मिङ और छिङ राजवंशों के काल में विज्ञान और संस्कृति के क्षेत्रों में अनेकानेक महत्वपूर्ण उपलब्धियां देखने को मिलीं।
महान औषध वैज्ञानिक ली शिचन ने पन छाओ काड़ मू लिखा, जिस में 1800 से अधिक प्रकार की जड़ी बूटियों और 11000 से अधिक नुसखों की जानकारी दी गई थी।
बाद में इस का चीनी से अंग्रेजी , फ्रांसीसी, जर्मन , जापानी, लैटिन, कोरियाई और अन्य भाषाओं में अनुवाद किया गया।
मिङ राजवंश के अन्तिम काल के वैज्ञानिक सुङ इङशिङ ने चीन के कृषि और दस्तकारी के अनुभवों का निचोङ निकालते हुए थ्येन कुङ खाए ऊ नामक पुस्तक लिखी, जो उस जमाने के विज्ञान और तकनालीजी के स्तर को प्रतिबिम्बित करती है।
लगभग इसी काल में श्वी हुङचू नामक एक भूगोलज्ञ ने पहाड़ों व नदियों का सर्वेक्षण करने के लिए पूरे देश की यात्रा की और श्वी श्याखो की यात्रा नामक एक किताब लिखी, जिस में उसने अन्य बातों के अलावा दक्षिणपश्चिमी चीन में पानी द्वारा चूनापत्थर के कटाव से बनी भूमि की रूपरेखा का सविस्तार वर्णन किया।
मिङ काल के प्रगतिशील विचारकों में से एक ली चि ने हजारों साल से चले आए सामन्ती आचार शास्त्र की तीव्र आलोचना की और महिलाओं के प्रति भेदभाव का जोरदार विरोध किया।
मिङ छिङ काल के विचारक वाङ फूचि ने यह सिद्वान्त प्रतिपादित किया कि यह विश्व भौतिक तत्वों से बना है और देवी देवताओं द्वारा उस की रचना नहीं की गई है।
उन का मत था कि चेतना की उत्पत्ति भौतिक तत्व से हुई है और भौतिक तत्व के बिना चेतना का अस्तित्व असम्भव है।
वे ऐतिहासिक प्रगतिवाद के पक्षधर और पुरातन की ओर लौटने के विरोधी थे।
उसी काल में एक और प्रगतिशील विचारक ह्वाङ चुङशी हुए, जिन्होंने पतनशील व सडी गली सामन्ती तानाशाही व्यवस्था का पर्दाफाश व विरोध किया और बताया कि यह व्यवस्था ही विश्व में अशान्ति व अव्यवस्था की जड थी।
इन विचारकों का न्यूनाधिक प्रभाव बाद की पूंजीवादी जनवादी क्रान्ति पर पड़ा।
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