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(GMT+08:00) 2007-11-26 10:58:09    
मध्य पूर्व शांति सम्मेलन के विभिन्न पहलू

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मध्य पूर्व शांति संबंधी विश्वध्यानाकर्षक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आगामी 27 तारीख को अमरीका में होगा।फिलिस्तीनी राष्ट्रीय सत्ताधारी संस्था के अध्यक्ष श्री अब्बास और इजाइल के प्रधान मंत्री श्री औल्मर्ट एवं विदेश मंत्री सुश्री लिवनी अलग-अलग तौर पर 24 और 25 तारीख को वाशिंग्टन गए हैं।सूत्रों के अनुसार दोनों पक्षों के नेता 26 तारीख को अमरीकी राष्ट्रपति बुश से वार्ता करेंगे,फिर मैरीलैंड स्टेट की राजधानी अन्नापोलिस जाकर वहां होने वाले मध्य पूर्व शांति सम्मेलन में भाग लेंगे।

बुश सरकार ने अपनी कार्यावधि के अंत से कोई 1 साल 2 महीने पहले इस बड़े पैमाने वाले सम्मेलन के आयोजन के लिए ढेर सारे तैयारी काम किए हैं।श्री बुश चाहते हैं कि इस सम्मेलन से फिलिस्तीन औऱ इजराइल को शांति-वार्ता पुनःशुरू करने की प्रेरणा मिलेगी और इराक की कठिन स्थिति के उस पर पड़े दुष्प्रभाव को कम किया जाएगा तथा मध्य पूर्व संबंधी अमरीकी नीति के अमलीकरण में कुछ रोचक समृति स्थापित की जाएगी।लेकिन विभिन्न पक्षों द्वारा लगाए गए इस सम्मेलन के पूर्वानुमान को इस तरह की स्तरों के नीचे से नीचतर होने वाली प्रक्रिया से गुजरना पड़ा है कि कूंजीभूत सवालों के समाधान पर विचार-विमर्श किये जाने से लेकर मात्र एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया गया और फिर एक घोषणा-पत्र के सफल विमोचन को इस सम्मेलन के आयोजन की जरूरी पूर्व शर्त नहीं बनाने का निर्णय लिया गया।आज तक फिलिस्तीन और इजराइल के बीच कोई भी समझौता या घोषणा-पत्र संपन्न नहीं हुआ है।25 तारीख तक अमरीकी विदेश मंत्री सुश्री राइस फिलिस्तीन के वार्ता-दल के प्रधान श्री गुरे और इजराइली विदेश मंत्री सुश्री लिवनी से त्रिपक्षीय वार्ता करती रही,ताकि फिलिस्तीन व इजराइल के बीच संयुक्त घोषणा-पत्र के जारी होने का बढावा मिल सके।इस से जाहिर तौर पर फिलिस्तीन और इजराइल के बीच बड़ा मतभेद दिखाई दिया है।

संबंधित पक्षों की आम राय है कि अमरीका में होने वाले मध्य पूर्व शांति सम्मेलन में फिलिस्तीन-इजराइल वार्ता ज्यादा सफल रहना असंभव है,यहां तक कि सम्मेलन के बाद के अल्पकाल में ही यह वार्ता बड़ी प्रगति प्राप्त नहीं करेगी।खुद फिलिस्तीन और इजराइल दोनों पत्रों के अधिकारियों ने भी सम्मेलन के आयोजन से पूर्व संयुक्त वक्तव्य संपन्न किए जाने या न किए जाने को ज्यादा महत्व नहीं दिया है।उन का मानना है कि अन्नापोलिस में होने वाले सम्मेलन का सही महत्व फिलिस्तीन-इजराइल शांति वार्ता की पुनःशुरूआत में है।विश्लेषकों का कहना है कि फिलिस्तीन और इजराइल अनेक देशों के प्रतिनिधियों की उपस्थिति में 7 साल तक बन्द रही शांति वार्ता की बहाली पर विचार-विमर्श करेंगे।इस दृष्टि से अन्नापोलिस में मध्यपूर्व शांति सम्मेलन का बेरोकटोक आयोजन ही अपने आप में एक प्रगति देखा जा सकता है।

इस से पूर्व अरब लीग के अरब शांति प्रस्ताव आयोग के विदेश मंत्री स्तरीय सम्मेलन में आम सहमति बनी थी कि इस आयोग के सदस्य देशों के विदेश मंत्री 27 तारीख को शुरू होने वाले मध्य पूर्व शांति सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।इस से अमरीका की इज्जत में बड़ा इजाफा हुआ है और सम्मेलन के बेरोकटोक आयोजन को समर्थन मिला है।25 तारीख को हिचकिचाहट में फंसे हुए सीरिया ने भी आखिकार अमरीका का निमंत्रण स्वीकारकर उपविदेश मंत्री को प्रतिनिधि मंडल के साथ सम्मेलन में भाग लेने के लिए भेजने का निर्णय लिया।सीरिया के अनुसार उस ने इसलिए यह निर्णय लिया है,च्योंकि संबंधित पक्षों ने गोलान टीले संबंधी सवाल को सम्मेलन की कार्यसूची में शामिल करने पर रजामंदी जताई थी।

मध्यपूर्व शांति सम्मेलन के आयोजन के दौरान यरूशलम में आतंकी हमलों की रोकथाम के लिए 25 तारीख को यरूशलम की पुलिस ने शहरों की सभी सड़कों पर रोड़े अटकाने और आने-जाने वाले वाहनों की पूर्ण जांच करनी शुरू की है।इजराइल की सेना और आपात स्थिति से निपटने वाली सं विभिन्न स्थाएं भी हाई अलर्ट की स्थिति में आ गई हैं।

आसन्न मध्य पूर्व शांति सम्मेलन के कारण विश्व की प्रमुख मीडिया संस्थाएं भी अन्नापोलिस में एकत्र हो गई हैं।करीब 50 देशों और संगठनों की भागीदारी होने वाले इस सम्मेलन की गर्मागर्मी का संकेत प्रतीत होता है।लेकिन फिलिस्तीन और इजराइल के आम लोगों ने ठंडे दिमाग से यह मत व्यक्त किया कि शांति आसानी से नहीं आएगी।इजराइल की विख्यात जनमत सर्वेक्षण संस्था दाहाफ़ द्वारा दो दिन पहले जारी एक सर्वे के परिणाण से जाहिर है कि 70 प्रतिशत इजराइली इस सम्मेलन के आयोजन का समर्थन करते हैं।साथ ही 71 प्रतिशत लोग मानते हैं कि इस सम्मेलन से फिलिस्तीन-इजराइल शांति प्रक्रिया में भारी तरक्की नहीं होगी।जबकि फिलिस्तीनी जनतम सर्वेक्षण केंद द्वारा कराए गए नवीनतम सर्वे के अनुसार 67.5 प्रतिशत फिलिस्तीनी लोग इस सम्मेलन के प्रति विभिन्न कदर साथ देने का रूख अपनाते हैं,साथ ही 54.4 फीसदी लोगों को आशंका है कि इस सम्मेलन से क्षेत्रीय उथल-पुथल होगी।

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