ब्रिटिश सज्जन श्री सिमोन . जे . माकीनोन ने अपने आप को मा शी मन नामक चीनी नाम भी रखा , इतना ही नहीं , उन्हों ने चीन के सब से बड़े औद्योगिक शहर शहर के अटूट रिश्ता भी कायम किया । उन्हों ने पिछले बीस सालों में शांगहाई शहर में जीवन बिताया और एक शांगहाई लड़की के साथ शादी भी की है , अतः अब वे सचमुच शांगहाई का दामाद बन गये । क्योंकि उन्हों ने शांगहाई शहर के लिये योगदान किये हैं , इसलिये शांगहाई सरकार ने उन्हें बहुत से पुरस्कार दिये । हाल ही में उन्हें शांगहाई शहर के प्रतिष्ठित नागरिक की उपाधि भी मिली ।
वर्ष 1979 में श्री मा शी मेन जब प्रथम बार चीन आये , तो वे शांगहाई शहर के बजाये शनचन शहर की यात्रा पर गये । जब वे अपने तत्कालीन अनुभव की चर्चा करने लगे , तो श्री मा शी मन ने एकदम एक अंग्रजी शब्द energy को कहा।
energy। people's energy। इस ने मुझ पर गहरी छाप छोड़ रखी है । स्थानीय लोगों ने मछली व बत्तक तालाबों के आसपास गगनचुंबी इमारतें खड़ी कर दी हैं , इस से जाहिर हो गया है कि वहां पर विकास की बड़ी संभावना निहित है ।
उस साल शनचन वासियों के लिये बहुत महत्वपूर्ण साल भी है। ठीक वर्ष 1979 में चीन ने शनचन शहर में आर्थिक विशेष क्षेत्र की स्थापना का फैसला किया, जिस से शनचन शहर में बड़ा बदलाव आया है। जैसा कि श्री मा शी मेन ने देखा था कि उसी साल से शनचन शहर ने तुरंत ही एक छोटे मछली गांव से आधुनिक शहर का रूप ले लिया ।
उसी समय श्री मा शी मन की उम्र केवल 18 वर्ष की थी और वे चीन के बारे में कम जानते थे । लेकिन जब उन्होंने शनचन को देखा तो उन्हों ने चीन के प्रति बड़ी दिलचस्पी दिखायी ।
पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक में मुझे महसूस हुआ कि चीन में बड़ा बदलाव आयेगा । उसी समय चीन सरकार ने आर्थिक विकास को प्राथमिकता देकर कुछ नयी नीतियां जारी कीं , जिस से चीनी जनता की प्रतिभा व शक्ति उजागर कर दी गयी है । बदलाव समय का सवाल ही है।
वर्ष 1985 में श्री मा शी मन विश्वविद्यालय से स्नातक होकर तुरंत ही चीन आए।
वर्ष 1985 में श्री मा शी मन चीन की फिर एक बार यात्रा पर आये । इस बार वे शनचन नहीं गये। वे चीनी भाषा सीखने के लिये शांगहाई गये ।
शांगहाई हमेशा चीन का व्यापार केंद्र रहा है, यह शांगहाई चुनने का मेरा कारण है। इस के अलावा ऐतिहासिक दृष्टि से मुझे पिछली शताब्दी के 20 वाले दशक के शांगहाई में बड़ी रूचि भी है।
पिछली शताब्दी के 20 व तीस वाले दशकों में शांगहाई चीन का उद्योग व व्यापार केंद्र ही नहीं, बल्कि एशिया के आर्थिक व सांस्कृतिक केंद्र भी था और वह पूर्वी पेरिस माना जाता था । श्री मा शी मन के पूर्वजों ने उसी समय शांगहाई में शिप कंपनी खोली थी, इसलिये बचपन से ही श्री मा शी मन ने शांगहाई के बारे में कुछ कहानियां सुनीं और यह आशा भी बांधी कि एक न एक दिन शांगहाई शहर जानने का मौका मिलेगा । पर जब वे सचमुच शांगहाई आये तो श्री उन्हें मालूम पड़ा कि वास्तविक शांगहाई और अपने काल्पनिक शांगहाई के बीच काफी बड़ा फर्क है।
पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक में शांगहाई आज जैसा नहीं है। मुझे याद है कि उसी समय शांगहाई में खाने के लिये राशन टिकट की जरूरत थी । हम विदेशियों के लिये चीजों को खरीदने के लिये विदेशी इक्सजेंच टिकट का प्रयोग करना जरूरी था ।
श्री मा शी मन ने जिस विदेशी इक्सजेंच टिकट की चर्चा की है , वह सची मुद्रा नहीं है, लेकिन उस का मूल्य रेमिनबी के बराबर है। पिछली शताब्दी के 80 वाले दशक के शुरू में चीनी मालों की सप्लाई मांगों से काफी कम थी , जैसा कि श्री मा शी मन ने कहा कि लोगों को खाने के लिये सरकार द्वारा जारी राशन टिकट की आवश्यकता है।
केवल बीस साल बीत गया है , अभी चीन विश्व का सब से अधिक विदेशी मुद्रा भंडारण देश बन गया है, यह एक बहुत आश्चर्यजनक बात ही है।
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