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(GMT+08:00) 2007-11-30 10:03:36    
मंगोल जातीय लोक नृत्य ---शाऊलतङ

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आप को मालूम नहीं होगा कि चीन के सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश में मंगोल जाति के लोग भी रहते हैं । सिन्चांग की मंगोल जाति में शाऊलतङ शैली का लोक नृत्य प्रचलित रहता है , जो इस साल सिन्चांग के प्रथम जत्थे के गैर भौतिक सांस्कृतिक अवशेषों की संरक्षण सूची में शामिल किया गया है ।

आज के सिन्चांग स्वायत्त प्रदेश के पाइंक्वोलङ स्वायत्त प्रिफेक्चर में 50 हजार मंगोल जातीय लोग रहते हैं । वे आज से 230 साल पहले वाल्डगा नदी क्षेत्र से स्थानांतरित हो कर यहां आ बसी मंगोल जाति की एक शाखा के संतान हैं । सिन्चांग में आ बसने से पहले ही इस मंगोल शाखा के लोगों में शाऊलतङ शैली का लोक नृत्य चल रहा था , जो पीढियों से व्यापक मंगोल चरवाहों में बहुत लोकप्रिय रहा है ।

पाइंक्वोलङ स्वायत्त प्रिफेक्चर की नृत्य गान मंडली के संपादक सुश्री सु बुसाई ने अपनी बालावस्था में ही स्थानीय लोगों द्वारा प्रस्तुत शाऊलतङ नाच देखा था और उसे इस प्रकार का लोक नृत्य बहुत पसंद हुआ । इस बात की याद करते हुए सुश्री सु बुसाई ने वर्ष 1985 में एक कलाकार के रूप में अपनी पाइंक्वोलङ प्रिफेक्चर की होश्वो काऊंटी की कला प्रस्तुति यात्रा की चर्चा करते हुए कहाः

वर्ष 1985 में मैं पाइंक्वोलङ स्वायत्त प्रदेश की नृत्य गान मंडली की कलाकार थी । उस साल प्रिफेक्चर का एक सांस्कृतिक नाच गान समारोह आयोजित हुआ । प्रिफेक्चर की होश्वो काऊंटी में मेरी मुलाकात वहां पर रहने वाली एक वृद्धा लोक कलाकार से हुई । वे शाऊलतङ नृत्य करने में बेहद कुशल थी , उन के नृत्य के अंगविक्षेप और पदक्षेप बहुत ही विरल और मोहक थे । उस समय मैं उन के नाच के भंगामे से इतना मोहित हो गयी थी कि मैं फिर कभी उस समय का दृश्य नहीं भूल सकती । मुझे लगा कि मंगोल वृद्धा का वह नृत्य असाधारण अलभ्य और अद्भुत है , देखने में बड़ा आनंद और मजा आता है । वृद्धा के इस अनुठे लोक नृत्य पर मुझे काफी बड़ा आश्चर्य हुआ , तभी से शाऊलतङ नाम की इस नृत्य शैली के प्रति मेरे मन में गहरी रूचि पैदा हुई और उस का अध्ययन करने लगी ।

मंगोल भाषा में शाऊलतङ में से शाऊल का मतलब घोड़े के दौड़ने के वक्त उस का सिर ऊंचा नीचा हिलने डुलने की हरकत से है । शाऊलतङ में से तङ का अर्थ मंगोल जाति के एक विशेष किस्म के वाद्य यंत्र के बजने से निकलती तङ तङ की आवाज होती है । दोनों शब्द का योग यानी शाऊलतङ का मतलब है नृत्य व संगीत की मिश्रित कला होती है , जो पशुपालन का जीवन बिताने वाली मंगोल जाति में बहुत लोकप्रिय है । शाऊलतङ का नाच करते समय नर्तक और नर्तकी के बाहुओं के अंगविक्षेप परिवतनशील और अद्भुत होते हैं , दोनों हाथ उलटी दिशा में पीठ के पीछ आपस में पकड़े कलाइयों को ऊंचे नीचे की ओर दबाने से शरीर आगे पीछे हिलता रहता है तथा कंधों को क्रियाशील भी किया जाता है । नृत्य के अधिकांश विषय वास्तविक जीवन में देखने को मिलने वाले बाज व घोड़े के क्रिया कलाप से जुड़े हैं और लोगों के आम जीवन में होने वाले कंघे से बाल संवारने तथा आइने में परछाई देखने के भंगामे सरीखे भी होते हैं ।

बकरी का शाऊलतङ मंगोल के शाऊलतङ नृत्य गान सिलसिले में एक प्रतिनिधित्व रखने वाला नृत्य संगीत है । इस नृत्य गान में मुख्यतः बकरी के दौड़ने कूदने के भंगामों की नकल पर तैयार किये गए नाच होते हैं , जिस से यह अभिव्यक्त होता है कि किस तरह बकरियों का झुंड विशाल घास मैदान पर स्वच्छंपूर्वक दौड़ता फुदता है , बकरी कभी पहाड़ी ढालुओं पर दौड़ते चढ़ते हैं , कभी हरे घास ढके मैदान में विचरते हैं और क्रीड़ाएं करते हैं । जब एक शिकारी उन्हें मारने उस के पास गए , किन्तु बकरियों की बहादुरी से डर कर उसे भाग निकलना पड़ता है ।

पाइंक्वोलङ स्वायत्त प्रिफेक्चर की नृत्य गान मंडली के कलाकार श्री ओरीकामू वर्ष 1992 से कला स्कूल से स्नातक होने के बाद अब तक प्रिफेक्चर की नृत्य गान मंडली में जातीय नृत्य की प्रस्तुति का काम करते आए हैं । मंगोल जातीय कलाकार होने के नाते उन में मंगोल जाति की नृत्य कला के प्रति गहरा प्यार और लगाव संजोए हुआ है । उन्होंने अपना अनुभव बताते हुए कहाः

भिन्न भिन्न जाति की अपनी अपनी विशेष संस्कृति और कला होती है । मंगोल जाति के लोग बहुधा घास मैदान पर रहते हैं । इसलिए उन के नृत्य के विषय और भंगामे भी विशेष तौर पर घास मैदान से जुड़े हुए हैं । जब एक बार संगीत बज रहा है , तो लगता है मानो हम विशाल घास मैदान में खड़े हो गए हों , अपार असीम मैदान , झुंडों में विचरते बैल और बकरी तथा मवेशी चराने वाले मंगोल चरवाह , वे अब सदृश्य आंखों के सामने उभरने लगे । शाऊलतङ नृत्य गान से इस प्रकार के सभी दृश्य अभिव्यक्त हो सकते हैं । यों दर्शकों की नजर में नृत्य के अंगविक्षेप जटिल नहीं है और बहुत सरल दिखते हैं , लेकिन उन में निहित विषय अर्थ बहुत समृद्ध और प्रचुर होते हैं । इसलिए नृत्य कलाकार होने के नाते जब मैं रंगमंच पर आया हूं , तो तुरंत ही मेरा पूरा ध्यान नृत्य में जाता है । नृत्य कला भाषा की कला नहीं होती है , वह शरीरों के भंगामों की कला होती है , नृत्य के क्रिया कलाप से तमाम दृश्य और विषय अभिव्यक्त होते हैं ।

श्री ओरीकाफु की पाइंक्वोलङ नृत्य गान मंडली ने लोक नृत्य गान के आधार पर शाऊलतङ श्रृंखला नृत्य रचे हैं । इन नृत्यों से सिन्चांग की मंगोल जाति की विशेषता और अलग पहचान प्रतिबिंबित होती है । उदाहरणार्थ युवतियों का समूह नाच युवती शाऊलतङ से मंगोल जाति की युवतियों के खूबसूरती , जोश व उत्साह अभिव्यक्त होते हैं । इस नृत्य की संरचना अच्छी संजोई हुई है , धुन मधुर और विषयों के अनुसार तेज और धीमी बढ़ती घटती है , जो देखने सुनने में काफी कलात्मक और दर्शनीय होता है । यह नृत्य पाइंक्वोलङ नृत्य गान मंडली का एक विशेष कार्यक्रम बन गया है , जो हर बड़े बड़े सांस्कृतिक समारोह में प्रस्तुत होता है । सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश की स्थापना की 50 वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित रात्रि समारोह तथा अन्य कुछ अहम रात्रि समारोहों में यह नृत्य अनेक बार प्रस्तुत किया गया और अनेक प्रतियोगिताओं में पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है ।

पाइंक्वोलङ नृत्य गान मंडली ने वर्षों में स्थानीय लोक कलाकारों से नृत्य शाऊलतङ की मूल कला सामग्री संगृहित और संकलित की है , उस के आधार पर उन्हों ने पुनर्सृजन के जरिए नए शाऊलतङ नृत्य पेश किए , जिन में युवती शाऊलतङ , बकरी शाऊलतङ और बाज शाऊलतङ आदि दसेक रचनाएं शामिल हैं । इधर के सालों में उन्हों ने रंगमंच पर शाऊलतङ की श्रृंखला का मंचन किया और राष्ट्रीय स्तर की नृत्य प्रतियोगिताओं में अनेक बार पुरस्कार जीते । शाऊलतङ के सिलसिला नृत्यों के विकास के लिए कला मंडली के काम की चर्चा में पाइंक्लोतङ नृत्य गान मंडली के नेता श्री गांजाफु ने कहाः

पाइंक्वोलङ प्रिफेक्चर नृत्य गान मंडली ने वर्ष 1983 से मंगोल जाति के परम्परागत लोक नृत्य शाऊलतङ को संगृहित करना और उन्हें संकलित करना शुरू किया था । वर्ष 1999 में हम ने रंगमंच पर शाऊलतङ के नृत्य की प्रस्तुति आरंभ की , अब तक शाऊलतङ के 11 विशेष नृत्य पेश किए गए हैं । पाइंक्वोलङ प्रिफेक्चर नृत्य गान मंडली इन सालों में शाऊलतङ नृत्यों के सृजन और विकास में जुटी हुई है और इस विशेष परमपरागत लोक कला को संवारा और निखारा गया है । हर साल कला मंडली शाऊलतङ के मूल रूप जुटाने और संकलित करने के लिए विभिन्न जगह विशेष संपादक भेजती है । जातीय लोक कला के रूप में शाऊलतङ पाइंक्वोलङ प्रिफेक्चर के गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों में से एक बना कर उसे अच्छी तरह संरक्षित और विकसित किया जाता है । हम शाऊलतङ को पाइंक्वोलङ प्रिफेक्चर की विशेष स्वरूप वाली सांस्कृतिक धरोहर बनाएंगे , ताकि अधिक से अधिक लोग शाऊलतङ की सांस्कृतिक मोहकता और सुन्दरता देख पाएं।

चीन की मंगोल जाति के लोग अपनी अनोखे नृत्य गान कला से देश भर में मशहूर है , उन का लम्बा राग वाली गाना विश्व के गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया गया है । देश में मंगोल जाति की अन्य अनेक नृत्य गान शैली विभिन्न स्तरों की गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल की गयी या शामिल करने की कोशिश चल रही है । शाऊलतङ नामक परम्परागत मंगोल नाच गान कला अब सिन्चांग उइगुर स्वायत्त प्रदेश स्तर के गैर भौतिक सांस्कृतिक धरोहरों की नामसूची में शामिल किया गया है , हमें विश्वास है कि इस अद्भुत लोक नृत्य गान को अवश्य ही और लोकप्रियता प्राप्त होगी तथा उसे और ऊंचे स्तर का सम्मान प्राप्त होगा ।