सम्राट खाङशी , युङचङ और छ्येनलुङ के शासनकाल में बहुत से शहर पहले से और समृद्ध हो गए। उस समय तक पेइचिङ चीन का व्यापार केन्द्र बन चुका था।
विभिन्न प्रान्तों में व्यापारियों द्वारा अपने अपने संघ कायम कर लिए गए थे और बड़े बडे शहरों में इन संघों के दफ्तर भी खोले जा चुके थे।
पण्य अर्थव्यवस्था के विकास के साथ साथ नवजात पूंजीवाद भी धीरे धीरे किन्तु अनवरत रूप से विकसित होने लगा था। दस्तकारी उद्योग में, पुनःविक्रय के उद्देश्य से माल खरीदने की गतिविधियां बहुत बढ गई थीं।
फलस्वरूप, पूंजीवादी स्वरूप वाले दस्तकारी कारखानों की संख्या में भी वृद्धि हुई।
छिङ राजवंश के प्रारम्भिक काल में ऐसे मुद्रागृह पहली बार कायम किए गए जो अपने ग्राहकों को पैसा जमा करने व निकालने और ऋण लेने की सुविधा प्रदान करते थे।
लेकिन इस सब के बावजूद सामन्ती व्यवस्था पूंजीवाद के विकास को रोके हुए थी। छिङ सरकार अपनी वाणिज्य विरोधी नीति पर हठपूर्वक कायम थी।
उस ने बारम्बार आदेश जारी कर नागरिकों द्वारा खान खुदाई पर प्रतिबन्ध लगा दिया था। और तो और , उस ने निजी कारखानों में करघों की संख्या भी सीमित कर दी थी।
व्यापारियों पर लगाए गए टैक्सों का बोझ इतना ज्यादा था कि बहुत से व्यापारियों को दिवालिया हो जाने के कारण अपनी दुकानें बन्द कर देनी पड़ीं।
जाहिर है, इन परिस्थितियों में पूंजीवाद का विकास नहीं हो सकता था। सारे देश में अब भी आत्मनिर्भर और प्राकृतिक अर्थव्यवस्था की ही प्रधानता थी।
चीन की धरती पर बस ने वाली तमाम जातियों के लोगों ने अपनी मातृभूमि की महान संस्कृति का सृजन और विकास किया।
छिङ राजवंशकाल में चीन की सीमा के अन्दर 50 से अधिक जातियां, जिनमें हान जाति के लोगों की संख्या अन्य जातियों से कहीं अधिक थी, साथ साथ रहने लगी थीं और उन के आपसी सम्बन्ध पहले से कहीं ज्यादा घनिष्ठ हो गए थे।
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