दोस्तो,कुछ समय पूर्व चीन की राजधानी पेइचिंग में नाटक-निर्देशकों,नाटक-लेखकों और नाटक-निर्माताओं ने संयुक्त रूप से एक नाटक कम्युनिटी स्थापित की,जिस का उद्देश्य नाटक लिखने में जन-समुदाय की भागीदारी को और चीनी लोगों में नाटकों की लोकप्रियता को बढाना है।
मंग चिंग-ह्वई चीन में एक जाने माने नाटक-लेखक और निर्देशक हैं।उन की रचनाओं में ज्यादा उत्साह,ज्यादा बागी स्वभाव और ज्यादा परंपराएं साथ-साथ दिखाई देती हैं और उन्हें चीनी प्रयोग नाटकों का अगुवा माना जाता है।`मुहब्बत में गैंडा` नामक नाटक उन की एक मुख्य कृति है।कुछ समय पहले पेइचिंग के केंद्रीय इलाके स्थित एक थिएटर में इस का मंचन किया गया।
`मुहब्बत में गैंडा` की कहानी इस प्रकार हैः एक पार्क में गैंडे की देखरेख करने वाला मा- लू नामक एक युवक अपने पड़ोस में रहने वाली एक युवती मिंग-मिंग से प्यार करने लगता है।लेकिन मिंग-मिंग किसी दूसरे लड़के से प्यार करती है।मा-लू और मिंग-मिंग दोनों अपने-अपने प्रेम में दीवाने हैं।अखिर में मा-लू प्रेम के लिए मिंग-मिंग का अपहरण कर लेता है। इस कहानी में दुख है, हास्य है,जो समाज में भौतिक सुख का पीछा करने वाले व्यवहार की हंसी उड़ाता है।`मुहब्बत में गैंडा`नामक इस नाटक का सन् 1999 में प्रथम मंचन किया गया,तब से अब तक वह सौ से अधिक बार मंचित किया जा चुका है।इस के दीवानों ने नाटक के तमाम संवादों और कुछ मंचित अंशों को इंटरनेट पर रखा हुआ है,ताकि दूसरे लोग भी इस नाटक का आनन्द उठा सकें। उन का मानना है कि यह नाटक कल्पना से भरी हुई एक अपूर्व श्रेष्ठ कृति है।
इस समय चीन के नाटक-बाजार में प्रयोगपरक नाटक-कृतियों,निर्देशकों और नाटककारों की स्थिति दुविधा में है।एक तरफ नाटकप्रेमी उन की प्रशंसा करते हैं और दूसरी तरफ उन से समाज में विवाद पैदा होते हैं,बल्कि उन का बाजारी मुनाफ़ा भी ज्यादा नहीं है। इन्हीं कारणों की वजह से नाटक कम्युनिटी की स्थापना की गई है। गौरतलब है कि इस के संस्थापकों में थिएटरों के प्रबंधक और सांस्कृतिक प्रदर्शन-कंपनियां,संबंद्ध पत्र-पत्रिका-गृह और पेइचिंग नाटककार संघ शामिल हैं। उन्हों ने दावा किया है कि वे सांस्कृतिक जगत और आम लोगों को गोलबंद करके नाटक रचने के कार्य में नयी जान फूंकने और नाटकप्रिय युवा लोगों को उन की प्रतिभा दिखाने का मंच मुहैया कराने की कोशिश करेंगे। पेइचिंग की वसंत-शरद संस्कृति प्रसार कंपनी के उपमहानिदेशक श्री वांग रन ने कहा कि नाटक कम्युनिटी के तहत होने वाले सभी आयोजन कल्याणकारी हैं और उन का आखिरी लक्ष्य नाटक-दर्शकों की संख्या को बढाना है।श्री वांग रन का कहना हैः
"हम ने नाटक कम्युनिटी कमाई के उद्देश्य से नहीं बनाई है,सो इस में जो धन लगेगा ,वह पूंजी-निवेश नहीं माना जाना चाहिए।हम इस कम्युनिटी से सिर्फ नाटक-दर्शकों और नाटक-लेखकों की संख्या में इजाफा करना चाहते हैं। अच्छे नाटक ही दर्शकों को आकर्षित करते हैं और दर्शकों के अधिक होने से बाजार स्वाभाविक रूप से बन जाता है।हमारे जैसे संस्थापकों को जरूर इस से लाभ मिलेगा।"
नाटक कम्युनिटी का घोषणा-पत्र किसी नाटक की तरह ही उत्साहपूर्ण है।उस में कहा गया है कि हमारे पास जो हैं,वे यौवन और सृजन-शक्ति हैं।यौवन दुबारा नहीं आएगा,लेकिन सृजन-शक्ति बढती रह सकती है।हमारे जीवन की पृष्ठभूमि भिन्न-भिन्न है,लेकिन नाटककला के प्रति हमारे सपने एक जैसे हैं।नायक कम्युनिटी के सदस्य,भविष्य में एक साथ मिलकर नाटक-भावना का प्रचार-प्रसार करने के काम को अपना अनिवार्य कर्तव्य मानकर अच्छी तरह चलाएंगे।अब तक 100 से अधिक गैरपेशावर नाटक लेखक इस कम्युनिटी के सदस्य बन चुके हैं,जिन में कालेज-छात्र भी शामिल हैं।
नाटक लेखक श्री फ़ंग ई-फिन चीनी केंद्रीय नाटक प्रतिष्ठान से स्नातक होने के बाद से सांस्कृतिक मंच से जुड़े हुए हैं।उन की अनेक कृतियां मंचित होकर लोकप्रिय हुई हैं।लेकिन उन के बहुत से सहपाठी नाटक-बाजार की मंदी से निराश होकर फिल्म व टीवी-फिल्म पटकथा लिखने की ओर मुड़ गए हैं।श्री फ़ंग का विचार है कि नाटक कम्युनिटी की स्थापना नाटककला को लोकप्रिय बनाने और नाटक-मंचन को सक्रिय करने के लिए फायदेमंद है।
उन्हों ने कहाः "नाटक कम्युनिटी की स्थापना बहुत अच्छी बात है।इस के जरिए कम से कम ऐसा हो सकता है कि नाकटप्रेमियों या नाटककला में प्रतिभा रखने वाले लोगों को एक साथ मिलकर नाटयालेख पढ़ने और नाटक-प्रदर्शन करने का मौका मिलता है।नाटककला का ज्ञान प्रसारित करने और नाटककला के प्रति लोगों में रूचि पैदा करने में इस की अहम भूमिका हो सकती है।कालेज-छात्रों की इस में जरूर बड़ी रूचि होगी।इसलिए नाटक कम्युनिटी उन के लिए खासी उपयोगी और महत्वपूर्ण है।"
योजनानुसार नाटक कम्युनिटी अपनी प्रथम गतिविधि के रूप में प्रतिमाह नवरचित नाटयालेख पढकर सुनाने के दो आयोजन करेगी,जिन में दर्शकों और विशेषज्ञों को नाटयालेखों में सुधार के लिए आमंत्रित किया जाएगा।भविष्य में विशेष संगोष्ठियां,सेमिनार और प्रशिक्षण-कक्षाएं भी आयोजित की जाएंगी।इन आयोजनों में नाटकप्रेमी निःशुल्क भाग ले सकते हैं।
नाटयालेख पढ़कर सुनाने का आयोजन विदेशों में आम बात है,लेकिन वह चीन में बहुत कम देखने को मिलता है।नाटक निर्देशक श्री मंग चिंग-ह्वई ने मजाक करते हुए कहा कि अगर उन्हें कालेज में पढते समय ऐसा मौका मिला होता,तो वह आज कहीं ज्यादा प्रसिद्ध होते।उन का विचार है कि इस तरह के आयोजन से नाटकप्रेमियों को रू-ब-रू होने का सुअवसर मिला है।उन्हों ने कहाः
"नाटयालेख पढ़कर सुनाने का आयोजन इस मंच की भूमिका अदा कर सकता है जिस के जरिए नाटकप्रेमी रू-ब-रू होकर विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं।इस मौहाल में वे खुद को नाटक में डालकर नाटयालेखों को परिष्कृत कर सकते हैं।"
नाटक कलाकारों ने दर्शकों को आकर्षित करने के लिए अन्य कुछ नया करने की कोशिश भी की है।सन् 2003 में उन्हों ने धारावाहिक के रूप में नाटक `खुशगवार केक` का मंचन शुरू किया।तब से प्रतिवर्ष इस की एक कड़ी बना कर मंचित की जाती रही है।इस नाटक के विषय समाज में चर्चित ज्वलंत मुदों पर केंद्रित रहे हैं और प्रदर्शन-शैली में हल्कापन लाने के लिए हास्य व व्यंग्य को प्राथमिकता दी गई है।
धारावाहिक नाटक `खुशगवार केक` का एक गैरसरकारी कंपनी की मदद से मंचन किया गया है।इस कंपनी के डाइरेक्टर श्री ऊ फ़ू-सेन के अनुसार सांस्कृतिक मंच को तरह-तरह के कलात्मक रूपों की जरूरत है।इस से ही वह समृद्ध हो सकता है।जो कृतियां दर्शकों को पसंद आती है,वह अच्छी मानी जानी चाहिए।`खुशगवार केक` दर्शकों की कसौटी पर खरा उतरा है।उन का कहना हैः
"नाटक-बाजार नहीं फला-फूला है।इस पर नाटक-जगत की अनेक चिन्ताएं हैं।लेकिन `खुशगवार केक` ने आशा जगाई है।उस ने जितने दर्शकों को अपनी ओर खींचा है,उतने दर्शक पहले किसी दूसरे नाटक ने कभी नहीं आकर्षित किए।सो विश्वास किया जा सकता है कि बड़ी संख्या में दर्शक इस नाटक की हर कड़ी पर आंखें गड़ाएं बैठे रहेंगे।इस धारावाहिक नाटक की खासयित यह है कि उस में ज्वलंत मुद्दों के साथ-साथ फैशन भी दिखाया गया है,अर्थात उस में मनोरंजन ज्यादा है।आज के तीव्र स्पर्द्धा के दौर में लोगों को तरह-तरह के दबावों एवं तनावों का सामना करना पड़ रहा है।थिएटर जाने का उन का उद्देश्य मुख्तयता तनाव से छुटकारा पाना और थोड़ी देर अपना मनोरंजन करना है।`खुशगवार केक` उन की इस जरूरत की पूर्ति कर सकता है।"
श्री ऊ का मानना है कि नाटक-बाजार के विकास के लिए नाटक-जगत को सर्वप्रथम बढ़िया कृतियां बनानी चाहिए,यह अधिकाधिक दर्शकों को आकर्षित करने की पूर्वशर्त भी है। घटिया नाटक देखने कौन थिएटर जाना चाहता है?
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