चीन में दास समाज का प्रारम्भ श्या राजवंश की स्थापना से हुआ था। इन-शाङ और पश्चिमी चओ नामक दो दास-राजवंशों में इस का निरन्तर विकास हुआ तथा वसन्त और शरद काल में इस का धीरे-धीरे पतन हो गया। इस प्रक्रिया से गुजरने में कोई 1600 वर्षों का समय लगा था।
श्या:चीन की दासप्रथा वाली प्रथम राजसत्ता चीन के इतिहास में श्या राजवंश (21 वीं शताब्दी – 16 वीं शताब्दी ई. पू.) दासप्रथा वाली प्रथम राजसत्ता का प्रतिनिधित्व करता था। यह राजवंश य्वी नामक शासक द्वारा अपने बेटे छी को अपना पद दिए जाने के समय से लेकर अंतिम शासक च्ये की मृत्यु तक कुल 400 वर्षों से अधिक काल तक चला था। कृषि उस काल का प्रमुख धंधा था। इस राजवंश की गतिविधियों का केन्द्र आज के पश्चिमी हनान और दक्षिणी शानशी के आसपास के इलाकों में था।
शाङ:दास-मालिकों का राजवंश ईसापूर्व 16 वीं शताब्दी में, ह्वाङहो नदी के निचले भाग के आसपास के इलाकों में रहने वाले शाङ कबीले ने अपने मुखिया थाङ के नेतृत्व में श्या राजवंश का तख्ता पलट दिया और शाङ राजवंश (16 वीं शताब्दी – 11 वीं शताब्दी ई. पू.) की स्थापना की। शुरू-शुरू में उसकी राजधानी पो (आज के हनान प्रान्त के शाङछ्यू के आसपास) थी। बाद में राजा फानकङ ने उसे इन (आज के हनान प्रान्त के आनयाङ के श्याओथुन के आसपास) स्थानान्तरित कर दिया। उस काल में राजनीति, अर्थतंत्र और संस्कृति का अत्यधिक विकास हुआ था। राजधानी इन की खुदाई से प्राप्त पुरावशेषों से उस समय की सामाजिक स्थिति का प्रतिबिम्ब देखने को मिलता है। शाङ राजवंश की अपनी अपेक्षाकृत सम्पूर्ण राज्य मशीनरी और सेना थी। शहरों का उदय हो चुका था। कोदों, मकई, गेहूं और धान आदि फसलें उगाई जाती थीं। रेशम के कीड़े पालने, रेशम अटेरने और रेशमी कपड़ा बुनने की तकनीक को आत्मसात कर लिया गया था। कांसा पिघलाने और ढालने की विधि का भी पर्याप्त उच्च स्तर तक विकास हो चुका था। कांसे का इस्तेमाल मदिरापात्रों के अलावा, हथियार, धर्मानुष्ठान में काम आने वाले पात्र, खाने के बरतन, घोड़ा-गाड़ी के पुरजे, बाजे और औजार बनाने में भी किया जाने लगा था। ये सभी चीजें राजधानी इन के ध्वंसावशेषों की खुदाई से प्राप्त हुई हैं। आनयाङ नामक स्थान की खुदाई से प्राप्त कांसे का चार पैरों वाला एक आयताकार पात्र, जिस पर"सि मू ऊ"रेखाक्षर अंकित हैं, आज भी पेइचिंग के चीनी इतिहास के संग्रहालय में सुरक्षित रखा हुआ है। इस की ऊंचाई 133 सेन्टीमीटर और वजन 875 किलोग्राम है। शानदार डिजाइन वाले इस सुन्दर पात्र के ढालने की विधि भी काफी उन्नत थी। शाङ राजवंश काल की लिपि बैल की हड्डियों व कछुए के कोशों पर उत्कीर्ण भविष्यफलों तथा कांसे के बरतनों पर खुदवाए गए अभिलेखों के रूप में देखने को मिलती है। इन भविष्यफलों से उत्पादन और घरेलू कामकाज में लगे दासों के जीवन, युद्धों और प्राकृतिक परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त होती है। उस काल में पंचांग भी अपनाया जा चुका था, जिसके अन्तर्गत 30 या 26 दिनों वाले 12 महीनों का एक साल होता था और कुछ साल बीतने पर एक फालतू महीना जोड़कर अधिवर्ष बना दिया जाता था। शाङ राजवंश के मकबरों की खुदाई से पता चलता है कि उस काल में दासों को अपने मालिक के मरने पर उस के साथ ही कब्र में जिन्दा दफना दिया जाता था। शाङ राजवंश का शासन लगभग 600 वर्षों तक चला था।
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