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(GMT+08:00) 2007-11-06 10:50:19    
तिब्बत के आली प्रिफैक्चर के च्यामू गांव वासियों का नया जीवन

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चीन के तिब्बत को विश्व की छत कहा जाता है, जबकि तिब्बत का आली प्रिफैक्चर विश्व की छत के नाम से मशहूर है । समुद्र की सतह से 4500 मीटर की ऊंचाई पर आली प्रिफैक्चर में रहने वाले किसान और चरवाहों की जीवन स्थिति कठिन थी । लेकिन गत वर्ष से आली प्रिफैक्चर में किसान व चरवाहों के रहने की स्थिति को सुधारने के लिए सर्वतौमुखी तौर पर रिहायशी मकान परियोजना शुरू की गई है। इस के लिए सरकार ने भारी धन राशि लगाई है। आली प्रिफैक्चर के किसान और चरवाहे मिट्टी व लकड़ी से बने हुए कमज़ोर व पुराने मकानों से बड़े ईंटों वाले नए मकानों में बसाए गए हैं। आप हमारे साथ आली प्रिफैक्चर के च्यामू नामक गांव जाएंगे, और देखेंगे वहां के स्थानीय तिब्बती लोगों का नया जीवन ।

तिब्बत के आली प्रिफैक्चर की सरकारी संस्था शी छ्वानहः कस्बे में स्थित है, च्यामू गांव इस कस्बे से करीब 20 किलोमीटर दूर है । इस गांव में प्रवेश करते ही तिब्बती शैली के दो मंजिला मकानों की कतारें नजर आती हैं । एकीकृत योजना के अन्तर्गत हरेक मकान की अपनी-अपनी विशेष शैली है । च्यामू गांव के मुखिया गामा त्सेरन ने कहा कि एक साल पूर्व यहां खाली भूमि थी । किसान और चरवाहे दूर के पहाड़ी क्षेत्र में रहते थे। वर्ष 2006 के अप्रेल माह में चीन सरकार ने 41 लाख चीनी य्वान का अनुदान कर च्यामू गांव में किसानों व चरवाहों के लिए रिहायशी मकान परियोजना शुरू की । च्यामू गांव के मुखिया श्री गामात्सरेन ने कहा:

"हमारे गांव के कुल 57 परिवार 279 वासी हैं । गांव वासियों की प्रमुख आय श्रमिकों के निर्यात और पशुपालन से आती है । यहां आने के पूर्व हमारे मकान मिट्टी से बने हुए थे । गत वर्ष रिहायशी मकान परियोजना शुरू हुई । सरकार की सहायता से 56 परिवारों को नए मकानों में बसाया गया है ।"

च्यामू गांव के मुखिया श्री गामा त्सेरन ने संवाददाता से कहा कि रिहायशी मकान परियोजना के तहत कुल पांच हज़ार वर्गमीटर क्षेत्रफल वाले मकानों का निर्माण किया गया है। इन मकानों के निर्माण में लगी राशि में सरकार द्वारा दिया गया भत्ता और व्यक्तिगत ऱाशि शामिल है । हर परिवार के सदस्यों की संख्या के अनुसार सरकारी भत्ते की मात्रा निश्चित की जाती है, बाकी धन राशि किसान व चरवाहे स्वयं देते हैं । च्यामू गांव में 20 परिवारों के रिहायशी मकानों का क्षेत्रफल एक सौ वर्गमीटर से अधिक है। अन्य परिवारों के रिहायशी मकानों में सब से छोटे मकान का क्षेत्रफल 60 वर्गमीटर है।

पहले च्यामू गांव वासियों के रिहायशी मकान बहुत छोटे और अंधेरे वाले थे । एक परिवार के कई सदस्यों के पास एक ही कमरा होता था,वही बेडरूम, वही लीविंग रूम और वही रसोई घर होता था । अगर घर में मेहमान आएं, तो परिवार के सदस्यों को घर के बाहर सोना पड़ता था । सर्दियों में घर के बाहर सोना बहुत कठिन था । बहुत ठंड के कारण लोगों के हाथों व पैरों जकड़ जाते थे । च्यामू गांव के गांववासी लाबा तुनचू ने कहा कि उस समय वह अपना नया मकान बनाना चाहता था, पैसे कम होने के कारण उस की आशा नहीं पूरी हो सकी । लेकिन आज एक सौ से वर्गमीटर से अधिक वाले उस के नये मकान का निर्माण पूरा होने वाला है । इस की चर्चा में च्यामू गांव वासी लाबा तुनचू ने कहा:

"हमारे मकान के निर्माण के लिए कुल पचास हज़ार य्वान की आवश्यकता थी । इस में हम ने सिर्फ़ दस हज़ार य्वान का खर्चा किया, बाकि सरकारी सहायतार्थ मिली राशि है । अब हमारा नये मकान का निर्माण पूरा होने वाला है । पहले हमारा रिहायशी मकान बहुत छोटा था, उस की स्थिति बहुत खराब थी ।"

गांव वासी लाबा तुनचू और त्सेरन यांगचोंग एक बूढ़े दंपत्ति है । उन के घर आकर हमारे संवाददाता ने देखा कि मकान के बाहर का डिज़ाइन बहुत सुन्दर है । भीतर से विशाल है, रोशनीदार है । घर में लीविंगरूम, बेडरुम, रसोई घर भी है । कमरे में तिब्बती शैली का फर्निचर है। तिब्बती शैली के मकान में आधुनिक वातावरण है। मेहमान लाबा तुनचू एक स्नेहपूर्ण दादा हैं । उन्होंने हमें आमंत्रित कर अपना बेडरुम, रसोई घर, और लीविंगरूम दिखाया । इस के बाद बूढ़े लाबा तुनचु ने भाव विभोर हो कर कहा:

"मैं 59 वर्ष का हूँ । पहले मैं इतने अच्छे रिहायशी कमान में कभी नहीं रहा । लेकिन इस वर्ष हमारे जीवन में भारी परिवर्तन आया है । मुझे बहुत अचछा लग रहा है ।"

नए रिहायशी मकान में प्रवेश कर च्यामू गांव वासी बहुत खुश हुए। उन का जीवन और सुविधापूर्ण हो गया है । गांव में टी.वी, टेलिफोन और रेडियो की सेवा है । इन से च्यामू गांव में रहने वाले तिब्बती किसान व चरवाहे बाह्य दुनिया की ज्यादा जानकारी ले सकते हैं । अब ज्यादा से ज्यादा लोग पठार से रवाना होकर काम करने और पढ़ने के लिए भीतरी इलाके के विभिन्न स्थल जाते हैं । च्यामू गांव के मुखिया श्री गामा त्सेरन ने जानकारी देते हुए कहा कि वर्तमान में च्यामू गांव के कुल 115 बलवान श्रमिक हैं । इन में से आधे गांव में खेती का काम और पशुपालन करते हैं । बाकी आधे बाहर जाकर किसान मज़दूर बन गए हैं। इस के साथ ही अनेक किसानों व चरवाहों के बच्चे भीतरी इलाके तथा आसपास के प्रांतों के स्कूलों में पढ़ते हैं । दंपत्ति लाबा चुनचु और त्सेरन यांगचोंग की बेटी मिमा फूछी शिन च्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश में पढ़ती है। हमारे संवाददाता के घर आने के तुरंत बाद दादी त्सेरन यांगचोंग ने टेलिफोन कर यह खबर बेटी को दी । वे अपनी बेटी के साथ तेज़ गति से बातचीत करती है । तिब्बती भाषा न जानने के कारण हमें समझ में नहीं आया । लेकिन दादी त्सेरन यांगचोंग की आवाज़ में हमने उन की खुशी को महसूस किया ।

गांव वासियों को नए रिहायशी मकानों के निर्माण में सहायता देने के साथ-साथ स्थानीय सरकार गांव वासियों की आय में वृद्धि पर भी सोचविचार कर रही है । गांव के मुखिया श्री श्री गामा त्सेरन ने कहा कि उन्होंने गांव के युवा लोगों को शिनच्यांग वेवुर स्वायत्त प्रदेश जाकर मुर्गी पालने की तकनीक सीखने को प्रोत्साहित किया है। उन की वापसी के बाद गांव में एक तिब्बती मुर्गी पालन फार्म की स्थापना की जाएगी । इस के साथ ही गांव में एक परिवहन दल की स्थापना की जाएगी । खुशी की बात यह है कि राष्ट्रीय वित्त द्वारा प्रदत्त धन राशि से गाय व बकरे फार्म का निर्माण पूरा हो जाएगा । श्री गामा त्सेरन ने कहा:

"हमारे यहां एक गाय पालन अड्डा और एक गायों व बकरों को पालने वाला अड्डा है । इस का तैयारी कार्य अब पूरा हो गया है । शरद ऋतु में हम किसानों की गायों व बकरों को खरीद कर अड्डे में उन्हें मोटा बनाएंगे।"

च्यामू गांव से विदा लेने के वक्त तिब्बती दंपत्ति लाबा तुनचु और त्सेरन यांगचोंग ने कहा कि सरकार ने उन के लिए बड़ा व रोशनीदार रिहायशी मकान का निर्माण किया है। घर में आवश्यक फर्निचर है । गांव के मुखिया कभी कभार उन्हें देखने आते हैं और रोज़मर्रा की आवश्यक चीजें लाते हैं। उन का जीवन पहले से कहीं अच्छा हो गया है। वे सरकार की सहायता के आभारी हैं और विश्वास है कि गांव वासियों का भविष्य और उज्ज्वल होगा ।