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(GMT+08:00) 2007-11-26 09:32:21    
चरागाहों से आई गीत की आवाज

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दोस्तो,चीन के भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के शिलिनकोलह प्रिफेक्चर के चरवाहों को गीत गाने में जन्मसिद्ध निपुणता प्राप्त है।यहां प्रचलित `लम्बा राग` गायनकला` यूनेस्को द्वारा मानव के मौखिक व अभौतिक सांस्कृतिक विरासतों में शामिल की गई है।यहां अन्य एक प्रकार की प्राचीन गायनकला—`छाओ अर` को विश्व के इस प्रकार की विरासत सूची में शामिल करने पर अभी विचार किया जा रहा है।तो भीतरी मंगोलिया के चरवाहों के गीत की मधुर आवाज में अखिरकार कौन सा जादू है?

भीतरी मंगोलिया में प्रचलित लम्बा राग वाले गीतों में मुख्यतः स्थानीय चरागाहों के सुन्दर दृश्यों का वर्णन और प्रेम-भावना तथा पारिवारिक भावना का गुणगान हुआ है।प्रसिद्ध गायिका सुश्री मोतक 75 वर्ष की हो चुकी हैं,जो भीतरी मंगोलिया में लम्बा राग गायनकला की रानी मानी जाती हैं।

सुश्री मोतक की जन्मभूमि शिलिनकोलह प्रिफेक्चर के शीऊचुमु चरागाह में है।वहां हर खुशी के उत्सव और मिलन-समारोह में लम्बा राग वाला गीत गाने की परम्परा रही है।सुश्री मातक ने कहाः

"मेरे जन्मस्थान शीऊचुमु चरागाह में बच्चे से ले कर वृद्ध तक हर कोई लम्बा राग गा सकता है।यह स्थानीय लोगों की जन्मसिद्ध प्रतिभा है।किसी पर्व या मिलन-समारोह में अगर लम्बा राग गीत प्रस्तुत नहीं किया जाता,तो वातावरण फीका रहता है और खुशी भी अधूरी रह जाती है।"

गायिका चाकानफ़ सुश्री मोतक की छात्रा रही है।वह भी इस समय भीतरी मंगोलिगा के शिलिनकोलह प्रिफेक्चर में लम्बा राग गीत गाने के लिए बहुत मशहूर है ।मंगोलियाई चरवाहे उत्सवों और मिलन-समारोहों में क्यों लम्बा राग गीत गाना पसन्द करते हैं? इस के जवाब में सुश्री चाकानफ़ ने कहाः

"लम्बा राग मंलोगियाई चरवाहों के जीवन से पैदा हुई एक प्रकार की कला है,जिस में जो अभिव्यक्त किया जाता है,वह चरवाहों के जीवन की सौ फीसदी सही तस्वीर है।वह एक बहुत गंभीर गायनकला है,जिस में हंसी-व्यंग्य से दूर चरवाहों के सुखों-दुखों की अभिव्यक्ति होती है। "

लम्बा राग मंगोलियाई चरवाहों में काफी प्रचलित है,जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चरवाहों द्वारा सचेत रुप से विरासत के रूप में ग्रहण किया गया है।इसलिए वह कभी पुराना नहीं पड़ता है।लम्बा राग तेज ताल और धीमी ताल पर प्रस्तुत किया जा सकता है।खुशी के अवसर पर चरवाहे तेज ताल पर लम्बा राग वाला गीत गाना पसन्द करते हैं और दुख के समय धीमी ताल वाला लम्बा राग गाया जाता है।

`आबूका` नामक एक गीत तेज ताल वाला लम्बा राग है,जिस में प्रेम-भावना की अभिव्यक्ति हुई है।यह गीत युवा मंगोलियाई चरवाहों में काफ़ी लोकप्रिय है।गीत का भावार्थ इस प्रकार हैः आबूका पर्वत पर तैर रहा है कोहरा,मेरे दिल में मुस्कुरा रही हो तुम।मेरी चाय का कोई जायका नहीं तुम्हारी उपस्थिति के बिना।

उत्तर पश्चिमी चीन कि शिनच्यांग वेवूर स्वायत्त प्रदेश में भी मंगोल जाति के कुछ लोग रहते हैं।कुछ समय पूर्व ऊथुनाशंग नामक एक मंगोल युवक वहां से भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश की यात्रा पर आया।लम्बा राग सुनने के बाद उन्हों ने अपने जन्मस्थान शिनच्यांग के बाइनकोलन मंगोलियाई स्वायत्त प्रिफेक्चर में प्रचलित एक मंगोल गीत प्रस्तुत किया।

भीतरी मंगोलिया में मदिरा मिलन-समारोह और अतिथि सत्कार-स्वागत में जरुरी चीज है-मदिरा पेश करके अतिथियों का शिष्टता से आदर करना।मदिरा पेश करने से पूर्व एक भावभीना गीत प्रस्तुत करना भी जरूरी माना जाता है।

भीतरी मंगोलिया के शिलिनकोलह प्रिफेक्चर में छा अर अन्य एक प्रकार की विशेष गायनकला है।वास्तव में वह `लम्बा राग` गायनकला का एक अंश है,जिस में लम्बे राग की प्रस्तुति के समय पुरूष निचले गले में या महिलाएं ऊंचे गले में सहायक-गायन की भूमिका अदा करती हैं।भीतरी मंगोलिया में ज्यादातर लोकगीत घोड़े के सिर के आकार वाले एक प्रकार के वाद्य-यंत्र के संयोजन से गाए जाते हैं।इस वाद्य-यंत्र के प्रकाश में आने से पहले चरवाहे अपनी ही आवाज में गीतों का संयोजन करते थे।बाद में वह `छो-अर` गायनशैली बन गया।

इस साल भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश की 60वीं जयंती है,जिस की खुशी मनाने के लिए विभिन्न स्तरों के स्थानीय संस्कृति विभागों ने चरवाहों में प्रथम लोकगीत प्रतियोगिता का आयोजन किया है।गीत गाने में रुचि रखने वाले बहुत से चरवाहों ने बढ़-चढ कर इस में भाग लिया और अपनी प्रतिभा दिखाई।प्रतियोगिता के एक संयोजक शिलिनहाओथ शहर के संस्कृति व खेलकूद ब्यूरो के एक अधिकारी श्री हाओबीस्हालाथु ने कहाः

`शिलिनकोलह प्रिफेक्चर मंगोल गायन का हिंडोला है।इसलिए हम ने भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश की 60वीं जयंती के सुअवसर पर एक लोकगीत प्रतियोगिता आयोजित की।सभी प्रतियोगी पेशावर गायकों व गायिकाओं की बजाए साधारण चरवाहे थे। `

धाना नामक एक युवती ने चाकसूथाई चरागाह से आकर इस लोकगीत प्रतियोगिता में भाग लिया।उन का छोटा भाई घोड़े के सिर के आकार वाला मंगोल विशेष वाद्य-यंत्र बजाने में निपुण है।इस बार उस ने प्रतियोगिता में अपनी बहन धाना को संयोजन दिया,जिस से दोनों को खूब प्रशंसा मिली।धाना ने हमारे संवाददाता से कहाः

`मेरे परिवार में गाना गाने का प्रगाढ वातावरण है।जब घर में कोई मित्र आता है,मां-बाप उन के स्वागत में खुद गीत गाने के साथ-साथ हमारे 3 भाई-बहनों को भी बुलाकर गीत गाने को कहते हैं।पहले के गीत गाने के बाद दूसरे की बारी आती है,फिर तीसरे की।इस तरह हम तीनों एक से बढकर एक अच्छी प्रस्तुति करने की कोशिश करते हैं।आम दिनों में सन्नाटा छाए विशाल चरागाह में गाय-बकरियां चराने के समय हम गला पूरी तरह खोलकर गीत गाते हैं।इस तरह किसी भी पर्व या समारोह में गीत प्रस्तुत करना हमारे लिए बाएं हाथ का काम है।`

इस प्रतियोगिता के दर्शक प्रतियोगियों के परिजन और करीबी दोस्त हैं।बहुत से प्रतियोगी अपने हौसले को बढाने हेतु सपरिवार आए हैं।आलीया नामक एक छोटी लड़की अपने प्रतियोगी भाई के साथ आई है।वह केवल 5 साल की है और प्रतियोगिता में उपस्थित नहीं हुई।लेकिन वह भी अच्छी तरह गाना गा सकती है।