प्रिय श्रोताओ , आज के चीन का भ्रमण कार्यक्रम में हम आप के साथ ऊंटों के बारे में और अधिक जानकारियां जानने के लिये ऊंट के जन्मस्थान के दौरे पर जा रहे हैं । कभी कभार मादा ऊंट बच्चे का जन्म देने में आयी दिक्कतों की वजह से नन्हे ऊंट को छोड़ देती है , तो ऐसी स्थिति में स्थानीय चरवाहे उसे दूध पिलाओ नामक गीत गाते हैं । यह गीत सुनते सुनते मादा ऊंट भाव विभोर होकर आंसू बहाती है , फिर धीरे धीरे अपने नन्हें बच्चे को दूध पिलाने लग जाती है और इसी वक्त से अपने बच्चे को कभी भी नहीं वियोग नहीं करती । अजीना जिले के चरवाहे कनतंग ने पहले तीन सौ ऊंटों को पाला था और बहुस से ऊंटों को दूध पिलाओ नामक गीत गाये ।
उन्हों ने कहा कि नन्हा ऊंट बाल बच्चे की ही तरह भूख लगने पर रो पड़ता है , यदि मादा ऊंट उसे दूध पिलाने से इनकार करती है , तो मालिक को उसे दूध पिलाओ नाम का गीत सुनाना आवश्यक है । फिर मादा ऊंट यह गीत सुनते सुनते अपने बच्चे को स्नेह से चुमकर
दूध पिलाने से राजी हो जाती है ।
पुराने जमाने से लेकर आज तक ऊंट , प्रकृति और मानव जाति के बीच का घनिष्ट संबंध रहा है और वे एक दूसरे पर आश्रित भी हैं । यदि रेगिस्तान का प्राण मानव जाति के अस्तित्व से पैदा होता है , तो ऊंट रेगिस्तान की आत्मा ही है , रेगिस्तान में रहने वाले वासियों को ऊंट पर बड़ा गर्व है । महत्वपूर्ण त्यौहारों पर स्थानीय पुरूष अपने बलवान ऊंटों को दिखाने में होड़ लगाते हैं ।
अराशान वासी ऊंट पर सवार होने में निपुर्ण हैं , ऊंट दौड़ उन का पसंदीदा खेल ही है । हर वर्ष के शरद में आयोजित नादाम मेले में स्थानीय चरवाहे सुंदर मंगोल जातीय पोशाकों से खूब सजधजकर ऊंट दौड़ में भाग लेते हैं । इस के अलावा वे शादी व्याह , वसंत त्यौहार या प्रार्थना समारोह जैसे भव्य जशनों के उपलक्ष में ऊंट दौड़ की कुशलता दिखाने का मौका नहीं चूकने देते हैं । चरवाहे कनतंग ने इस का परिचय देते हुए कहा कि हमारे यहां हर वर्ष के शरद में आयोजित नादाम मेले में ऊंट दौड़ की प्रतियोगिता की जाती है । जबकि वसंत के मौके पर चरवाहे रंगबिरंगे रेश्मी कपड़ों से अपने ऊंटों को सजाते हैं , यहां तक कि वे अपने रिश्तेदारों के घर जाकर ऊंट दौड़ करना भी नहीं भूलते ।
स्थानीय चरवाहों को ऊंटों से विशेष लगाव होने की वजह से अराशान क्षेत्र में कमशः ऊंट संस्कृति का नजारा नजर आ गया , जिस से बड़ी तादाद में चरवाहों और आसपास के शहरी वासियों का ध्यान आकर्षित हुआ है । जब ऊंट दौड़ का आयोजन किया जाता है , तो बहुत से स्थानीय ग्रामीण व शहरीय वासी अपनी कारों या बसों के जरिये इस गतिविधि में भाग लेने आते हैं , जिस से स्थानीय आर्थिक विकास को बढावा मिल गया है ।
ऊंट मानव जाति और पर्यावरण का अच्छा दोस्त ही नहीं , वह ऊंचे आर्थिक मूल्य वाला निधि भी है । मसलन ऊंट के दूध म मिट में समृद्ध प्रोटीन मौजूद है , उस के ऊन व लेजर गर्म कपडे बनाने में उपयोगी हैं ।
ऊंट अपनी छोटी जिंदगी में मानव जाति को असीमित मूल्य प्रदान करते हैं , जिससे गोबिस्तान में अर्थतंत्र का स्थिर विकास होता गया है और स्थानीय चरवाहों का जीवन भी दिन ब दिन खुशहाल होने लगा है । लेकिन जलवायु के असाधारण परिवर्तन की वजह से पारिस्थितिकी में लगातार बिगाड़ आयी है और ऊंटों के अस्तित्व का प्राकृतिक पर्यावरण भी प्रभावित हो गया है ।
पारिस्थितिकि व पर्यवरण का सुधार कर ऊंटों व वीरान रेगिस्तान तथा विशाल घास मैदान का सामंजस्यपूर्वक सहअस्तित्व वर्तमान अराशान के चरवाहों की अत्यावश्यकता है । घास मैदान व ऊंट पालन के अनवरत विकास और स्थानीय चरवाहों के जीवन स्तर की उन्नति के लिये स्थानीय सरकार व ऊंट संघ ने ऊंटों के स्रोत के विकास की अथक कोशिशें की हैं । अराशान ऊंट संघ के अध्यक्ष पाइंगताई ने इस तरह परिचय देते हुए कहा कि
कई प्रसिद्ध देशी विदेशी कम्पनियों ने हमारे कामों में बड़ी दिलचस्पी दिखायी और हमारे साथ ऊंट दूध , मिट व ऊन जैसे क्षेत्रों में सहयोग पर वार्ता की । अमरीकी संबंधित विशेषज्ञों ने विशेष तौर पर ऊंट के दूध पर तफसील से अनुसंधान किया और यह परिणाम निकाला कि ऊंट का दूध कैंसरों व मधुमेह जैसी कठीन बीमारियों के इजाज में असरदार है । इसलिये हम एक या दो टन ऊंट दूध का उत्पादन अडडे की स्थापना करने को तैयार हैं , ताकि रोगों के इलाज व निरोध में योगदान प्रदान किया जा सके ।
साथ ही स्थानीय सरकार व चरवाहों के समर्थन में अराशान क्षेत्र ने 2005 में ऊंट परिरक्षित घास पारिस्थितिकि संघ की स्थापना की । अब यह संघ ऊंटों के पालन को बढ़ाने में विदेशी सहयोग की खोज में संलग्न है , ताकि स्थानीय रेतीलीकरण को सुधारने व घास पारिस्थितिकि संरक्षण के लिये और अधिक धन राशि व तकनीकी समर्थन उपलब्ध कराया जाये ।
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