट्रपति सार्कोजी , आँस्ट्रेलिया के प्रधान मंत्री केवन रूड्ड और इटली के प्रधान मंत्री रोमानो प्रोडी इन तीनों पश्चिमी आदरणीय मेहमानों की अगवानी की । पर उक्त तीनों पश्चिमी शीर्ष नेताओं ने अचानक अफगानिस्तान की यात्रा करने का इसी वक्त का विकल्प क्यों किया । लोकमत है कि यह अनेक बहुपक्षीय तत्वों की वजह से हुआ है ।
सर्वप्रथम पश्चिमी देशों के महत्वपूर्ण त्यौहार क्रिसमस का आगमन हो रहा है , ऐसे अवसर पर उक्त तीनों नेता इसी यात्रा के जरिये आंतक विरोधी अग्रीम मोर्चे पर जुझारू करने में जुटे सैनिकों के प्रति संवेदना प्रकट करना चाहते हैं , ताकि वहां तैनात सेनाओं की स्थिति स्थिर हो सके और सैनिकों का हौसला बढाया जा सके । अफगानिस्तान की अल्प यात्रा के दौरान उक्त तीनों नेता अफगानिस्तान में तैनान अपने सैनिकों से मिलने गये ।
दूसरी तरफ अंदरूनी राजनीतिक जरूरत की दृष्टि से देखा जा सकता है । गत दो वर्षों में कुल तीन सौ तीस से अधिक विदेशी सैनिकों को अफगानिस्तान में अपनी जान गंवानी पड़ी है , जिस से अफगानिस्तान में सेनाओं की तैनाती करने वाले सभी देशों पर कुप्रभाव पड़ गया है और इन्ही देशों की सरकारों से सेना वापस बुलाने की आवाज उठ गयी है । ऐसी स्थिति में उक्त तीनों नेताओं का अफगान यात्रा करने का इरादा अफगान सवाल पर उन की निगाह टिकना और इसी मौके का फायदा उठाकर अंदरूनी मनोभावना के प्रति संवेदना प्रकट करना है ।
तीसरी तरफ वर्तमान आफगान सुरक्षा स्थिति आशाप्रद नहीं है । उक्त तीनों शीर्ष नेता आफगानिस्तान की उथल पुथल परिस्थिति पर काफी चिन्तित हैं और यह आशा करते हैं कि अफगानिस्तान की वास्तविक परिस्थिति के जांच सर्वेक्षण के जरिये अफगानिस्तान पर अपनी अपनी नीति में समन्वय किया जा सके , साथ ही उन का यह इरादा भी है कि अफगानिस्तान का समर्थन करना जारी रखने से राष्ट्रपति कर्जाई निश्चिंत हो सके । वर्तमान में अफगानिस्तान में तैनात विदेशी सैनिकों की कुल संख्या करीब 50 हजार है , जो चार साल से पहले की तीगुनी है । पर इतने अधिक विदेशी सैनिकों की तैनाती से अफगान परिस्थिति में कोई शैथिल्य नहीं आया । अफगान सवाल के लिये संयुक्त राष्ट्र महा सचिव के विशेष प्रतिनिधि कोनिगस ने गत 15 अक्तूबर को सुरक्षा परिषद को प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा कि चालू वर्ष में अफगानिस्तान में उत्पन्न हिंसक घटनाओं की संख्या गत वर्ष की समान अवधि की तुलना में लगभग तीस प्रतिशत बढ़ गयी है , जिस से अफगानिस्तान में 6 हजार व्यक्तियों की मृत्यु हो गयी है । इस माह की 14 तारीख को आँस्ट्रेलिया के रक्षा मंत्री फित्सजीबोन ने ब्रिटेन एडिनबर्ग में हुए 8 देशों के रक्षा मंत्री सम्मेलन में चेतावनी देते हुए कहा कि नोटो को अपनी रणनीति को बदलकर अफगानिस्तान में फौजी व जन जीवन योजना की सर्वांगीर्ण जांच पड़ताल करनी पड़ेगी , नहीं तो उन्हें इस अफगान युद्ध से हार खानी पड़ेगी । 21 दिसम्बर को राष्ट्रपति करजाई ने कहा कि अफगानिस्तान को अत्यंत गम्भीर क्षति पहुंच गयी है , देश का पुननिर्माण करने के लिये जिस समय की जरूरत पड़ेगी , वह कल्पना से कहीं अधिक लम्बा होगा , अफगानिस्तान को कम से कम भावी दस वर्षों के भीतर विदेशी फौजी समर्थन की जरूरत होगी । इसीलिये यात्रा के दौरान उक्त तीन देशों के नेताओं ने अफगान सरकार को दीर्घकालिक राजनीतिक , फौजी और वित्तीय समर्थन करने का वायदा किया है ।
इस के अतिरिक्त उक्त तीनों देशों के नेताओं का अफगान यात्रा करने का इरादा संश्रयकारी अमरीका के प्रति अपना समर्थन प्रकट करना है । अमरीकी राष्ट्रपति बुश ने 20 दिसम्बर को आय़ोजित न्युज ब्रीफिंग में जताया कि अफगान सवाल पर उन की सब से बड़ी चिन्ता यह है कि नाटो के संश्रयकारी देश अफगानिस्तान से अपनी सेना वापस बुलाये । उन का कहना है कि इन हिचकने वाले देशों को यह समझना चाहिये कि अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक परीक्षण कुछ समय की जरूरत पड़ जाये । उक्त तीनों नेताओं ने जो अफगान यात्रा की है , वह बुश की चिन्ता को दूर करने के लिये है ।
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