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(GMT+08:00) 2007-11-22 14:50:30    
भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के ऊंटों के जन्मस्थान का दौरा

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प्रिय दोस्तो , आज के चीन के भ्रमण कार्यक्रम में हम आप को ऊंटों के जन्मस्थान के नाम से नामी भीतरी मंगोलिया स्वायत्त प्रदेश के पश्चिमी भाग में स्थित अराशान क्षेत्र का दौरा करने ले चलते हैं । गोबिस्तान , हू यांग नामक पेड़ और ऊंट ये तीनों चीजें इस अराशान क्षेत्र की विशेष पहचान बना लेती हैं । कहा जाता है कि ये तीनों निधियां आस्मान द्वारा इस अराशान क्षेत्र को दिये गये विशेष उपहार ही हैं । अतः अराशान वासियों को ऊंटों से इतना लगाव हो गया है कि ऊंट अपने जीवन का एक अभिन्न अंग रहा है । बहुत से स्थानीय वासी अपने जन्म से ही ऊंट से परिचित हो गये हैं और ऊंट की पीठ पर अपनी जिंदगी का अविस्मरणीय क्षण बिताते हैं । अराशान वासी ऊंट के ऊन से बने स्वेटर पहनना , ऊंट दौड़ करना और ऊंट का दूध पीना पसंद करते हैं । एक शब्द में कहा जाये , तो उन्हें ऊंटों से अटूट रिश्ता जुड़ा हुआ है ।

मंग नाम का एक मंगोल जातीय बुजुर्ग पश्चिम अराशान क्षेत्र के अजिना जिल में रहने वाले हैं । जब उन्हें पता चला कि हमारे संवाददाता ऊंटों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये वहां पहुंचे , तो वे जल्द ही हमारे संवाददाता को अपने ऊंटों से अवगत कराने गये । जब हमारे संवाददाता ने उन्हें बताया कि वे ऊंटों से जुड़ी कहानियां जानने के लिये हजारों मील का रास्ता तय कर यहां आये हैं , तो वे इतने भावावेश में आये हैं कि उन की आंखों में आंसू भर आये । उन्हों ने धारावाहक रूप से हमारे संवाददाता से कहा कि नये चीन की स्थापना की शुरूआत में ऊंट यहां का प्रमुख परिवहन साधन ही रहे थे । जब मैं छोटा था , तो मैं ने पांच हजार ऊंटों से गठित परिवहन दल को देखा था । उस समय बड़ा तादाद में पशुओं से तैयार पदार्थ व नमक जैसी रोजमर्रे में आने वाली वस्तुएं ऊंटों के माध्यम से लगभग एक महीने में पेइचिंग शहर पहुंचायी जाती थीं , फिर अनाज , चाय व कपड़े वगैरह माल ऊंटों से वापस पहुंचाये जाते थे ।

ऊंट स्थानीय गोबिस्तान वासियों के दैनिक जीवन में अपरिहार्य भूमिका निभाते हैं । वीरान रेगिस्तान में स्थानीय चरवाहों की सेवा में भारी वस्तुएं लादते हैं । इसलिये ऐसा कहा जा सकता है कि स्थानीय चरवाहों और ऊंटों के बीच कायम गहरे भाव का वर्णण शब्दों में नहीं किया जा सकता , उन के जीवन की हरेक कड़ी में ऊंट व मानव जाति की मर्मस्पर्शी कहानी गर्भित है ।

ऊंटों के साथ बडे परवान होने वाले बुजुर्ग मंग को ऊंटों से विशेष लगाव है । उन्हों ने उंटों की प्रशंसा में कहा कि ऊंट मानवता से खूब परिचित हैं । अपनी बारह साल की उम्र में एक दिन की रात को जब वे ऊंटों को चेराने दूर जाकर रेगिस्तान में सो रहे थे , अचानक भीणष तूफान आयी , तो इस नाजुक घड़ी में एक ऊंट ने तूफान से बचने के लिये उन्हें अपने लम्बे लम्बे बालों के नीचे घूसने दिया । ऊंट अपने घर से बहुत प्यार करते हैं , हर बार जब वे घर से कहीं बाहर के लिये रवाना हो जाते हैं , तो वे बारंबार चीख पुकारते हैं , जब बाहर से घर वापस लौटते हैं , तो वे थकावट होने पर भी प्रसन्नता से डग भरते हैं । ऊंट दिशा पहचानने में सक्षम हैं । बुजुर्ग मंग ने कहा कि यदि कोई भी ऊंट अपनी आंखों पर पट्टी बांधकर कई सौ किलोमीटर की दूरी पर ले जाता है , तो वह अपने आप घर वापस लौट सकता है । वे अनेक सालों तक कहीं बाहर रहने पर भी अपनी संतानों के साथ मालिक के घर वापस लौटने में भी समर्थ हैं ।

इस के अतिरिक्त ऊंट तूफान या संकट की भाविष्यवाणी करने में सक्षम भी हैं ।अराशान जिले में रहने वाले चरवाहे सुबुल ने भावविभोर होकर ऊंटों की चर्चा में कहा कि तूफान , वर्षा या संकट आने पर ऊंट अपने मालिक को याद दिलाने के लिये लगातार आवाजें उठाता है । यदि दुर्भाग्य से अपना नन्हा बच्चा मर गया है , तो वह बिना खाये पीये अपने मृत बच्चे के पास लगातार सात आठ दिन रात बैठा रहा है ।

अराशान वासी अपने परिजनों की तरह ऊंटों के साथ व्यवहार करते हैं । यदि कोई ऊंट बीमार पड़ता है या लापता है , तो वे अत्यंत बेचैन हो जाते हैं । साथ ही वे अपने बच्चों को ऊंट पालने की जानकारियां बताते हैं । इतना ही नहीं , वे बड़े प्यार से अपने ऊंट के रंग , मिजाज व बालों की विशेषताओं के हिसाब से नाना प्रकार वाला सुंदर नाम भी रख देते हैं ।

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