इधर दिनों में हालांकि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के दामों में तेजी से वृद्धि हुई है , लेकिन अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट आने से तेल से भारी अमरीकी डालर की आय प्राप्त करने वाले खाड़ी देश वर्तमान स्थिति पर काफी अधिक चिन्तित होने लगे हैं ।
चालू वर्ष में अमरीकी डालर के मूल्य में आयी गिरावट विश्व भर में एक चर्चित विषय बन गयी है । तेल के निर्यात पर सरासर निर्भर रहने वाले खाड़ी देशों के लिये अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट आने से स्वभावतः अपनी राष्ट्रीय आमदनी बड़ी हद तक सिकुड़ गयी है , क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में अमरीकी डालर से हिसाब किताब किया जाता है । इसलिये यह स्वभाविक बात है कि खाड़ी देश अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट आने की स्थिति में अत्यंत बेचैन हो गये हैं ।
वर्तमान में अमरीकी डालर के मूल्य में आयी गिरावट से अंतर्राष्ट्रीय तेल दामों पर भारी कुप्रभाव पड़ा है , खाड़ी तेल निर्यातक देशों के शास्नाध्यक्ष अब इसी बात की सोच में हैं कि तेल के दामों में वृद्धि और अमरीकी डालर के मूल्य में आयी गिरावट के बीच आखिरकार किस की भूमिका और अधिक होगी । गत हफ्ते में हुए ओपेक शिखर सम्मेलन में सऊदी अरब के शाह अब्दुल्लाह ने यह विचार व्यक्त किया कि यदि अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट और मुद्रास्फीति को ध्यान में रखा जाये , तो वर्तमान तेल का वास्तविक दाम गत सदी के 80 वाले दशक के स्तर के बराबर है । इस का अर्थ है कि वर्तमान में सऊदी अरब की तेल आय गत सदी के 80 वाले दशक से मिलती जुलती है । कटर के उप प्रधान मंत्री , ऊर्जा व उद्योग मंत्री आट्टिया का यह दृष्टिकोण भी है । खाड़ी देशों का विचार है कि अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट आने की स्थिति में तेल दामों में वृद्धि होने पर भी खाड़ी देशों की तेल आय सिकुड़ने की प्रवृति बनी रहेगी ।
यदि तेल आय एक काफी छिपी हुई धारणा के रूप में कहा जाये , तो अमरीकी डालर के मूल्य में आयी गिरावट से विभिन्न खाड़ी देशों में उत्पन्न ऊंची मुद्रास्फीति से वहां के आम लोगों को सच्चे मायने में मुसीबत झेलनी पडेगी । खाड़ी सहयोग कमेटी के 6 सदस्य देश हमेशा से अपनी मुद्राओं को अमरीकी डालर के साथ जोड़ने की मुद्रा नीति अपनाये हुए हैं , जबकि इन देशों की प्रमुख आय में तेल के बदले में अमरीकी डालर प्राप्त हुए हैं । अमरीकी डालर कमजार होने के चलते निर्यातित उत्पादनों पर निर्भर रहने वाले उक्त देशों को बढ़ रहे युरो से युरोपीय माल खरीदना ही पड़ता , अतः इन देशों में मुद्रास्फीति दर लगातार बुलंदी पर बनी रहेगी ।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के गत अक्तूबर के आंकड़ों से पता चला है कि संयुक्त अरब अमीराट में अभी मुद्रास्फीति दर प्रतिशत तक पहुंच गयी है , सऊदी अरब की मुद्रास्फीति भी पिछले दस सालों की बुलंदी पर पहुंची है । जब कि कटर में चालू वर्ष की पहली दो तिमाहियों में मुद्रास्फीति क्रमशः 15 प्रतिशत व 13 प्रतिशत हो गयी है , जो खाड़ी देशों में सब से अधिर है ।
अमरीकी डालर के मूल्य में गिरावट आने से उत्पन्न ऊंची मुद्रास्फीति के मद्देनजर अपनी मुद्रा को अमरीकी डालर के साथ जोड़ने का संबंध तोड़ने की आवाज उठायी गयी है । गत मई में कुवैत के केंद्रीय बैंक ने अपनी मुद्रा दिनार को अमरीकी डालर के साथ जोड़ने का संबंध तोड़ने की धाषणा की है । इस के बाद दिनार के मूल्य में 4.6 प्रतिशत की वृद्धि हो गयी । अन्य रिपोर्ट के अनुसार संयुक्त अरब अमीराट भी अपनी मुद्रा रियाल को संभवतः भावी महीनों के भीतर अमरीकी डालर के साथ जोड़ने का संबंध तोड़ डालेगा ।
इस के अतिरिक्त कटर और सऊदी अरब भी इसी संदर्भ में समान कदम उठाने को तैयार हैं । खाड़ी देशों के नेता अगले माह के शुरू में कटर की राजधानी दोहा में होने वाले खाड़ी सहयोग कमेटी के शिखर सम्मेलन में इसी सवाल पर विचार विमर्श कर देंगे , फिर संबंधित फैसला किया जायेगा ।
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