दोस्तो, आज के इस कार्यक्रम में हम आप को तिब्बतियों के मन में पवित्र झील नामछो के दौरे पर ले चलते हैं ।
एक दिन हम जिस समय कार पर सवार होकर पवित्र नामछो झील के लिये रवाना हुए , उसी समय छिट पुट वर्षा हो रही थी , कार के बाहर व्याप्त धुंधले वातावरण में तिब्बत के विशेष पठारीय मौसम से हमें ठंड लग रही थी । समुद्र की सतह से तीन हजार आठ सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित ल्हासा शहर में कई दिन ठहरने के बाद हमारी पठारीय तकलीफें धीरे धीरे दूर हो गयी है , पर जब हमारी कार समुद्र की सतह से पांच हजार दो सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित नालिकन नामक दर्रे के पास पहुंची , तो मेरे कानों व सिर में असहनीय दर्द एकदम होने लगा । ठीक इसी वक्त हमारी कार के ड्राइवर ने कहा कि जल्दी उतरो , नामछो झील का फोटा खिंचो । फिर हम ने उन के इशारे की ओर नजर दौड़ायी , तो सामने मौजूद अद्भुत अनुपम सौंदर्य देखकर हम एकदम चमत्कृत रह गये । पर्वत के नीचे नीले पर्यावरण में एक विशाल शांतिमय झील नजर आती है और झील की चारों ओर खड़े श्रृंखलाबद्ध बर्फीले पर्वत की परछाई समतल झील में साफ साफ दिखायी देती है , यह रहस्यमय दृश्य देखकर मानों हम देवताओं के निवास स्थान में पहुंच गये हो ।
तिब्बतियों की मान्यता में नामछो क्षेत्र देवताओं का निवास स्थान है । कहा जाता है कि नामछो झील में एक अप्सरा रहती है , झील में जिस बर्फीले पर्वत की परछाई दिखायी देती है , वह नामछो झील के उत्तर में स्थित थांगकुरा श्रृंखलाबद्ध पर्वत ही है और वह तिब्बतियों के दिल में सब से महान पर्वत देवता ही है और वह है नामछो अप्सरा का पति भी । कहा जाता है कि अप्सरा का पति थांगकुरा एक बहुत खूबसूरत व होशियार देवता है , बहुत सी अप्सराओं को उसे प्रेम हो गया है । यह बात जानकर अप्सरा नामछो बेहद दुखी है और हर रोज आंसू बहाती रहती है , दिन बितने के साथ साथ उस के आंसुओं से नामछो झील का पानी धीरे धीरे नमकीन हो गया और नामछो झील तिब्बत में वह सब से बड़ी खार झील का रूप ले चुकी है , जो तिब्बत में समुद्र की सतह से सब से ऊंचे स्थान पर खड़ी हुई है ।
तिब्बती बंधुओं की मान्यता में पवित्र नामछो झील का प्राण होता है और उस का जन्म भेष वर्ष में हुआ था । इसलिये तिब्बती पंचांग के अनुसार हर भेष वर्ष में हजारों लाखों तीर्थ यात्री नामछो झील का चक्कर लगाने की गतिविधियों में भाग लेते हैं । तीर्थ यात्रों में इस पवित्र झील का चक्कर लगाने की यह परम्परा आज तक भी बनी रही है कि वे सही दिशा में दंडवती करते हुए पवित्र नामछो झील का चक्कर लगाते हैं , ताकि अपनी पूरी जिंदगी में सुख चैन व सही सलामत उपलब्ध हो सके । झील के तट पर हमारे संवाददाता ने कुंगचोत्सथा नामक एक चरवाहे के साथ बातचीत की ।
चरवारे कुंगचोत्सथा ने कहा कि तिब्बती पंचांग के अनुसार भेष वर्ष में 15 अप्रैल को हम अवश्य ही पवित्त नामछो झील का चक्कर लगाने आते हैं । पुरा चक्कर लगाने में कम से कम दसेक दिन लगते हैं । क्योंकि हमें विश्वास है कि इस वक्त बुद्ध स्वर्ग में झील के पास हमारी पूजा देख पाते हैं , ताकि हम अपनी मृत्यु के बाद स्वर्ग में जा सके । यह सौभाग्य की बात है कि मैं नामछो झील के पास रहता हुं , क्योंकि मुझे रोज रोज यह पवित्र झील देखने को मिलती है ।
नामछो झील के पास एक चाशी प्रायद्वीप है , इस प्रायद्वीप पर स्थापित बहुत से मठों में नामछो व न्येनछिंग थांगकुरा के तिब्बती लामा बौद्ध धार्मिक अवतारों की मूर्तियां रखी हुई हैं । चरवाहे कुंगचोत्सथा ने इस का परिचय देते हुए कहा कि क्योंकि नामछो झील की चारों तरफ भौगोलिक पर्यावरण अत्यंत पैचीदा है , इसलिये बहुत तीर्थ यात्री चाशी प्रायद्वीप को सात चक्कर लगाने का विकल्प करते हैं । कारण है कि चाशी प्रायद्वीप को सात चक्कर लगाने का फासला नामछो झील का एक चक्कर लगाने के फासले के बराबर है , चाशी प्रायद्वीप लगाने में तीर्थ यात्रियों की निष्ठा बुद्ध भी महसूस कर पाते हैं ।
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