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(GMT+08:00) 2007-12-10 10:25:31    
विश्व मौसम परिवर्तन के बारे में चीन का रूख

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इंडोनिशिया के बाली द्वीप में आयोजित संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन सम्मेलन में भाग ले रहे चीनी प्रतिनिधि मंडल के उप नेता , चीनी राष्ट्रीय मौसम परिवर्तन निपटारा कार्य के नेतृत्व दल के कार्यालय के प्रधान सु वी ने 8 तारीख को चीनी मीडिया के साथ साक्षात्कार में मौसम परिवर्तन के बारे में चीन के रूख पर प्रकाश डाला ।

उसी दिन , चीनी मीडिया के साथ साक्षात्कार में श्री सु वी ने चीन द्वारा संयुक्त राष्ट्र मौसम परिवर्तन ढांचागत संधि तथा क्योटो प्रोटोकोल के कार्यान्वयन के बारे में चीन का रूख दोहराया । उन्हों ने कहाः

संधि को अमली जामा पहनने के लिए मुख्य सवाल मौसम परिवर्तन के प्रभाव को कम करना , मौसम परिवर्तन से अनुरूप होना , तकीनकी हस्तांतरण तथा पूंजी की समस्या है । संधि पर अमल ठोस रूप से करना चाहिए । प्रोटोकोल के कार्यान्वयन के लिए दो पहलुओं पर ध्यान देना है । पहले , विकसित देशों को प्रोटोकोल के प्रथम चरण के लिए दिए अपने वचन में तय हुए लक्ष्यों को साकार करना चाहिए । दूसरे , अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को दूसरे चरण के लिए ग्रीन हाउस गैस की निकासी में कटौती के लक्ष्य पर समहति प्राप्त होना चाहिए।

मौजूदा बाली सम्मेलन में कुछ विकसित देशों के प्रतिनिधियों व मीडिया ने यह घोषित किया कि क्योटो प्रोटोकोल की अवधि 2012 में पूरी होगी । उन का मतलब है कि यह प्रोटोकोल पुराना पड़ गया है और उस की जगह एक नया प्रोटोकोल बनाना चाहिए । इस पर श्री सुवी ने कहाः

यह कथन गलत है और वह एक गलतफहमी है । 2012 की समय सीमा प्रोटोकोल के पहले चरण की है , न कि समूचे प्रोटोकोल की है । प्रोटोकोल दीर्घकालित दस्तावेज है , उस के पहले चरण के अलावा दूसरा चरण भी होता है । कानून की दृष्टि से यह बहुत स्पष्ट है ।

श्री सु वी ने प्रोटोकोल के दूसरे चरण के लिए ग्रीन हाउस गैस की निकासी में कटौती के बारे में चीन के रूख पर भी प्रकाश डाला , उन्हों ने कहा कि चीन समझता है कि 2012 के बाद प्रोटोकोल के सभी हस्ताक्षर वाले देशों के ग्रीन हाउस गैस निकासी में कटौती के लक्ष्य उन के निर्धारित लक्ष्यों के बराबर होना चाहिए ।

श्री सु वी ने कहा कि निरंतर विकास के ढांचे में विकासशील देशों को प्रोत्साहन देने की व्यवस्था बनाना चाहिए और उन्हें सक्रिय रूप से मौसम परिवर्तन से निपटने के अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में भाग लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए । श्री सु वी ने कहा कि मौसम परिवर्तन से निपटने के मसले पर विकासशील देशों को कार्यक्षमता के विकास तथा पूंजी के समर्थन की जरूरत है । चीनी प्रतिनिधि मंडल आशा करता है कि अगले चरण में मौसम परिवर्तन से निपटने के कार्य अंजाम में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को ठोस रूप से विकासशील देशों में मौसम परिवर्तन का निपटारा करने वाली क्षमता उन्नत करने की मदद देने के लिए व्यवस्था कायम करवाना चाहिए ।

लेकिन अब कुछ विकसित देशों ने कहा कि तकनीकें निजी कारोबारों या विभागों के हाथ में हैं , जिस में बौद्धिक संपदा अधिकार की समस्या है , इसलिए सरकार उन्हें मुफ्त प्रदान करने के लिए जबरदस्त नहीं कर सकती । इस पर श्री सुवी ने कहाः

चूंकि मौसम परिवर्तन एक विश्वव्यापी चुनौति है , वह केवल किसी एक वाणिज्य , व्यापार और प्रतिस्पर्धा से जुड़ी समस्या नहीं है । अतः कर्तव्य और नैतिकता पर भी बल दिया जाना चाहिए । सभी देशों और सभी लोगों को इस समस्या के समाधान के लिए योगदान और न्योछावर देना चाहिए , सरकार नीतिगत तरीके , कानून के जरिए और वित्तीय कर वसूली में प्रोत्साहन देने के कदम से निजी विभागों को उन की तकनीकों को विकासशील देशों को हस्तांतरित कराने की कोशिश करना चाहिए ।

श्री सु वी ने कहा कि चीन सक्रिय रूप से मौसम परिवर्तन के अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में हिस्सा लेगा और विश्वव्यापी मौसम संरक्षण के लिए अपना योगदान देगा । श्री सु वी ने कहा कि चीन ज्यादा काम और व्यवहारिक काम करना चाहता है । चीन ने अपनी कोशिशों के बारे में बहुत कम प्रचार प्रसार किया है , इसलिए दूसरों को चीन के कामों की कम जानकारी है , इस के कारण यदि दूसरे लोग चीन द्वारा की गयी अथम कोशिशों को नहीं भी मानें , तो भी कोई हर्ज नहीं होगा । क्योंकि चीन मौसम संरक्षण करने तथा ठोस और सार्थक योगदान करने पर ज्यादा महत्व देता है । यह मौसम परिवर्तन से निपटने वाले अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में भाग लेने के लिए चीन का एक बुनियादी निर्देशक सिद्धांत है ।