उत्तरी चीन के ह पेई प्रांत के एक दूर दराज गांव ग गोंग में 9 दिसम्बर 1942 को बम्बई के एक 32 वर्षीय नौजवान डाक्टर ने बीमारी के कारण अपने प्राण बलिदान कर दिये। वह नौजवान डाक्टर द्वारवानाथ शान्ताराम कोटनीस था।
डाक्टर द्वारानाथ शान्ताराम कोटनीस सितम्बर 1938 में जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध में चीनी जनता की सहायता करने के लिए भारतीय मेडिकल मिशन में शामिल हुए फरवरी 1939 में वे यैन-आन पहुंचे, तत्काल में येन एन चीनी जनता का जापानी आक्रमण विरोधी युद्ध का एक आधार क्षेत्र था, इस के बाद डाक्टर कोटनीस दुश्मन के पृष्ठभाग में स्थित जापान विरोधी युद्ध मोर्चे पर पहुंचे। जनवरी 1941 में वे बैत्यून अंतरराष्ट्रीय शान्ति अस्पताल के महा निर्देशक नियुक्त हुए। यह अस्पताल, घायल और बीमार योद्धाओं औऱ ग्रामवासियों के उपचार का जिम्मेदार था। युद्ध की चलती फिरती परिस्थितियों की वजह से इस के पास अपनी कोई पक्की और स्थायी इमारत न थी। युद्ध की आपात स्थिति की वजह से स्थानीय जन सरकार के अन्य विभागों की तरह ही इस अस्पताल को भी जगह जगह स्थापनान्तिरत होना पड़ता था। और अकसर सुरक्षा के लिए दुर्गम्य पहाड़ी क्षेत्रों में चले जाना पड़ता था।
जनता की निस्वार्थ सेवा और कठोर परिश्रम की प्रवृत्ति के कारण डाक्टर कोटनीस चीनी जनता सैनिकों और असैनिकों के लाड़ले बन गये थे। दूर दराज के लोग तक यह कहते रहते थे कि वह जापानी आक्रमण का प्रतिरोध करने में हमारी सहायता करने के लिए बहुत दूर से चीन आए हैं। और जब मिरगी के क्रूर दौरे ने जाड़ों की एक सुबह तड़के उन के प्राण निगल लिये, तो चीनी जनता दुख के अथाह सागर में डूब गई। उन के सहकर्मी, मरीज, अस्पताल के लोग नन्हे बच्चे के साथ उन की विधवा चीनी पत्नी , सैनिक और कमांडर उन की मृत्यु सप्या पर और शोक सभाओं में फूट फूट कर रोते रहे।
डाक्टर कोटनीस के देहान्त के बाद अध्यक्ष माओ त्गे तुंग ने अपने एक शोकालेख में कहा, हमारे भारतीय मित्र डाक्टर कोटनीस हमारे प्रतिरोध युद्ध को सहायता देने के वास्ते इतनी दूर से चीन आए थे। उन्होंने येनआन और उत्तरी चीन में पांच सालों तक काम किया औऱ हमारे घायल सैनिकों का उपचार किया। अत्याधिक परिश्रम के फलस्वरुप बीमार हो जाने से उन का देहान्त हो गया। इस से हमारी सेना का एक सुयोग्य मददगार और हमारे राष्ट्र का एक मित्र खो गया। हम डाक्टर कोटनीस की अंतरराष्ट्रवादी भावना को कभी नहीं भुला सकते।
दिवगंत प्रधान मंत्री श्री चाओ एन लाई ने कहा, डाक्टर कोटनीस चीनी और भारतीय जनता की दोस्ती के प्रतीक थे और जापानी आक्रमण तथा विश्व फाशिस्तवाद के खिलाफ संयुक्त विश्विव्यापी संघर्ष में भारतीय जनता की सक्रिये हिस्सेदारी के एक शान्दार उदाहरण थे। चीन लोग गणराज्य की मान सेवी अध्यक्ष मैदम सुंग छींग लींग ने डाक्टर कोटनिस के साथी डाक्टर बसु के नाम एख पत्र में लिखा, डाक्टर कोटनीस की स्मृति न केवल हम दो राष्ट्रों के धरोहर है, स्वतंत्रता और मानव मात्र की प्रगति के अदम्य योद्धाओं की महान पांतों की भी धरोहर है। भविष्य उन का आज से कहीं ज्यादा सम्मान करेगा। क्योंकि भविष्य के लिए ही तो वह लड़े और कुर्बान हुए।
विदेशी आक्रमण से जुझ रही चीनी जनता के प्रति दोस्ती और गहन सहानुभूति के प्रतीक के रुप में भारत की जनता के साम्राज्यवाद विरोधी संघर्ष ने जिस का प्रतिनिधित्वल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस करती थी और जवाहरलाल नेहरु ने जिसे शुरु किया था, सितम्बर 1938 में भारतीय जनता द्वारा दान किये गये साज सामान के साथ एख मेडिकल मिशन चीन भेजा। भारतीय राष्ठ्रीय कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष लुभाष चन्द्र बोस ने कलकत्ते की भव्य बिदाई सभा की अध्यक्षता की और मिशन के सदस्य कलकत्ते के डाक्टरों के बम्बई रवाना होते वक्त बिदाई देने के लिए हावड़ा स्चेशन स्वयं पहुंचे। भारतीय राष्ठ्रीय कांग्रेस की सर्वप्रिय नेताओं में से एक श्रीमति सरोजिनी नायडू 9 जनवरी 1938 को जिन्ना हाल में एक विशाल आम सभा की समाप्ति पर बैलार्ड पियर पर उन के जहाज को बिदा करने आई। उन्होंने कहा, हम आप को युद्ध पीड़ित चीनी जनता के पास सदिच्छा औऱ सदभावना के दूत के रुप में भेज रहे हैं। आप में से एकाध हो सकता है, स्वदेश वापस न भी लौट सके।
कितनी सच निकली उन की भविष्यवाणी। एक सचमुच वापस न आया। वह थे, डाक्टर कोटनीस।भारत चीन और विश्व के लिए इस ऐतिहासिक घटना का महत्व अत्यन्त सार्थक है।प्राचीन काल में भारत और चीन के बीच धर्म , संस्कृति और व्यापार के आदान-प्रदान तक संबंध सीमित रहे थे। लेकिन, 20वीं सदी के चौथे दशक में चीन गये उक्त मेडिकल मिशन ने इस गलियारे को चौड़ा कर दिया और स्वतंत्रता तथा मुक्ति के आदर्शों के लिए लड़ रही फासिस्टवाद विरोधी शान्तिप्रिय शक्तियों की विश्व व्यापी एकता के आधार पर एक नया संबंध द्वार खोल दिया। भविष्य में दो देशों के बीच घनिष्ठ सहयोग को इसी आधार शिला पर प्रस्थान करना था औऱ डाक्टर कोटनीस ने इस आधार शिला पर स्तम्भ खड़ा करने के लिए अपना मूल्यवान जीवन अर्पित कर दिया। जापानी आकर्मण विरोधी युद्ध के दौरान, उत्तरी चीन के चीनी कामरेडों और जनता के समान कष्टमय जीवन में हिस्सेदारी करते हुए डाक्टर कोटनीस अपने कार्य का स्थल पर एक साधारण राष्ट्रवादी से साम्रान्याद विरोधी तपे तपाये युद्धा, एक उछीप्त अंतरराष्ट्रवादी और चीनी जनता के महा दोस्त बने। और अंत्तः अपने पूर्व वर्ती डाक्टर बैथ्यून की ही तरह जनता की सेवा, साम्राज्यवाद विरोध औऱ अंतरराष्ट्रवाद के लिए प्राण न्यौछावर कर अमरत्व को प्राप्त हो गये।
कानाड़ावासी डाक्टर नारमन बैथ्यून के गुजरने के बाद वू-ताई-शान क्षेत्र में स्थित अंतरराष्ठ्रीय शान्ति अस्पताल का निर्देशक बनने पर डाक्टर कोटनीस अपने पूर्व वर्ती के पदचन्हों पर चलते रहे। उन्होंने डाक्टर नारमन बैथ्यून की स्मृत्ति में और अध्यक्ष माओ त्से तुंग की अन्य कृतियों का गहन अध्ययन किया औऱ सब को भूलकर जनता की सेवा में लगे और इस तरह समूची चीनी जनता के प्यार और स्नेह का पात्र बने। उन की उदात्त आकांक्षा भी तब पूरी हो गई, जब उन्हें जुलाई 1942 में गौरवशाली चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का सदस्य बना लिया गया।
उत्तरी चीन के ह पेई प्रांत की राजधानी शिच्याज्वांग में 9 दिसम्बर 1976 को चीनी जन मुक्ति सेना के डाक्टर बैथ्यून अंतरराष्ठ्रीय अस्पताल में उन केप्रथम निर्देशक डाक्टर कोटनीस की स्मृति में उन्हीं के नाम पर एक भव्य स्मृत्ति हॉल की स्थापना का चीनी जनता ने भारत के सुयोग्य पुत्र डाक्टर कोटनीस के प्रति अपनी भ्रद्धा प्रेम औऱ सम्मान प्रकट किया है।
सन 1982 में चीन के शीर्ष नेता तंग श्याओ फींग ने डाक्टर कोटनीस की स्मृति में एक अभिलेख में चीनी और भारत दोनों देशों की जनता की परम्परागत मैत्री के विकास पर जोर दिया , जबकि भूतपूर्व राजाध्यक्ष श्री च्यांग ज-मिन ने कहा, उन के कार्य हमेशा हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेंगे और वे हमेशा हमारे शान्दार उदाहरण बनते रहेंगे।
वर्ष 9 दिसम्बर 2002 को डाक्टर कोटनीस की 60वीं बरसी थी। इस के उपलक्ष में पेइचिंग में एक स्मृति सभा आयोजित की गई। सभा में लोगों ने उन के द्वारा चीनी जनता के मुक्ति कार्य में दिये गये महान योगदान का स्मरण किया और हमें यह प्रेरित किया कि चीन और भारत के बीच प्रगाढ़ मैत्री को आगे बढ़ाया जाए और मानव शान्ति कार्य के लिए अथक प्रयास किया जाए।
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