प्राचीन चीन में छुन राज्य की सेना सुंग राज्य वंश पर चोरी छिपे हमला बोलना चाहती थी ।
हमला बोलने से कुछ दिन पूर्व छुन सेना ने दोनों देशों की सीमा पर बहती योंग नदी की गहराई नापी और नदी के सब से छिछले भाग पर पार करने का निशान बनाया , ताकि युद्ध छिड़ने के समय वहां से नदी पार कर धावा बोले ।
लेकिन क्या जाने हमले के दिन शाम को नदी में अचानक बाढ़ आई , किन्तु छुन सेना को इस पर ध्यान नहीं गया ,वह देर रात में पूर्व योजना के अनुसार नदी के पास लगाए गए निशान की जगह नदी को पार करने लगी , नदीजा यह निकला कि नदी की बाढ़ के साथ हजार से अधिक सिपाही डूब कर बह गए और छुन सेना हतावास हो कर हार गई ।
दोस्तो , दुनिया में हर चीज बदलती जाती है , यह एक प्राकृतिक नियम होता है । नदी में बाढ़ आती है , चली भी जाती है ।
यदि इस परिवर्तन पर ध्यान नहीं देते और परिवर्तित स्थिति के मुताबिक काम नहीं लेते , तो हार की कटु फल खाना पड़ता है ।
चीन के सुप्रसिद्ध प्राचीन विद्वान मङ ची ने एक बार सुंग राज्य वंश के एक मंत्री ते पु-शह से पूछा कि अगर छुन राज्य का एक मंत्री यह चाहता हो कि उस का पुत्र ची राज्य का भाषा सीखेगा , तो आप के विचार में वह पुत्र ची राज्य के लोगों से सीखे , या छुन राज्य के लोगों से ।
ते पु -शङ ने जवाब में कहा, निसंदेह ची राज्य के लोगों से सीखना ज्यादा फायदामंद होगा ।
इस पर मङ ची कहते थे कि जब ची राज्य का एक शिक्षक उस पुत्र को सीखाते हो , लेकिन उस के पास अनेकों छुन लोग उस के साथ छुन भाषा में बातचीत करते हो और उस की पढ़ाई में बाधा डालते हो ,तब उसे रोज कोड़ा मार मार कर ची भाषा सीखने के लिए मजबूर किया जाए , तो भी वह सीख नहीं पाता ।
अगर उसे ची राज्य की राजधानी लिन -चे शहर के सब से घनी आबादी वाले इलाके में कुछ वर्षों के लिए रहने दिया जाए , तो रोज उसे कोड़ा मार मार कर छुन राज्य की भाषा में बोलने बाध्य किया जाए . तो भी वह अपनी छुन भाषा नहीं बोल सकता और उसे ची भाषा सीखना पड़ेगा ।
इस कथा का अर्थ है कि पास पड़ोस की स्थिति का लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ता है ।
भाषा सीखने के लिए अनुकुल वातावरण होने की आवश्यकता है ।
इसी प्रकार दूसरी किस्म का काम सीखने और बच्चों का चरित्र विकसित करने के लिए भी अच्छा वातावरण होना चाहिए ।
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